पैत्रिक रक्तस्त्राव (Haemophilia) एक आधुनिक (hereditary) बीमारी है जो आम तौर पर पुरुषों को होती है और औरतों द्वारा फैलती (transmit) होती है।

इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या भारत में कम है। इस रोग में रोगी के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अकिध मात्रा में खून का निकलना आरंभ हो जाता है। इससे रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

पीड़ित रोगियों से पूछताछ करने पर बहुधा पता चलता है कि इस प्रकार की बीमारी घर के अन्य पुरुषों को भी होती है। इस प्रकार यह बीमारी पीढ़ियों तक चलती रहती है।

यह बीमारी रक्त में ्थ्राॉम्बोप्लास्टिन (Thromboplastin) नामक पदार्थ की कमी से होती है। ्थ्राॉम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।

इस बीमारी के लक्षण हैं : शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आँख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों (joints) की सूजन इत्यादि।

जाँच करने पर पता चला कि इस रोग में खून के थक्का होने का समय (clotting time) बढ़ जाता है।

उपचार बार बार रुधिर-आधान (repeated blood transfusion) देते रहना अच्छा होता है।

अत्याधिक रक्तस्राव में १०० घन सेंटीमीटर का रुधिर-आधान प्रति ८ घंटे के अंतर पर दिया जाता है। रुधिर आधान का प्रभाव कुछ घंटों तक ही रहता है, कई दिनों तक नहीं रहता। जब तक रक्तस्त्राव पूर्ण रूप से बंद न हो जाय, अथवा नियंत्रण में न आ जाय, रुधिर - आधान क्रिया को ------ आवश्यकता न हो तब भी १०० से १८० घन सेंटीमीटर नूतन प्लाज्मा अथवा हिमतुल्य शीतल प्लाज़्मा दिया जाता है, क्योंकि इसमें पैत्रिक रक्तस्त्राव के सभी विपरीत गुणों का समावेश रहता है। रक्त के थक्का बन जाने के समय में कमी हो जाती है, अथवा वह प्राकृतिक थक्का बनने में लगनेवाली समय के समान हो जाता है।

रक्त के प्लाज़्मा का उसके अंशों में पृथक्करण करने पर अंत:शिरा के प्रयोग के लिये मनुष्य के फ्राइब्रिनोजन गुण के होते हुए एक और लाभ यह है कि यह सामग्री कम मात्रा में सुगमता से दी जा सकती है।

बाह्य रक्तस्त्राव में स्थानिक उपचार के लिये ्थ्रांबिन चूर्ण महत्व का है। रसेल वाइपर सर्प के विष की १ मात्रा १,००० गुने द्रव में और फ्राइब्रिन झाग भी अति लाभदायक सिद्ध हुई है। सूक्ष्म रक्तस्त्राव स्थानिक दबाव डालकर ही अविलंब रोका जा सकता है और रक्तस्त्राव स्थानिक दबाव डालकर ही अविलंब रोका जा सकता है और रक्तस्त्राव रोकने के अन्य साधनों, जैसे ऊतक अर्क, रक्त सीरम, ऑक्ज़ैलिक अम्ल अथवा अंतर्शिरा में कोआगुलिन (coaguli) कुछ उपचारो मे लाभदायक है, विशेषकर जब शल्यचिकित्सा अथवा दंतशल्य आवश्यक हो। रोगी को प्राथमिक रुधिर - आधान देना और तत्पश्चात् बार बार रुधिर आधान देना लाभदायक होगा जब तक शल्याघात पूर्ण रूप से दूर न हो जाय।

(सत्य पाल गुप्त)