पेरीनो, देलवागा (१५००-१५४७) ल्फोरेन्टाइन रोमन शैली का प्रसिद्ध चित्रकार पेरीनो का असली नाम पेरीनो (पियरो) बोनाकोर्सी था। उसका जन्म सन् १५०० में फ्लोरेंस के समीप एक स्थान पर हुआ था। पिता जुए म् ों सब कुछ गँवाकर चार्ल्स अष्टम की सेना में भर्ती हो गया था। पेरीनो ११ वर्ष की उम्र में चित्रकार रिडोफ विरलंदाजो के साथ चित्रकला सीखने लगा। उसने अन्य विद्यार्थियों से कहीं अधिक योग्यता दिखाई और माइकेल ऐंजेलो से व्यंगचित्रों की नकल करने लग गया। तत्पश्चात् रोम जाकर उसने माइकेल ऐंजेलों की कला का जमकर अध्ययन किया। यहीं उसे पुरातन कला का अध्ययन करने का भी अवसर मिला। उस समय के लोकप्रिय कलाकार गिओवानी दा उदीन के साथ भी वह कुछ दिन सहायक के रूप में काम करता रहा।

इस समय तक वह परंपरागत कला की काफी साधना कर चुका था और काफी प्रभावशाली चित्र बनाने लगा था। रेफेलबाइबिल के लिए बनाए गए चित्रों से उसकी ख्याति फैलने लग गई थी। इस समय के उसके उत्कृष्ट चित्रों में 'अब्राहम अबाउट टु सैक्रीफाइज आइजक', 'जैकब रेस्लिग विद द ऐंजेल', 'जोजेफ ऐंड हिज ब्रेदरेन', हेब्रूज क्रासिंग द जार्डन', 'फाल ऐंड कैप्चर ऑव जेरिको' जोशुआ कमांडिंग द सन टु स्टैंडस्टिल' 'बर्थ आफ क्राइस्ट', हिज बैप्टिज्म' तथा 'लास्ट सपर' उल्लेखनीय हैं। इनमें से कुछ ब्रोंज रंग में हैं और कुछ पूरे रंगीन।

रैफेल की कला का उसपर बहुत प्रभाव पड़ा था। रेफेल उसे अपने पुत्र की तरह मानता था और काफी सहायता करता था। पेरीनो ने रैफेल की रेखाकृति के आधार पर बहुत से चित्र बनाए। अब उसकी गिनती अच्छे कलाकारों में होने लगी थी औद जिओलो रोमानो के बाद उसी का नाम लिया जाता था। बाद में चलक जब रैफेल की मृत्यु हो गई तो वह लिंगूरियाँ नामक शहर में चला आया और वहाँ उसने अपना कलाविद्यालय खोला जिसे रोमन स्कूल भी कहा जाता है। इस शैली में उसने दीवार पर बड़े चित्र बनाए जिनका विषय इतिहास तथा पुराण था। ऐसे चित्रों में वार बिटवीन द गाड्स ऐंड जायंट्स', होरेशस का क्लेज डिफेडिंग द ब्रिज' तथा 'फार्टीटयूड' ऑव म्यूटिआस स्केवोला' मुख्य हैं। उसका सर्वोत्कृष्ट चित्र 'शिपरेक ऑव आमनेज' है।

अंत में वह रोम वापस आ गया और पाल तृतीय ने उसे दरबार की ओर से निश्चित संरक्षण दिया। यहाँ उसने रैफेल के चित्रों की मरम्मत की। पाल तृतीय ने उसे साला रेले को सज्जित करने का काम दिया। वह अंत तक परिश्रम से काम रहा और १९ अक्टूबर १५४७ में उसकी मृत्यु हो गई। उसके बनाए कुछ उत्कृष्ट व्यक्तिचित्र आज भी प्रशंसनीय है।

( रामचंद्र शुक्ल)