पेशीतंत्र, मानव शरीर का (Muscular System of Human Body) इस तंत्र में केवल ऐच्छिक पेशियों की गणना की जाती है, जो अस्थियों पर लगी हुई हैं तथा जिनके संकुचन से अंगों की गति होती है और शरीर हिल डुल तथा चल सकता है। पेशी एक अस्थि से निकलती है, जो उसका मूलबंध कहलाता है, और दूसरी अस्थि पर कंडरा द्वारा लगती है, जो उसका चेष्टाबिंदु होता है। कुछ ऐसी भी पेशियाँ हैं, जो कलावितान (aponeurosis) में लगती है। दोनों के बीच में लंगे लंबे मांससूत्र रहते हें, जिनकी संख्या बीच के भाग में अधिक होती है। जब पेशी संकुचन करती है तब --------------- है और जिस अस्थि पर उसका चेष्टाबिंदु होता है वह खिच कर दूसरी अस्थि के पास या उससे दूर चली जाती है। यह पेशी की स्थिति पर निर्भर करता है, किंतु संकुचन का रूप, अर्थात् पेशीसूत्रों में होनेवाले रासायनिक तथा विद्युत्परिवर्तनों या क्रियाओं का रूप, एक समान होता है।

शरीर की सभी अस्थियाँ करोटि की आभ्यंतर अस्थियों को छोड़कर ऐच्छिक पेशियों में छाई हुई हैं। इन पेशियों के समूह बन गए हैं। प्रत्येक क्रिया एक समूह के संकुचन का परिणाम होती है। केवल एक पेशी संकुचन नहीं करती। छोटी से छोटी क्रिया में एक १. ललाट (frontalis) २. नासा (nasal), ३. उत्तर ओष्ठ चतुरस्रा (quadratus labii superioris) ५. सृक्कोत्कर्षणी (zygomaticus), ६. कैनाइनस (Caninus), ७. गलपार्श्वच्छदा (platysma myoides), ९. टैंगुलैरिस (tr.iangularis), १०. निम्न ओष्ठ चतुरस्रा, ११. अधर उन्नमनी (mentaiis), १२. वक्त्रमंडलिका (orbicularis oris), की निम्न ओष्ठ कृंतक पेशी (incisivus labii inferioris), १३. कपोल संपीडनी (buccinator), १४. चर्वणी (masseter), १५. वक्त्र मंडलिका, १६. कपोल संपीडनी, १७. कैनाइनस, १८. नासापट अवनमनी (depressor septi), १९. नासा, २०. कपाल पेशी (temporal) तथा २१. भ्रूनमनी (procerus)।

या कई समूह काम करते हैं। ये क्रियाएँ विस्तार (extension), आकुंचन (flexion), अभिवर्तन (adduction), अपवर्तन (abduction), और घूर्णन (rotation) होती है। पर्यावर्तन (circumduction) गति इन क्रियाओं का सामूहिक फल होता है। उत्तानन (supination) और अवतानन (pronation) क्रिया करनेवाली पेशियाँ केवल अग्रबाहु में स्थित हैं। शरीर की पेशियों का नीचे संक्षेप में वर्णन किया जाता है।

सिर की पेशियाँ सिर का ऊपरी भाग कपाल एक कलावितान से आच्छादित है, जिसके अगले भाग में ललाटिका और पिछले भाग में पश्चकपालिका पेशियाँ लगी हुई हैं। इन दोनों को एक ही पेशी, ललाट अनुकपालिका (frontooccipitalis), के दो भाग माना जाता है। भ्रू के खिचने से ललाट में जो सिकुड़नें पड़ जाती हैं वे इसी पेशी के संकुचन का फल होती है। ललाट के नीचे के भाग में नेत्र की पलकों को घेरे हुए नेत्रमंडलिका (orbicularis oculi) है, जो नेत्रों को बंद करती है, यद्यपि उसके भिन्न भिन्न भाग स्वत: संकुचन करके मुख पर कई प्रकार के भाव उत्पन्न कर सकते हैं। नासा संबंधित, नासासंपीडनो (compressor nasi), नासाविस्फारणी (dilator nasi), नासावनमनी (depressor) और नासोष्ठकर्षणी (levator labii et nasi) का एक भाग, ये पेशियाँ हैं जिनकी क्रिया उनके नाम से स्पष्ट है। ओष्ठकर्षणी (levator labii) और सृक्क उन्नयनी (levator anguli) ऊर्ध्वोष्ठ को ऊपर की ओर खींचती हैं। सृक्कोत्कर्षणी (zygomaticus) मुख के कोण को बाहर की ओर खींचती है। वक्त्र मंडलिका (orbicularis oris) मुख के छिद्र को एक मंडल की भाँति घेरे हुए हैं। उसके संकुचन करने पर मुख का छिद्र बंद हो जाता है। निचले ओष्ठ को नीच को खींचनेवाली अधरोष्ठवनमनी (depressor labii inferioris) और सृक्कावनमनी (depressor anguli oris) पेशियाँ हैं। कपोल संपीडनी (buccinator) पेशी दोनों ऊर्ध्व और अधोहन्वस्थियों से निकलकर, आगे को जाकर, वक्त्रमंडलिका में मिल जाती है।

ये सब भावप्रदर्शक पेशी कही जाती है। इनमें आननतंत्रिका (facial nerve) अथवा ७ वीं कपालीतंत्रिका की शाखाएँ आती हैं।

