पेरेग्रिनस, प्रोतिअस (Peregrinus, Protens) द्वितीय ईसवी शताब्दी में उत्तरी पश्चिमी एशिया माइनर के उत्तरी जिले पेरियम (Parium) का निवासी, (Cynic) सिनिक (भोगनिंदक) मत का दार्शनिक। छोटी उम्र में ही उसपर पितृहत्या का संदेह किया गया और उसे अपना घर छोड़ प्रवासी बनना पड़ा। फिलिस्तीन (Palastine) पहुँचकर वह ईसाई ही नहीं बना वरन् वहाँ के ईसाई समाज का वास्तविक अध्यक्ष बन गया। कट्टर उत्साह तथा कीर्ति की अत्याकांक्षा ने उसे कारागार तक पहुँचा दिया परंतु सीरिया के राज्यपाल (Governor) ने उसे मुक्त कर दिया और उसने परिवाज्रक जीवन का पुनरारंभ किया। कुछ काल तक तो इसमें उसे ईसाइयों की सहायता प्राप्त होती रही, परंतु ईसाई धर्मसंघ की संस्कार विधियों की दूषित करते पाए जाने के कारण वह ईसाई धर्मसंघ की संस्कार विधियों को दूषित करके पाए जाने के कारण वह ईसाई समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। मिस्र देश की यात्रा में उसका प्रसिद्ध सिनिकि संप्रदाय अपना लिया। परंतु उसे जनस्वीकृति न मिली और वह रोम चला गया। वहाँ उसने महाराजा एंटोनिनस पायस (Antoninus Pius) का अपमान किया और उसे वहाँ के नगरधिकारी ने वहाँ से निकल जाने की आज्ञा दे दी। अब वह यूनान आकर एथेंस में रहने लगा। यहाँ उसके आउलस गैलियस (Aulus Galius) आदि बहुत से शिष्य बन गए। परंतु उसने हेरोद ऐटीकस का घोर विरोध किया और उसकी लोकप्रियता घटती गई। यह देखकर उसने सिनिक मत के पालक हेराक्लीज (Heracles) का अनुसरण करते हुए मृत्यु के प्रति अवज्ञा का आदर्श स्थापित करने के लिये तथा दिव्य तत्व से एकाकार हो जाने के उद्देश्य से १६५ ई. में, पूर्व घोषणा करने के उपरांत, ओलिंपिक खेलों के अवसर पर चिता में सब जनता के सामने आत्मबलिदान कर दिया।
(राममूर्ति लूंबा)