पृथु वेन का पुत्र होने के कारण राजा पृथु को वैन्य भी कहा गया है। हिंदू पुराणों के अनुसार राजा वेन बहुत दुष्ट स्वभाव का था। ऋषियों के समझाने पर भी जब उसने दुष्टता न छोड़ी तो ऋषियों ने उसे मार डाला। लेकिन राजा के अभाव में राष्ट्र में चोरी और अराजकता बढ़ने लगी तो मुनियों ने उसके मृत शरीर की दाहिनी भुजा का मर्दन किया जिससे पृथु का जन्म हुआ। पृथु का बड़े ठाठ से राज्यभिषेक हुआ और वह राजा घोषित कर दिया गया। उस समय सारी प्रजा अकालग्रस्त थी। प्रजा ने मिलकर राजा से खाने के लिये फल फूल की अभ्यर्थना की जिन्हें पृथ्वी ने रोक रखा था। पृथु ने क्रोध में आकर धनुष बाण द्वारा पृथ्वी का भेदन करना चाहा। यह देखकर पृथ्वी ने राजा पृथु से आत्मरक्षा के लिये प्रार्थना की और वचन दिया कि उसके दोहन से सब प्रकार की संपत्ति प्राप्त होगी। इस प्रकार पृथ्वी के दोहन से जो दूध निकला उससे अन्न, फल, शाक आदि पैदा हुए और प्रजा सुखपूर्वक रहने लगी।
राजा पृथु ने अपनी पत्नी के साथ वन में जाकर घोर तप किया। पृथु की मृत्यु के पश्चात् उनकी पत्नी सती हो गई।
(जगदीशचंद्र जैन)