चर्बण संबंधी पेशियाँ ये कपालपेशी (temporalis), च्व्राणी (masseter) और अंत: और बहि: पक्षाभिका (interal and external pterygoideus) हैं। कपालपेशी कपालफलक के बहिपृष्ठ से एक पंखे के आकार में निकलती है और नीचे जाकर अधोहन्वस्थि की प्रशाखा (ramus) पर लगती है। चर्वणो पेशो ऊध््व्रा हन्वास्थि के एक प्रवर्धन और गंडचाप (zygomatic arch) की निचली धारा से निकलकर अधोहन्वस्थि को ऊपर उठाती है। शंख पेशी की भी यही क्रिया होती है। इस प्रकार यह ग्रास को ऊपर और नीचे के दाँतों के बीच मे लाकर चबाने की क्रिया करवाती है और मुँह को बंद करती है। बहि: पक्षाभिका जबड़े के अस्थिकंद (condyle) को बंद करती है। बहि: पक्षाभिका जबड़े के अस्थिकंद (condyle) को आगे को खींच कर मुँह को खोलती है। दोनों ओर की अंत:-पक्षाभिका पेशियों की बारी बारी से क्रिया होने से जबड़ा दाहिने बाए खिंचता है। वह जबड़े को ऊपर को उठाकर मुँह बंद होने में भी सहायता देती है।

ग्रीवा की पेशियाँ सामने की त्वचा के नीचे बारीक पतली पेशी अधोहन्वस्थि से जत्रुक (clavicle) तक फैली हुई है। मनुष्य में इस पेशी का ्ह्रास हो गया है। बहुत से चौपायों में यह पेशी विस्तृत और क्रियाशील होती है जिससे वे गले की त्वचा को चला सकते हैं। कुछ मनुष्यों में भी ऐसी शक्ति होती है। यह गलपार्श्वच्छदा (platysma) कहलाती है। इसको हटा देने से, ग्रीवा की मध्य रेखा १. उरोस्थिंकठिका (sternohyoid), २. अंसकंठिका (omohyoid) का ऊर्ध्व मध्यांश, ३. अवटुकंठिका (thyrohyoid), ४. द्वितुंदी (digastric) का अग्र मध्यांश, ५. चिबुककंठिया (mylohyoid), ६. कठिका जिह्विका (hyoglossus), ७. शरकंठिका (stylohyoid), ८. चर्वणी (masseter), ९. द्वितुंदी का पश्च मध्यांश, १०. पट्टिका-शिरस्या (splenius capitis), ११. उर: कर्णमूलिका (sternocleidomastoid), १२. अंसफलक उन्नायक (levator scapulae), १३. पश्च विषमा (scalenus posterior), १४. मध्य विषमा (medius), १५. पूर्व विषमा (anterior), १६. पृष्ठच्छदा (trapezins), १७. अंसकंठिका का निम्न मध्यांश तथा, १८. उर: कर्णमूलिका।

के दोनों ओर समान रचनाएँ स्थित हैं। इस कारण एक ओर को रचनाओं का यहाँ वर्णन किया गया है। दूसरी ओर भी वैसा ही समझना चाहिए।

चित्र २. में गले के पार्श्व में एक बड़ी पेशी कान के पीछे कर्णमूल से उरोस्थि (sternum) तक जाती दीख रही है, जो उरोस्थि ओर जत्रु के पास के भाग से उदय होकर, ऊपर जाकर, कर्णमूल पर लग जाती है। यह उर:कर्णमूलिका (sternocleidomastoid) पेशी है। एक ओर की इस पेशी के संकुचन से सिर दूसरी ओर को घूम जाता है। दोनों ओर की पेशियों के साथ संकुचन करने पर सिर नीचे को झुक जाता है। यह एक विशेष पेशी है, जो चतुष्कोणकार गलपार्श्व को अग्र और पश्च दो (anterior and posterior) त्रिकोणों में विभक्त कर देती है। पूर्व त्रिकोण का शिखर नीचे उदोस्थि पर है। एक भुजा गले की मध्य रेखा और दूसरी इस पेशी पूर्व या अंत: धारा बनाती है। इस त्रिकोण में बड़े महत्व की कितनी ही रचनाएँ हैं, जो ऊपर से नीच को, या नीचे से ऊपर को जाती है। पश्च त्रिकोण का शिखर ऊपर कर्णमूल के नीचे और आधार नीचे जत्रुक पर है तथा अंत: भजा उर कर्णमूलिका की बहि:धरा और बहि: या पार्श्व भुजा (trapezius) पेशी की बहि:धारा से बनती है। गले की मध्य रेखा में कठिका (hyiod), अबटुउपास्थि (thyroid cartilage) ओर उरोस्थि की ऊर्ध्व धारा शल्यचिकित्सक के लिये विशेष पेशियाँ ये हैं : चिबुककंठिका (mylohyoid), (जो मुखगुहा कीह भूमि बनाती है, अधोहन्वस्थि के एक ओर के कोण से दूसरी ओर के कोण तक फैली हुई है और पीछे की ओर कठिका पर लग जाती है), कंठिका जिह्वका (hyoglossus), अवटकंठिका (thyrohyoid), उरोस्थि कंठिका (sternohyoid) तथा अंसकंठिका (omohyoid)। इन पेशियों की स्थिति का विस्तार इनके नाम से प्रकट है। अंसकंठिका एक लंबी पेशी है, जो अंसफलंक से निकलकर, दोनों त्रिकोणों को पार करके, कठिकास्थि पर जाकर लगती है। इसके बीच के भाग में एक कंडरा है, जो प्रावरणी के एक भाग द्वारा प्रथम पर्शुका पर लगी हुई है। शरग्रसिनिका (stylopharyngeus) और शरकंठिका (stylohyoideus) कपालास्थि के शर प्रवर्ध से निकलती हैं। उर:कर्णमूलिका में ११वीं कपाली (मेरु सहायिका) तंत्रिका जाती है। इस त्रिकोण की जिह्वा में जानेवाली पेशियों में अधोजिह्विका (hypoglossal) तंत्रिका जाती है। कंठिका से नीचे की पेशियों में ऊपरी ३ या ४ मेरुतंत्रिकाओं के सूत्र जाते हैं।

