पूजा सर्वोच्च दैवी सत्ता अथवा देवता का श्रद्धापूर्वक स्मरण और उसके प्रति भक्त पूजा है। उसके आदरार्थ किए जानेवाले धार्मिक कृत्य पूजा के अंग हैं। पूजा काम्य यज्ञ के अंतर्गत आती है। पूजा के लिये पूज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीक अथवा प्रतिमा की उपस्थिति अनिवार्य होती है (दे. 'प्रतिमा')।
पूजा के मुख्यतया दो भेद हैं � बाह्य और मानस। बाह्य पूजा में किसी न किसी प्रतीक की आवश्यकता होती है। यह प्रतीक कलश, देवमूर्ति, शालग्राम, लिंग, गौरीपट्ट, यंत्र शास्त्रानुसार किसी भी रूप में हो सकता है। पूजा में जिन पदार्थों का उपयोग होता है या जो रीतियाँ प्रयुक्त होती हैं सामान्यतया ये हैं � आसन, स्वागत, पाद्य, अर्घ्य आचमन, मधुपर्क, स्नान, वसन, आभरण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और प्रणाम। देवता के अनुसार इन पदार्थो में अंतर हो जाता है। आगमों तथा पुराणों में इसका विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। शिव को बेल की पत्ती चढ़ती है तो विष्णु को तुलसी की, साथ ही इनके मंत्र आदि भी भिन्न होते हैं।
पूजा के पूर्व तथा प्राणप्रतिष्ठा और अंत में विसर्जन आवश्यक है। किंतु सभी प्रकार की पूजाओं में मुद्रा, आसन, जप आदि एक ही प्रकार के नहीं होते। प्रत्येक पद्धति के लिये दीक्षा की आवश्यकता होती है। आगमों के चर्यापद में शैव, समय और नैष्ठिकी इन तीन प्रकार को दीक्षाओं का निर्देश है।
भारतीय पूजाएँ तीन प्रकार की हैं � वैदिक, तांत्रिक और मिश्र। इनमें पंचदेवों � शिव, विष्णु, गणपति, शक्ति और सूर्य के अंतर्गत