पूँजीवाद एक आर्थिक पद्धति है जिसमें पूँजी के निजी स्वामित्व, उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत नियंत्रण, स्वतंत्र औद्योगिक प्रतियोगिता और उपभोक्ता द्रव्यों के अनियंत्रित वितरण की व्यवस्था होती है। पूँजीवाद की कभी कोई निश्चित परिभाषा स्थिर नहीं हुई; देशकाल और नैतिक मूल्यों के अनुसार इसके भिन्न भिन्न रूप बनते रहे हैं। इसका इतिहास मनुष्य के इतिहास जितना ही पुराना है; प्राचीन मिस्र, कार्थेज, रोम, बेबिलोनिया, और यूनान में व्यक्तिगत संपत्ति और एकाधिकार पर आधारित समाजों का इतिहास मिलता है। दासप्रथा सी निजी स्वामित्व की चरम स्थिति रही है। मध्यकाल में यूरोप में इसका अधिक विकास हुआ; १८वीं शताब्दी के पश्चात् पूँजीवाद ने संसार के अनेक भागों में सामंतशाही और वाणिज्यवाद के बीज बोए। आधुनिक युग के आरंभ में व्यापारिक पूँजीवाद ने अपने विकासक्रम में औद्योगिक पूँजीवाद को जन्म दिया, जिसे पूँजोत्पादन पूँजीवाद (Mass Production Capitalism) भी कहा जाता है।

ऐडम स्मिथ ने अपनी 'द वेल्थ ऑव् नेशंस' (१७७६) में प्राकृतिक आधार पर आर्थिक स्वतंत्रता की बात कही है, उसने पूँजीवाद का नाम नहीं लिया है। आर्थिक मामलों में प्राकृतिक स्वतंत्रता को आधार मानकर चलने के संबंध में उसका विश्वास था - जैसा कि अन्य उदारवादियों का भी मत रहा है - कि यदि आर्थिक व्यापार को किसी भी नियंत्रण से मुक्त क्रियान्वित होने दिया जाए, तो इस स्थिति में उत्पादन-वृद्धि अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाएगी, तथा सर्वकल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायता मिलेगी। ऐडम स्मिथ का यह व्यक्तिगत पूँजी और स्वतंत्र उद्योग का उदारवादी मत आधुनिक पूँजीवाद का मेरुदंड हैं।

१८वीं शती में यूरोप की औद्योगिक क्रांति के साथ पूँजीवाद को नया बल मिला। उसके प्रभाव से १७७० और १८४० के मध्य आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्रों में क्रातिकारी परिवर्तन हुए। पूर्वकालीन सारी सभ्यताएँ शोषित सर्वहारा के श्रम की नींव पर बनी थीं। आधुनिक सभ्यता मानवीय आविष्कारों और यांत्रिक शक्ति द्वारा निर्मित हुई है। यांत्रिक उपकरणों की सहायता से मनुष्य की उत्पादनक्षमता में अत्यधिक वृद्धि हुई, और निजी उद्योगों में इस उत्पादन-क्षमता-वृद्धि के उपयोग ने पूँजीवाद के विकास को अत्यधिक बल दिया।

औद्योगिक क्रांति के आरंभिक दिनों में इंग्लैंड में ऐडम स्मिथ का अहस्तक्षेप का सिद्धांत (Laissez-Faire) वैयक्तिक स्वतंत्रता, और अनियंत्रित आर्थिक व्यवस्था का आधार बन गया। किंतु इस औद्योगिक परिवर्तन से उत्पन्न परिस्थितियों ने सरकार को उद्योगपतियों और श्रमिकों की समस्याओं में हस्तक्षेप करने को बाध्य कर दिया। इन्हीं दिनों सोशलिज्म शब्द का प्रयोग प्रथम बार हुआ (कोआपरेटिव मैगज़ीन, १९२७)। इस स्थिति में तथाकथित स्वतंत्र उद्योग, १८वीं शती के उदारतावाद और आज के समाजवादी नियंत्रण का समन्वित रूप हो गा। अमरीकी पूँजीवाद, व्यापार में व्यर्तिगत आधिपत्य और राजकीय संचालन का मिश्रित रूप है। यद्यपि बहुक्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता उद्योग का मुख्य आधार है तथापि पिछले वर्षों वाणिज्य और श्रमिक संगठनों में एकाधिकारिक नियंत्रण की स्थिति द्रुत गति से बढ़ी है। संपत्ति और आय के अव्यवस्थित वितवरण से लोगों का सामाजिक स्तर बहुत नीचे गया है। कंपनी ट्रस्टीशिप और पब्लिक एजेंसी जैसे अनेक संगठनों ने प्रतिद्वंद्विता के सिद्धांत को विकृत कर दिया है।