पश्च त्रिकोण में शिर और ग्रीवा को घुमाने तथा झुकानेवाली कई पेशियाँ हैं। इनमें मुख्य पट्टिका शिरस्का (splenius capitis) और पट्टिका ग्रैवी (splenius cervicis) हैं। अंसफलक उन्नायक (levator scapulae) तथा अग्र और मध्य विषमाएँ (scalenus ant. and medius) भी दिखाई देती हैं। शिरस्का पेशी शिर को अपनी ओर को घुमाती है। विषमाएँ कशेरुकाओं के पार्श्व प्रबधं से निकलकर ऊपरी पशुंकाओं पर उनको ऊपर उठाती हैं।

ग्रीवा के पीछे की ओर पश्चकपालास्थि के नीचे भी एक त्रिकोण है जो अधोपश्चकपाल (suboccipital) त्रिकोण कहलाता है। यह त्रिकोण ग्रैवी दीर्घा (longus coli) के ऊर्ध्वतिर्यक् भाग (superior oblique) बाहर की ओर, अधोतिर्यक् भाग (inferior oblique) नीचे की ओर और पश्चवृहद समशिरस्था (rectus capitis posterior major) भीतर की ओर, इन तीनों पेशियों में परिमित है१ ये पेशियाँ शिर और प्रथम कशेरुका को घुमाती हैं। इन सब पेशियों को ढँकती, विस्तृत और बलवान पेशी, पृष्ठच्छदा (trapezius) है, जो सारी ग्रीवा और वक्ष के अत तक पीठ पर फैली हुई है।

धड़ की पेशियाँ पृष्ठच्छदा को ऊपर बताया जा चुका है। यह त्रिकोणाकार पेशी पश्चकपालास्थि की मध्यतोरणिकारेखा (mid. nychal line), अधोग्रैव स्नायु, सातों ग्रैवेयक और बारहों वक्षी कशे------------------ से निकलकर बाहर को चली जाती है। ऊपरी भाग के सूत्र नीचे और बाह्य को, बीच के सूत्र सीधे बाहर को और नीचे के सूत्र १. बाहृय तिर्यक् (external oblique), २. अग्र (latissimus dorsi), ४. बृहत् उरश्छद (pectoralis major), ५. अंसच्छद (deltoid), ६. उर:कर्णमूलिका (sternocleidomastoid), ७. पृष्ठच्छदा, ८. अधोजत्रुका ९. बाह्य पशुंकांतर, १०. लघु उरश्छद ११. अधोंसफलका (subscapularis). १२. तुंडप्रग्रडिकी (coracobrachialis), १३. द्विशिरस्का प्रगंडिकी का ्ह्रस्व शीर्ष (short head of biceps brachialis), १४. बृहत् अंसाभिवर्तनी (teres major), १५. कटिपाश्व्रच्छदा, १६. अग्रदंतुरा, १७. बाह्यपशुंकांतर, १८. समोदरी (rectus abdominis), १९. अनुप्रस्थांत प्रावरणी (transversalis fascio), २०. अनुप्रस्थ औदरी (transversus abdominis) तथा २१. आंतरतिर्यक् पेशी।

ऊपर और बाहर को जाकर, कंडरा द्वारा जत्रुक और अंसफलक (scapula) के अंसप्राचीरक (acromial spine) और अंसकूट प्रवर्ध (acromial process) पर लगते हैं। दोनों ओर की ऐसी ही त्रिकोणकार पेशियाँ मिलकर एक समलंब (trapezium) बना देती हैं। यह पेशी कंधों को ऊपर को उठाती है तथा पीछे को खींचती है पीठ के निचले भाग में भी ऐसी ही एक विस्तृत पेशी, लैटिसिमस डॉर्साई (latissimus dorsii) है, जिसके सूत्र वक्ष के अंतिम छह कशेरुक कंटकों तथा कटि और त्रिक प्रांतों के कंटकों से उदय होकर, निचले वक्ष ओर कटि को ढकते हुए ऊपर को जाकर तीन इंच लंबी कंडरा बनाते हैं, जो ऊपर बाहु की प्रग्रडास्थि के ऊर्ध्व भाग में दोनों पिंडकों के बीच की परिखा में लगती है। यह पेशी बाहुओं को नीचे और पीछे को खींचती है, किंतु हाथों को ऊपर उठाकर किसी वस्तु पर स्थित कर देने पर सारे शरीर को ऊपर को खींच लेती है।

