पेनेलोपी यूनानी पुराकथा में प्रसिद्ध एकेरियस और पेरीबोइया की अनुपम सुंदरी पुत्री थी। सौंदर्यप्रेमी अनेक युवकों द्वारा उसे पत्नी रूप में पाने के प्रस्ताव पर पिता ने पैदल दौड़ के विजेता के साथ उसे विवाहित करने का संकल्प किया। फलत: इथाकावासी ओडिसिअस (यूलिसस) के विजयी होने पर वह उसकी पत्नी बनी। विवाह के पश्चात् उसका पुत्र टेलेमेशस उत्पन्न हुआ लेकिन जब वह अबोध बालक ही था, ओडिसियस ट्राय के विरुध युद्ध लड़ने ट्रोजन चला गया और २० वर्षो तक ने लौटने पर उसे मृत मान लिया गया। अब विवाहेच्छुक प्रेमियों की भीड़ पुन: पेनेलोपी के ईद गिर्द मड़राने लगी लेकिन वह विभिन्न उपायों द्वारा प्रेमियों के प्रस्तावों पर अपना निर्णय स्थगित करती गई। उसने उन्हें बताया कि मैं जो जाली बुन रही हूँ, उसकी समाप्ति पर ही निर्णय का अवसर आएगा। लेकिन दिन में वह जितना बुनती रात में उसे उबेड़ डालती जिससे प्रत्याशियों के प्रस्ताव का निर्णय स्थगित होता रहा। उसे लक्ष्य कर एक मुहावरा 'पेनेलोपी का जाल' ही चल पड़ा है।

अंत में विलंग होते देख प्रमियों ने उसे निरंतर घेरे रहना आरंभ किया। तब उसने खीझकर यह निर्णय किया कि प्रेमियों में जो वाण चलाने (अथवा यूलीसस के धनुष को चढ़ाने) की प्रतियोगिता में विजयी होगा, उसे वह वरण करेगी। प्रतियोगिता में सभी प्रत्याशी असफल हुए लेकिन भिक्षुक वेष में एक व्यक्ति सफल हो गया। यह व्यक्ति कोई दूसरा नहीं, ओडिसिअस ही था जो तब तक लौट आया था और छद्भ वेश में प्रतियोगी बना था। विजयी व्यक्ति को पेनेलोपी ने पहचाना। उस पुरुष ने सभी प्रतियोगियों को बाण से मार डाला और स्वयं पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। कथा का दूसरा रूप यह है कि ओडिसिअस के प्रवासकाल में पेनेलोपी को हर्मीज से अथवा संयुक्त प्रेमियों से पेन नामक एक संतान हुई थी। प्रवास से आने पर उसे जब इसका पता चला तो उसने पत्नी का परित्याग कर दिया जो निराश्रित होकर स्पाटर्ज्ञ होते हुए मैंटीनिया गई जहाँ युगों बाद उसकी समाधि बनी।

(श्याम तिवारी)