पेराँ ज़्हाँ (Perrin, Jean सन १८७०-१९४२) नोबेल पुरस्कार प्राप्त, प्रसिद्ध भौतिकविद् तथा रसायनज्ञ थे। फ्रांस के लिले में ही इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पाई : बाद में ये पैरिस के इकोल नॉमेंल सुपिरियर (अध्यापकों के प्रशिक्षण विद्यालय) में विद्यार्थी हो गए। यहीं १८९४-१८९७ ई. तक वे भौतिकी के अध्यापक रहे। १८९७ ई. में इन्हें डॉक्टर ऑव सायंस की उपाधि मिली और १९१० ई. में पैरिस विश्वविद्यालय में भौतिक रसायन के अध्यापक नियुक्त हुए। इस पद पर इन्होंने ३० वर्ष कार्य किया, केवल बीच में १९१४-१९१८ ई. तक वे इंजीनियरों के अफसर बन गए थे। न्यूर्यार्क में पेराँ की मृत्यु हुई।

पेराँ को उनकी खोजों के निमित बहुत से सम्मान मिले। १८९६ ई. में लंदन रॉयल सोसायटी ने उन्हें जूल पुरस्कार भेंट किया, तथा १९२३ में वे फ्रैंच अकादमी के सदस्य हुए और १९३८ ई. में इसके अध्यक्ष बने। १९२६ ई. में भौतिकी के क्षेत्र में इनको ''कल्कन की साम्यावस्था की खोज़'' पर नोबेल पुरस्कार मिला। फ्रांस के शासन ने वैज्ञानिक अनुसंधान विभाग का इन्हें १९३८ ई. में अध्यक्ष बनाया। १९२६ ई. में ये 'कमांडर ऑव द लीजन ऑव ऑनर' भी बनाए गए। कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि भेंट कर संमानित किया, जैसे बर्लिन (१९१०), न्यूयॉर्क (१९१३), मैंचेस्टर (१९१८) तथा ऑक्सफोर्ड (१९२०)।

पेराँ का प्रारंभिक कार्य कैथोड किरणों के संबंध में था। उन्होंने १८९४ ई. में प्रदर्शित किया कि ये किरणें ऋण विद्युत किरणों का पुंज हैं। ये जब धातुओं पर पड़ती हैं, तब धातुओं पर ऋणात्मक आवेश आ जाता है। उन्होंने चुंबक द्वारा किरणों को झुकाकर धातुपात्र पर अपहित किया और यह प्रदर्शित किया कि धातु पर ऋण आवेश आ गया।

पेराँ का अमर कार्य तो कोलाइडी सूक्ष्म कणों की गतिविधि पर है। कोलाइडी विलयनों के कणों में अविच्छिन्न ब्राउनीय गति देखी जाती है। १९०५ ई. में आइन्स्टाइन ने यह विचार प्रकट किया था कि ब्राउनीय गतिवाले इन कणों में वे ही नियम लगने चाहिएँ जो गैसों के अणुओं में लगते हैं, अर्थात् गैस संबंधी नियमों का पालन कोलाइडी कणों को भी करना चाहिए। गैसों के संबंध में ऐवोगैड्रो की कल्पना थी कि एक ही ताप और दाब पर सभी गैसों के समान आयतनों में अणुओं की संख्या भी समान होनी चाहिए। ०0 सें. ताप और ७६० मिमी. दाब पर यह संख्या ६.१ १०२३ होनी चाहिए। पेराँ ने कोलाइडी कणों की ब्राउनीय गति पर जो प्रयोग किए, उनसे इन्होंने न केवल यह प्रदर्शित किया कि ये कण भी गैस नियमों का पालन करते हैं, वरन् इन्होंने ऐवोगैड्रो संख्या भी निकली। उन्हें यह संख्या ६.८ १०२३ के लगभग मिली। पेराँ के इस प्रयोग ने आइन्स्टाइन की कल्पना को पुष्ट कर दिया। कोलाइड के क्षेत्र में पेराँ का यह कार्य मूर्धन्य समझा जाता है। उसके इस कार्य ने अणुओं को परोक्ष क्षेत्र से लाकर प्रत्यक्ष क्षेत्र में प्रस्तुत कर दिया।

पेराँ ने कोलाइड के क्षेत्र में और यह भी कार्य किया। इन्होंने ही कोलाइडों को 'जलस्नेही' और 'जलविरोधी' (हाइड्रोफिलिक और हाइड्रोफोबिक) इन दो वर्गो में विभाजित किया।

(सत्य प्रकाश)