उपर्युक्त दोनों पेशियों के नीचे अनुत्रिक और विक प्रांत से लेकर पेशियां ग्रीवा के प्रारंभ तक फैली हुई हैं, जिनको भिन्न प्रांतों में भिन्न भिन्न नाम दे दिए गए हैं। मुख्य ये हैं : त्रिककंटिका (sacrospinalis), पट्टिका शिरस्का और ग्रैवेयकी (splenius capitis and cwrvicis), बहुपाशा (multifidis), कंटकांतरोया (interspinalis) और अनुप्रस्थांतरीया (intertransversarii)।

उपर्युक्त दोनों बृहत् पेशियों के नीचे अंसापकर्षणी गुर्वी और लघ्वी (rhomboideus majo and minor) पेशियाँ है, जो ऊपर भाग में दंतुरा पश्चिमा ऊर्ध्वा और नीचे के भाग में दंतुरा अधरा (serratus posterior, superior and inferior) पेशियों को ढके हुए हैं। ये कशेरुका कंटकों से निकलकर बाहर की ओर जाकर पर्शुकाओं पर लग जाती है। इन पेशियों के नीचे एक बृहत् मांसपिंड, नीचे श्रोणि से ऊपर पश्च कपाल और नीचे अनुत्रिक तक, फैला हुआ है। वर्णन के लिये इसको कई स्तंभों में बाँट दिया गया है। इसका उल्लेख पहले किया जा चुका है।

धड़ के सामने की ओर वक्ष बृहत् उरश्छद (pectoralis major) से आच्छादित है, जो जत्रुक, उरोस्थि ओर पर्शुकाओं से निकलकर, उसके सूत्र बाहर की ओर जाकर, दो इंच लंबी एक कंडरा द्वारा बाहु की प्रगंडास्थि (humerus) की पिंडकांतरिक परिखा (intertubercular groove) में लगती है। यह पेशी बाहु को भीतर और आगे को खींचती है और भीतर को घुमाती भी है। इस पेशी के नीचे लघु उरश्छदा, छोटी त्रिकोणाकार पेशी है, जो उपर्युक्त पेशी की सहायक है। बृहत् दंतुरा (serratus major) ऊपरी आठ पर्शुकाओं से निकलकर, पीछ जाकर, अंसफलक में लगती है, जिसकी वह आगे को खींचती है। पर्शुकाओं के बीच में बहि: और अंत: पर्शुकांतरिका (intercostales) पेशियां दाहिने और बाएं दोनों ओर स्थित हैं। पर्शुकाओं से नीचे उतरकर उदर की भित्ति तिर्यक बाह्य औदरी (oblique externus and internus abdominis), तिर्यक अंत: औदरी और अनुप्रस्थ औदरी पेशियों की बनी हुई है, जिनपर प्रावरणी (fascia) और त्वचा आच्छादित हैं। ये पेशियाँ मध्यरेखा के दोनों ओर उदर को ढके हुए हैं। बहि:तिर्यक् के सूत्र निचली आठ पर्शुकाओं के बहि:पृष्ठ ओर अधोधारा से निकलकर, नीचे और आगे की ओर जाकर, एक वितान में अंत हो जाते हें, जो दूसरी के समान वितान से उदर के निचले भाग में मिल जाता है। वितान की अधोधारा वंक्षण स्नायु (inguinal ligament) बनती है। अंत:-तिर्यक् के सूत्र श्रोणिफलक के श्रोणिशिखर (iliac crest), कटि प्रच्छदा प्रावरणी और वंक्षण स्नायु से निकलकर, ऊप और भीतर उदर की मध्य रेखा की ओर चले जाते हैं और एक कलाविता में अंत हो जाते हैं, जो उदरीय ऋजु पेशी (rectus abdomiis) के किनारे पर दो स्तरों में विभुक्त हो जाता है। ये दोनों स्तर समोदरी पेशी को दोनों ओर से आवेष्टित करते हुए, उसकी अंत:धरा पर पहुँचकर फिर मिल जाते हैं, और यह जुड़ा भाग उदर की मध्य रेखा में दूसरी ओर के ऐसे ही वितान से जुड़ जाता है। अनुप्रस्था के सूत्र निचली छह पर्शुकाओं की उपास्थियों के अंत:पृष्ठों, पीछे की ओर कटि प्रच्छदा प्रावरणी और श्रोणिफलक धारा से निकलकर अनुप्रस्थ दिशा में उदर की मध्य रेखा (उदर सीवनी) की ओर जाकर, एक कलावितान में अंत हो जाते हैं। इस वितान का ऊपरी भाग समोदरी के पीछे अंत:तिर्यक के वितान के साथ मिला रहता है और निचला भाग समोदरी के सामने आ जाता है। उदरीय ऋजु पेशी एक लंबी, चपटी पेशी है, जो पर्शुकीय उपास्थियों से लेकर नीचे जघ संघानिका तक फैली हुई है, जहाँ उसकी चौड़ाई और भी कम हो गई है। उदर सीवनी के दोनों ओर कलाविता के फलकों से आवेष्टित, यह एक एक पेशी स्थित है।

इस सब पेशियों से उदर सुरक्षित है। इनके संकुचन से उदर के भीतर का दाब बढ़ जाता है, जिससे भीतर के अंग दबते हैं। मलत्याग और मूत्रत्याग में इनका संकुचन सहायक होता है।

