पूँजी तथा लाभांश (Capital & Dividend) पूँजी साधारणतया उस धनराशि को कहते हैं जिससे कोई व्यापार चलाया जाए। किंतु कंपनी अधिनियम के अंतर्गत इसका अभिप्राय अंशपूँजी से हैं; न कि उधार राशि से, जिसे कभी कभी उधार पूँजी भी कहते हैं। प्रत्येक कंपनी के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने सीमानियम में अंशपूँजी, जिसे रजिस्टर्ड, प्राधिकृत अथवा अंकित पूँजी कहते हैं, तथा उसके निश्चित मूल्य के अंशों में विभाजन का उल्लेख करे। प्राधिकृत पूँजी के कुछ भाग को निर्गमित (इशू) किया जा सकता है और शेष को आवश्यकतानुसार निर्गमित किया जा सकता है। निर्गमित भाग के अंशों के अंकित मूल्य को निर्गमित पूँजी कहते हैं। जनता जिन अंशों के क्रय के लिए प्रार्थनापात्र दे उनके अंकित मूल्य को प्रार्थित पूँजी (Subscribed captial) तथा अंशधारियों द्वारा जितनी राशि का भुगतान किया जाए उसे दत्तपूँजी (Paid captial) कहते हैं।

कंपनी चाहे तो नए अंश निर्गमित करके अंशूपूँजी में वृद्धि कर सकती है, सभी या कुछ पूर्णदत्त अंशों को स्कंधों में परिवर्तित कर सकती है सभी या कुछ अंशों को कम कीमत के छोटे अंशों में परिवर्तित कर सकती है अथवा जिन अंशों का निर्गमन न हुआ हो उन्हें निरस्त कर सकती है। ये सब परिवर्तन तभी संभव हैं जब अंतिर्नियमों (आर्टिकल्स ऑव असोसिएशन) में इनकी व्यवस्था हो।

अधिकतर कंपनियों में निम्न प्रकार के अंश होते हैं :

  1. पूर्वाधिकार अंश (Preference shares)- इस श्रेणी के अंशधारियों को निश्चित दर से लाभांश प्राप्त करने का तथा कंपनी के समापन के समय पूँजी के पुनर्भुगतान का पूर्वाधिकार होता है। ऐसे अंश असंचीय हो सकते हैं१ यदि अंश संचीय हों तो किसी वर्ष लाभ न होने के कारण इन्हें लाभांश न मिल सके तो वे इसे अगले वर्षों में भी लेने के अधिकारी हैं।
  2. साधारण अंश- (भारतीय कंपनी अधिनियम, १९५६ के अनुसार इन्हें समता अंश (Equity shares) कहते हैं) : पूर्वाधिकार अंशधारियों के लाभांश के भुगतान अथवा पूँजी पुनर्भुगतान के पश्चात् शेष पर इस श्रेणी के अंशधारियों का अधिकार होता है।
  3. स्थगित अंश (Deferred shares)- इन्हें संस्थापकों के अंश अथवा प्रबंध अंश भी कहते हैं। साधारणतया ऐसे अंश कंपनी के संस्थापकों को ही निर्गमित किए जाते हैं। इस श्रेणी के अंशधारियों को लाभांश एवं पूँजी के पुनर्भुगतान का अधिकार अन्य सभी श्रेणियों के अंशधारियों के पश्चात् मिलता है।
  4. विमोचनशील पूर्वाधिकार अंश (Redeemable Preference shares)- साधारणतया किसी भी कंपनी को अपने अंश स्वयं क्रय करने का अधिकार नहीं होता। किंतु यदि कंपनी के अंतर्नियमों में ऐसा अधिकार हो तो कंपनी अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुसार ऐसे अंश भी निर्गमित किए जा सकते हैं जिनका विमोचन हो सकता हो अर्थात् कंपनी ऐसे अंशों को वापस क्रय कर सकती है।

अंशधारियों की प्रत्येक श्रेणी के अधिकार भी भिन्न हो सकते हैं और साधारणतया इन अधिकारों की व्यवस्था कंपनी के अंतर्नियमों में होती है। अंतर्नियमों में इन अधिकारों में परिवर्तन करने का अधिकार होने पर इनमें परिवर्तन किया जा सकता है। अंतर्नियमों में ऐसी व्यवस्था न होने पर उनका संशोधन किया जा सकता है जिससे कंपनी को इन अधिकारों के परिवर्तन का अधिकार प्राप्त हो सके।

लाभांश (Dividend)- किसी व्यापारिक कंपनी के अंशधारियों में लाभ के जिस भाग का विभाजन किया जाता है उसे लाभांश कहते है। प्रत्येक व्यापारिक कंपनी को लाभांश वितरण करने का समवायी अधिकार होता है। संचालक इस बात की सिफारिश करते हैं कि कितनी राशि लाभांश के रूप में घोषित की जाए। उसके पश्चात् कंपनी अपनी सामान्य बैठक में लाभांश की घोषणा करती है, किंतु यह राशि संचालकों द्वारा सिफारिश की गई राशि से अधिक नहीं होनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त अंतर्नियमों द्वारा अधिकृत होने पर संचालक दो सामान्य बैठकों के बीच में ही अंतरिम लाभांश की घोषणा भी कर सकते है।

यत: लाभांश कंपनी के लाभ का ही भाग होता है, अत: इसे केवल लाभ से ही दिया जा सकता है, न कि पूँजी से।

लाभांश के विषय में अंशधारियों के सामान्य अधिकारों, जैसे लाभांश की दर तथा पूर्वाधिकार आदि का प्रकथन कभी कभी सीमानियम में ही कर दिया जाता है जिससे यथासंभव, उन अधिकारों में परिवर्तन न हो सके। कई बार इनका प्रकथन अंतर्नियमों में किया जात है और कभी कभी दोनों प्रलेखों में भी इनका प्रकथन होता है। किस ढंग से लाभांश की घोषणा तथा अदायगी की जाएगी, इसका प्रकथन साधारणतया अंतर्नियमों में ही होता है।

जब तक कंपनी चालू रहती है, वह पूरा लाभ अंशधारियों में वितरण करने के लिए बाध्य नहीं होती। लाभांश वितरण करने के स्थान पर, अंतर्नियमों में इसकी व्यवस्था होने पर यह अपने लाभ को पूँजी में परिवर्तित (Capitalise) कर सकती है। लाभांश को इसकी घोषणा के दिन से ऋण माना जाता है तथा यह देय हो जाता है। कभी कभी अंतर्नियमों में यह भी प्रावधान होता है कि घोषणा के बाद निश्चित समय तक लाभांश के अयाचित रहने पर इसे जब्त किया जा सकता है।

कंपनी से सदस्य अंतर्नियमों के नियमानुसार लाभांश की अधियाचना कर सकते हैं किंतु यह आवश्यक है कि ऐसे सदस्यों का नाम लाभांश घोषणा के दिन कंपनी के रजिस्टर में दर्ज हो। जब अंशों का हस्तांतरण लाभांश घोषित करने पर उसके बहुत निकट किस तिथि को हो, तो हस्तांतरक तथा हस्तांतरी यह भी संविदा कर सकते हैं कि लाभांश किसको मिले। यदि इसका अधिकार हस्तांतरी को हो तो इसे लाभांश सहित (Cum Dividened) ���i���iɮ�h� E��i�� ���, +x��l�� ���i���iɮ�h� ��ɦ��ƶ� ��ʽ�i� (Ex Dividend) E�����i�� ���*