राष्ट्रीयकरण की योजनाओं से नियंत्रण की मात्रा में वृद्धि हुई, और स्वतंत्र अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त धक्का लगा। प्रत्येक राष्ट्र के सम्मुख यह समस्या रहती है, कि वह अपनी आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार व्यवस्थाएँ करे। व्यवस्था के निर्णय, उपलब्ध श्रमशक्ति और आर्थिक स्रोतों पर निर्भर करते हैं। राज्य प्रतिनिधियों और योजनाविदों के सम्मुख उत्पादन के रूप, मात्रा और तरीके आदि के प्रश्न रहते हैं। समाजवादी व्यवस्था के अंतर्गत इसके लिए सरकारों और सरकार द्वारा नियुक्त योजनासमितियों द्वारा निर्णय किए जाते हैं। पूँजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत एक व्यक्ति या समूह को अपने आर्थिक नियोजन का स्वतंत्र अधिकार रहता है। पूँजीवाद और समाजवादी दोनों राज्य नियोजन की आर्थिक पद्धति अपना सकते हैं; केवल एक अंतर उनमें रहता है कि जहाँ समाजवादी आर्थिक नियोजन पर राज्य के नियंत्रण का प्रभाव पड़ता है, वहीं पूँजीवाद नियोजन, एक ओर उत्पादक तथा उपभोक्ता और दूसरी ओर मुक्त वाणिज्य में अस्थिर मूल्यों के परस्पर संबंधों से प्रभावित होता है। उपभोक्ता अपनी ऋणक्षमता द्वारा अपनी माँग प्रकट करता है; इस तरह सामान्यत: उत्पादक, अपना पूँजीविनियोजन उन द्रव्यों के उत्पादन में करता है, जिन्हें उपभोक्ता बाजार में अधिकतम लाभ पर बेचा जा सके। उपभोक्ता की माँग, जो प्राय: प्रचार और विज्ञापन से प्रभावित होती रहती है, के अनुसार उत्पादन के उपलब्ध साधनों का उपयोग होता है।

पूँजीवाद या स्वतंत्र उद्योग के समर्थक इस तथ्य से परिचित है कि इस पद्धति में गुणों के साथ कुछ गंभीर दोष हैं। अनियंत्रित स्वतंत्र उद्योग और स्वतंत्र प्रतियोगिता व्यक्तिवाद को जन्म देते हैं। १७वीं शती के आसपास अंग्रेज व्यापारी कंपनियों के स्टॉक खरीदने में काफी खतरा उठाते थे, और उसके बाद अपनी अपनी पूँजी की रक्षा के लिए ऐसे तरीकों का प्रयोग करते थे, जिनसे आर्थिक सामाजिक शोषण और अन्याय को बल मिलता था। अंग्रेजी उपनिवेशों के सारी दुनिया में बढ़ने के कारणों में एक कारण यह भी था। पूँजीवाद का इतिहास, संक्षेप में उत्पादक व्यापारी और उपभोक्ता के बीच संघर्ष का इतिहास है।

आर्थिक शोषण ने श्रमिकों के संगठित आंदोलन को जन्म दिया; परिणास्वरूप वेतनभोगी श्रमिकों के पक्ष में राज्यों द्वारा कानून बनाए गए। पूँजीवादी सामंतवादी समाज के विरुद्ध प्रथम क्रांति रूस (१९१७) में हुई; और लेनिन के नेतृत्व में समाजवादी पद्धति का प्रयोग हुआ। तदनंतर अनेक देशों में समाजवादी क्रांतियाँ हुईं हृ यूगोस्लाविया, हंगरी, बलगेरिया, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, अल्बानिया, क्यूबा और चीन आदि ने राज्यनियंत्रण की पद्धति को अपनाकर पूँजीवादी एकाधिकार को बिल्कुल ही समाप्त कर दिया है।(चारुचंद्र त्रिपाठी)