ऊर्ध्व अग्रांग (Upper extremity) सारे स्कंध को ढके हुए बलवान अंसच्छदा (deltoideus) पेशी है, जो अंसफल के कंटक (spine), अंसकूट (acromion) और जत्रुक (clavicle) से निकल कर, एक कंडरा द्वारा प्रगंडास्थि के लगभग मध्य में एक गुलिका (tubercle) पर लग जाती है। यह बाहु को खींचकर समकोण पर ले आती है। अब अंसपृष्ठिका और अभिअंसपृष्ठिका पेशियाँ (infra and supra spinatus) और लघु अंस अभिवर्तनी (teres minor) अंशफलक की पीठ पर से निकलकर, प्रगंडास्थि की बृहत् गुलिका (greater tubercle) पर तीनों चिह्नों में लग जाती हैं और बाहु को ऊपर की ओर उठाती हैं तथा बाहर को भी घुमाती बृहत् अंसअभिवर्तनी (teres major) अंशफलक के अध:कोण के पीछे से निकल कर, प्रगंडास्थि के लधुपिंडक के नीचे को जाती हुई वीरणिका पर लगती है और बाहु को वक्ष की ओर खींचकर तनिक ऊपर को उठाती है और बाहु को वक्ष की ओर खींचकर तनिक ऊपर को उठाती है और कुछ बाहर को भी घुमाती है। अधोंसफलका (subscapularis) एक बड़ी त्रिकोणाकर पेशी है, जो अंसफलक के अग्रपृष्ठ से निकलकर, लघु पिंडक पर लगती है। स्कंध से नीचे बाहु में तुंडप्रगंडिकी (coraco brachialis), द्विशिरस्का (biceps), प्रगंडिकी (brachialis) और पीछे की ओर त्रिशिरस्का (triceps) हैं। द्विशिरस्का दो शिरों द्वारा अंसकूट और स्कंध संधि के भीतर अंस-उलूखल (glenoid cavity) के ऊपर के पिंडक से निकलकर, सारी बाहु के सामने होती हुई नीचे जाकर, कंडरा में अंत हो जाती हैं, जो कुहनी के सामने से निकलकर, अग्रबाहु के ऊर्ध्व भाग मे बहिष्प्रकोष्ठास्थि के शिर से नीचे स्थित गुलिका के खुरदरे भाग पर लग जाती है। कुहनी को मोड़ने पर बाहु के सामने जो उभरा हुआ पिंड बन जाता है, वह इसी पेशी का होता है। अग्रबाहु को ऊपर उठाना इसी पेशी का काम है। त्रिशिरस्का तीन शिरों द्वारा निकलकर, प्रगंडास्थि के सारे पिछले पृष्ठ को ढकते हुए कुहनी के नीचे जाकर, कंडरा द्वारा अंत: प्रकोष्ठास्थि के कूर्पर १. पृष्ठच्छदा (trapezius), २. उर:कर्णमूलिका (Sternocleidomastoid), ३. अर्धर्कटकी शिरस्या (Semis pinalis capitis), ४. पट्टिका शिरस्या एवं ग्रैवी (splenius capitis et cervicis), ५. अंसउन्नमनी (levator scapulae), ६. लघु अंसापकर्षणी (rhomboideus minor), ७. बृहत् अंसापकर्षणी (rhomboideus major) ८. अर्ध्यसपृष्ठिका (supraspinatus), ९. अवअंसपृष्ठिका (infrasapinatus), १०. बृहत् अंसाभिवर्तनी (teres major), ११. ट्राइसेप्स ब्रैकाई (triceps brachii), १२. पश्च निम्न दंतुरा (serratus posterior, inferior), १३. बाह्य पर्शुकांतर (external intercostal), १४. कटि अभिपृष्ठ प्रावरणी (lumbodorsal fascia) से आवृत्त त्रिककंटिका (sacrospinalis), १५. महा नितंबिका (glufeus maximus), १६. कटिपार्श्वच्छदा (latissimus dorsi), १९. बृहत् अंसाभिवत्रनी, २०. लघु अंसाभिवर्तनी तथा २१ अंसच्छद (deltoid) पेशी।

प्रवर्ध (olecranon process) के ऊध््व्रा पृष्ठ पर लगती है। यह अग्रबाहु को खींचकर बाहु की लंबाई में ले आती है।

अग्रबाहु की पेशियाँ अग्रबाहु में सामने की ओर ८ पेशियाँ हैं, जिनमें ५ ऊपर और ३ उनके नीचे स्थित हैं। पीछे की ओर १२ पेशियाँ हैं, जिनमें ७ ऊपर, या बाहर की ओर, और ५ उनके नीचे स्थित हैं। सामने की सब पेशियाँ बर्तुल अवताननी (pronatorteris) और दीर्घ करतला (palmaris longus) के अतिरिक्त आकोचनी (flexors) हैं, जो अग्रबाहु को बाहु के समीप खींच लाती हैं। वर्तुल अवताननी हथेली को नीचे, या पीछे की ओर, घुमाती है। दीर्घ करतला हथेली के कलावितान को तानती है, जिससे मणिबंध का स्वत: आकुंचन हो जाता है। नीचे के गंभी समूह में भी १. अंसच्छदा (deltoideus), २. प्रगंडिकी (brachialis), ३. द्विशिरस्का प्रगंड (biceps brachii), ४. प्रगंड प्रकोष्ठिकी (brachioradialis), ५. दीर्घ बहिष्प्रकोष्ठ मणिबंध प्रसारिणी (exensor carpi radialis longus) ६. सामान्य अंगुलिप्रसारिणी (extensor digitorum communis), ७. लघु बहिष्प्रकोष्ठ मणिबंधप्रसारिणी, ८. दीर्घ अंगुष्ठअपवर्तनी (abuctor pollicis longus), ९. लघु अंगुष्ठप्रसारिणी (extensor poillicis brevis), १०. प्रथम करभ अस्थ्यंतर (first dorsal interosseus) पेशी, ११. अंगुष्ठ अपवर्तनी (abductor pollicis), १२. लघु अंगुष्ठ अपवर्तनी, १३. दीर्घा अंगुष्ठ आकुचनी (flexor pollicis longus), १४. बहिर्मणिबंध आकुंचनी (flexor carpi radialis), १५. वर्तु अवताननी (pronator teris), १६. प्रगंडिकी, १७. ट्राइसेप्स ब्रैकाई (triceps brachii), १८. तुंडप्रगंडिकी (coraco-brachialis), १९. बृहत् अंसाभिवर्तनी (teres major), २०. कटिपार्श्वच्छदा (latissimus dorsi) तथा बृहत् उरश्छद (pectoralis major)।

करावताननी चतुरस्रा हाथ को घुमाकर हथेली नीचे, या पीछे को, कर देती है। ये सब आकोचनी पेशियाँ प्रगंडास्थि के अधोप्रांत के अंत:अस्थिकंद (internal condyle) से एक सामान्य कंडरा तथा अस्थिकंद के ऊपर से निकलती हैं और नीचे पतली कंडराओं द्वारा हथेली की तथा अंगुलियों की अस्थियों में लग जाती हैं। इनके नाम ये हैं : वर्तुल अवताननी, दीर्घकरतला, बहि: और अंत: मणिबंध आकुचनी (flexor carpi radialis and ulnaris) पेशियाँ, उत्तर अंगुलि आकुंचनी (flexor digitorum sublimis), नितल अंगुलि आकुचनी, (flexor digitorum profundus), दीर्घा अंगुष्ठ आकुंचनी (flexor pollicis longus) और चतुरस्त्र अवताननी (pronator quadratus), चतुष्कोणकार पेशी, जो मणिबंध (्ध्रद्धत्द्मद्य) के पास अंत: और बहि: प्रकोष्ठास्थियों पर स्थित है और करावतानन करती है।

अग्रबाहु की पीठ की तीन पेशियों को छोड़कर सब प्रसारक पेशियाँ हैं, जो बहिरस्थिकंद के सामान्य कंडा द्वारा, अस्थिकद के ऊपर की तोरणिका तथा वहाँ की कला से निकलती हैं ओर आकुचक पेशियों की भाँति पतली कंडराओं में अंत: होकर, मणिबध की पीठ पर होती हुई, हथेली और अंगुलियों की अस्थियों में लग जाती हैं; किंतु प्रगंड प्रकोष्ठिकी (brachioradialis) पेशी आकुचक है।

इन पेशियों के ये नाम हैं : बहि: प्रकोष्ठमणिबंध प्रसारणी दीर्घ तथा लघु (extensor carpi radialis longus and brevis), कनिष्ठा प्रसारणी (ext. digiti quinti), अंत: प्रकोष्ठमणिबंध प्रसारणी (ext. carpi ulnaris) तथा कूर्परपृष्ठिका (anconeus)। इन पेशियों के नीचे उत्ताननी (supinator), दीर्घ अंगुष्ठ अपवर्तनी (abductor pollicis longus), अंगुष्ठप्रसारणी लघु तथा दीर्घ (extensor pollicis brevis and longus) तथा तर्जनी प्रसारणी (extensor indicis) नामे पेशियाँ स्थित हैं। इन पेशियों के कर्म उनके नामों से बहुत कुछ स्पष्ट हैं।

हाथ की पेशियाँ हथेली में अंगुष्ठ और कनिष्ठा से संबंधित कर्मपेशियाँ हैं। अंगुष्ठ के पीछे हथेली में जो मांसपिंड है, उसमें १. कनिष्ठा अपर्वतनी (abductor digiti quinti), २. अंत: प्रकोष्ठ मणिबंध प्रसारिणी (extensor carpi ulnaris) ३. सामान्य अंगुलि प्रसारिणी, ४. कूर्पर-पृष्ठिका (anconeus) ५. दीर्घ तथा लघु बहिष्प्रकोष्ठ मणिबंध प्रसारणी, ६. प्रगडप्रकोष्ठिकी (brachioradialis), ७. प्रगंडिकी, ८. अंसच्छदा, ९. कटि पाश्व्रच्छदा (latissimus dorsi), १० अवअंस पृष्ठिका (infra spinatus) ११. लघु असाभिवर्तनी, १२. दीर्घ असाभिवर्तनी, १३. ट्राइसेप्स ब्रैकाई, १४. बहिर्मणिबंध आकुंचनी, १५. अतमंणिबंध आकुंचनी, १६. लघु अंगुष्ठ अपवर्तनी तथा १७. अगुष्ठ अपवर्तनी।

ये पेशियाँ स्थित हैं : अंगुष्ठापर्वतनी लघु (abductor pollicis brevis), अंगुष्ठ व्यावर्तनी (opponens digiti pollicis), अंगुष्ठ आकुंचनी लघु (flexor pollicis brevis) और अंगुष्ठाभिवर्तनी (abductor hallucis)।

कनिष्ठा के पीछे का पिंड लघुकरतला (palmaris brevis), कनिष्ठापकर्षणी (abductor digiti quinti), कनिष्ठाकुंचनी लघवी (flex. digiti quinti vrevis) और कनिष्ठा व्यावर्तनी (opponens digiti guinti) पेशियों का बना हुआ है।

इनके अतिरिक्त तीन अस्यंतरिका करभशलाकाओं के बीच सामने और चार अस्थ्यंतरिका (interossei) करतलपृष्ठ की ओर हैं, जो अस्थियों से निकलकर प्रसारक कंडराओं में लग जाती हैं। चार अनुकंडराएँ (lumbricales) अंगुलि प्रसारणी कंडराओं से निकलकर अंगुलि आकुंचनी कंडराओं में लग जाती है।

अध: शाखा की पेशियाँ इस प्रांत की पेशियों का विन्यास ऊर्ध्व शाखा की पेशियाँ का विन्यास ऊध््व्रा शाखा ही के सिद्धांत पर है। आकुंचक, प्रसारक, अभविर्तनी तथा अपर्वतनी पेशियाँ लंबी अस्थियों के चारों ओर लगी हुई हैं। कुछ पेशियाँ अंगों को घुमानेवाली भी हैं। व्याख्या के लिये समस्त शाखा प्रांतों में बँटी हुई है, जिनकी पेशियों का संक्षेप से यहाँ वर्णन किया जाता है। ऊरु प्रांत (thigh) में सामने की ओर पेशियाँ हैं, जिनके नाम ये हैं : ऊरुप्रावरणी ताननी (tensor fascia lata), दीर्घतमा (sartoris), समा औरवी (rectus femoris), बृहत् पार्श्वस्था, बृहत् मध्यस्था, बृहत् अंतस्था (vastis lateralis, intermedius and medialis) और जानुसंधि (articularis genu)। प्रथम पेशी का काम उसके नाम से स्पष्ट है। अगली चार पेशियाँ जंघा (leg) की बलवान प्रसाक है। यद्यपि ये भिन्न भिन्न स्थानों से निकलती हैं, तथापि इनकी एक ही कंडरा बनती है, जो जान्विका (patella) की ऊर्ध्वधारा पर लगकर, एक वितान के रूप में फैलकर, जान्विका को ढक लेती है जो अंतर्जधिका (tibia) के गंडक (tuberosity) तक फैला हुआ है। उसके सामने किंतु भीतर की ओर दीर्घ, लघु और वृहत अभिवर्तनी पेशियाँ (abductors longus, brevis and magnus) स्थित हैं, जो ऊरू को शरीर की मध्य रेखा की ओर खीचती हैं। ये पेशियाँ जघनास्थि (pubic line) की अघ: प्रशाखा और समीप के स्थान से एक कंडरा द्वारा निकलकर, बाहर और नीचे को फैलती हुई चली जाती हैं और सारी ऊर्वस्थि के पीछे के पृष्ठ पर ऊपर से नीचे तक लगी रहती हैं। यहीं पर तनपट्टिका (ढ़द्धaड़त्थ्त्द्म) और कंकताभिका (pectineus) पेशियाँ भी हैं।

पीछे की ओर नितंब प्रांत में महानितंबिका, मध्यनितंबिका और लघु नितंबिका पेशियाँ (gluteus maximus, medius, minimus) नितंब पर के बृहत् मांसपिंड को बनाए हुए हैं। श्रोणिफलक के बहि: पृष्ठ से निकलकर, ये ऊर्वस्थि के महाशिखर (greater trochanter) पर, या उसके पास, ऊर्वस्थि तथा प्रावरणी में लगती हैं। बाह्य और अंत: गवाक्षिकाएँ (exterior and interior) तथा ऊरुचतुरस्रा (quadratus femoris) नामक पेशियाँ भी इसी प्रांत में हैं।

इनसे नीचे ऊरु में केवल तीन पेशियाँ और द्विशिरस्का औरवी (biceps femoris), कडराकल्पा (semitendinosus) और कलाकल्पा (semimembranosus) सारे ऊरुपृष्ठ को ढके हुए हैं। आसनास्थि के पिंडक (ischial tuberosity) से ये पेशियाँ उदय होकर सीधी नीचे जाकर ऊरु के अंतिम तृतीय भाग में कंडराएँ बनाती हैं। द्विशिरस्का की कंडरा अनुजंघिका (fibula) के शिर पर तथा कंडराकल्पा और कलाकल्पा की कंडराएँ प्रजंघिका के अंतरार्बुद से नीचे, पश्चिम पृष्ठ १. महानितंबिका (gluteus maximus), २. द्विशिरस्का औरवी (biceps femoris), ३. बृहत् पार्श्वस्या (vastus lateralis), ४. कंडराकल्पा (semitendinosus) तथा कलाकल्पा (semimembranosus), ५. परापिंडिका (gastrocnemius), ६. पिंडिका (soleus), ७. परापिंडिका तथा पिंडिका की आकिलीज़ (Achilles) कंडरा (tendon), ८. दीर्घ पाद विवर्तनी (peroneus longus) की कंडरा, ९. दीघ पादांगुलि प्रसारिणी (extensor digitorum longus), १०. लघुपाद विवर्तनी की कंडरा ११. लघुपादांगुलि प्रसारिणी, १२. क्रूसाकार पादस्नायु (crucial crucral ligament), १३. अनुप्रस्थ (trasverse) पादस्नायु, १४. लघुपाद विवर्तनी, १५. दीर्घ पादांगुलि प्रसारिणी १६. अग्र प्रजंघिकी (anteriior tibialis), १७. दीर्घ पादविवर्तनी, १८. ऊरु प्रावरणी ताननी (ensor fascia lata) तथा श्रोणिफलक प्रजंघिका क्षेत्र (iliotibial tract), १९. समा औरवी (retus femoris), २०. दीर्घतमा (sartorius) तथा २१. ऊरु प्रावरणी ताननी और श्रोणिफलक प्रजंघिका क्षेत्र।

पर लगती हैं। इस प्रकार पहली कंडरा जानुपृष्ठ के खात (popliteal fossa) की बहि: सीमा और शेश दोनों अंत: सीमा बनाती हैं। इन पेशियों की क्रिया से ऊरु का पीछे की ओर प्रसार होता है, किंतु जंघा का आकुंचन होकर वह खिंच जाती है।

जंघा (leg) यह भाग पूर्व, पश्चिम और पार्श्व प्रांतों में बँटा हुआ है। पूर्व प्रांत में अग्र प्रजंघिकी (ant. tibialis), पादांगुष्ठ प्रसारणी दीर्घा (extensor hallucis longus), पादांगुलि प्रसारणी दीर्घा (extensor digitorum longus) और तृतीय पादविवर्तनी (peroneus tertius) पेशियाँ हैं। ये पेशियाँ प्रजंघिका के बहिरास्थिकंद (ext. condyle) तथा पास के पूर्वपृष्ठ से निकलकर जंघा की अस्थियों को ढकती हुई कंडरा में परिणत हो जाती हैं। प्रथम पेशी की कंडरा पादपृष्ठ पर पहुँचकर प्रथम अनुगुल्फिका (metatarsal) के मूल और प्रथम कोणक पर, द्वितीय पेशी की कंडरा अंगुष्ठि का अंतिम अंगुल्यास्थि के मूल पर, तृतीय पेशी की कंडरा चार कंडराओं में विभक्त होकर दूसरी, चौथी और पाँचवी अनुगुल्फिका के मूल पर लगती हैं। इनके संकोच से पाँव की अंगुलियों का प्रसार होता है तथा पाँव ऊपर को खिंचता है। जंघा के पश्चिम प्रांत में तीन पेशियाँ जंघा परापिंडिका (gastrocnemius), मध्य पिंडिका (coleus) और उपपिंडिका (plantaris) हैं। प्रथम पेशी के दो भाग जंघा के पीछे के मांस पिंड में दोनों ओर स्थित हैं। मध्य पिंडिका इनसे ढकी हुई है। मध्य पिंडिका इनसे ढकी हुई है। इन दोनों पेशियों की एक ही कंडरा है, जो पार्ष्णि (आकिलीज़) कंडरा (tendo achilles) कहलाती है। यह मोटी दृढ कंडरा एड़ी के ऊपर प्रतीत की जा सकती है। चलने के समय इसी कंडरा द्वारा एड़ी ऊपर के खिचती है और पांव आगे बढ़ता है। तृतीय पेशी की लंबी, पतली कंडरा भी पार्ष्णि पर उपर्युक्त कंडरा के पास लगती है और उसकी सहायक हैं।

जंघा के पार्श्वप्रांत में केवल दो दीर्घ और लघु पादविवर्तन पेशियाँ (peroneus longus and brevis) हैं, जो पाँव का विवर्तन करके पाँव को बाहर की ओर मोड़ देती हैं। ये अनुजंघिका के शिर और बहिपृष्ठ तथा अंत:पेशी कलाफलकों से निकलती हैं।

पाँव की पेशियाँ पाँव के पृष्ठ पर केवल पादांगुलि प्रसारणी ्ह्रस्वा (extensor digitorum brevis) पतली, चिपटी, त्रिकोणाकार पेशी स्थित है, जिसकी कंडराएँ चार भागों में विभक्त होकर अंगुष्ठ और तीन अंगुलियों की अस्थियों में लग जाती हैं। पादतल में १८ पेशियाँ तीन स्तरों में स्थित हैं और त्वचा के नीचे पादतल कलावितान (panter aponeurosis) से ढकी रहती हैं। इस वितान को काटने पर पहले स्तर में अंगुष्ठाप्रवर्तनी (abductor pollicis), पादांगुलि संकोचनी ्ह्रस्वा (flexor digitorum brevis) और कनिष्ठापवर्तनी (abductor digiti quinti) हैं। दूसरे स्तर में पादतल चतुरस्रा (quadratus plantaris) और अनुकंडरिकाएँ (lumbricales) हैं। तीसरे स्तर में लघु पादांगुष्ठ आकुंचनी (flexor hallucis brevis), अंगुष्ठाभिवतैनी (abductor hallucis) और कनिष्ठाकुंचनी ्ह्रस्वा (flexor digiti quinti brevis) नामे तीन पेशियाँ हैं। चौथा स्तर सात शलाकांतरीया (interossei) पेशियों का बना हुआ है, जिनमें से चार अनुगुल्फिका के बीच में हैं और तीन अस्थियों के नीचे स्थित हैं। इनकी क्रिया इनके नाम से प्रकट है।

(मुकुंदस्वरूप वर्मा)