पुलिस अँगरेज़ी भाषा का यह शब्द हमारे दैनिक वार्तालाप की भाषा में सहज की प्रवेश पा चुका है। इस शब्द का प्रयोग विभिन्न देशकाल में विभिन्न अर्थों में होता रहा है और इसकी परिभाषा पुलिस के कर्तव्यों की तत्कालीन प्रचलित धारणा पर आधारित रही है। एक युग में इंग्लैंड में पुलिस का कार्यक्षेत्र जनमार्गों पर प्रकाश एवं स्वच्छता रखने तक सीमित था। वर्तमान युग में पुलिस शब्द से सभी जगह राज्य के उस कर्मचारीवर्ग का बोध होता है जिसके ऊपर राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर शांतिव्यवस्था के स्थापन, व्यक्ति और संपत्ति की सुरक्षा, अधिनियमों का विधिवत् परिपालन कराने आदि का दायित्व होता है।

हिंदू काल में इतिहास में दंडधारी शब्द का उल्लेख आता है। भारतवर्ष में पुलिस शासन के विकासक्रम में उस काल के दंडधारी को वर्तमान काल के पुलिस जन के समकक्ष माना जा सकता है। प्राचीन भारत का स्थानीय शासन मुख्यत: ग्रामीण पंचायतों पर आधारित था। गाँव के न्याय एवं शासन संबंधी कार्य ग्रामिक नामी एक अधिकारी द्वारा संचलित किए जाते थ। इसकी सहायता और निर्देशन ग्राम के वयोवृद्ध करते थे। यह ग्रामिक राज्य के वेतनभोगी अधिकारी नहीं होते थे वरन् इन्हें ग्राम के व्यक्ति अपने में से चुन लेते थे। ग्रामिकों के ऊपर ५-१० गाँवों की व्यवस्था के लिए 'गोप' एवं लगभग एक चौथाई जनपद की व्यवस्था करने के लिए 'गोप' एवं लगभग एक चौथाई जनपद की व्यवस्था करने के लिए 'स्थानिक' नामक अधिकारी होते थे। प्राचीन यूनानी इतिहासवेतताओं ने लिखा है कि इन निर्वाचित ग्रामीण अधिकारियों द्वारा अपराधों की रोकथाम का कार्य सुचारु रूप से होता था और उनके संरक्षण में जनता अपने व्यापार उद्योग-निर्भय होकर करती थी।

सल्तनत और मुगल काल में भी ग्राम पंचायतों और ग्राम के स्थानीय अधिकारियों की परंपरा अक्षुण्ण रही। मुगल काल में ग्राम के मुखिया मालगुजारी एकत्र करने, झगड़ों का निपटारा आदि करने का महत्वपूर्ण कार्य करते थे और निर्माण चौकीदारों की सहायता से ग्राम में शांति की व्यवस्था स्थापित रखे थे। चौकीदार दो श्रेणी में विभक्त थे- (१) उच्च, (२) साधारण। उच्च श्रेणी के चौकीदार अपराध और अपराधियों के संबंध में सूचनाएँ प्राप्त करते थे और ग्राम में व्यवस्था रखने में सहायता देते थे। उनका यह भी कर्तव्य था कि एक ग्राम से दूसरे ग्राम तक यात्रियों को सुरक्षापूर्वक पहुँचा दें। साधारण कोटि के चौकीदारों द्वारा फसल की रक्षा और उनकी नापजोख का कार्य करता जाता था। गाँव का मुखिया न केवल अपने गाँव में अपराध शासन का कार्य करता था वरन् समीपस्थ ग्रामों के मुखियों को उनके क्षेत्र में भी अपराधों के विरोध में सहायता प्रदान करता था। शासन की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों की देखभाल फौजदार और नागरिक क्षेत्रों की देखभाल कोतवाल के द्वारा की जाती थी।

मुगलों के पतन के उपरांत भी ग्रामीण शासन की परंपरा चलती रही। यह अवश्य हुआ कि शासन की ओर से नियुक्त अधिकारियों की शक्ति क्रमश: लुप्तप्राय होती गई। सन् १७६५ में जब अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी हथिया ली तब जनता का दायित्व उनपर आया। वारेन हैंस्टिंग्ज़ ने सन् १७८१ तक फौजदारों और ग्रामीण पुलिस की सहायता से पुलिस शासन की रूपरेखा बनाने के प्रयोग किए और अंत में उन्हें सफल पाया। लार्ड कार्नवालिस का यह विश्वास था कि अपराधियों की रोकथाम के निमित्त एक वेतन भोगी एवं स्थायी पुलिस दल की स्थापना आवश्यक है। इसके निमित्त जनपदीय मजिस्ट्रेटों को आदेश दिया गया कि प्रत्येक जनपद को अनेक पुलिसक्षेत्रों में विभक्त किया जाए और प्रत्येक पुलिसक्षेत्र दारोगा नामक अधिकारी के निरीक्षण में सौंपा जाय। इस प्रकार दारोगा का उद्भव हुआ। बाद में ग्रामीण चौकीदारों को भी दारोगा के अधिकार में दे दिया गया।

इस प्रकार मूलत: वर्तमान पुलिस शासन की रूपरेखा का जन्मदाता लार्ड कार्नवालिस था। वर्तमान काल में हमारे देश में अपराधनिरोध संबंधी कार्य की इकाई, जिसका दायित्व पुलिस पर है, थाना अथवा पुलिस स्टेशन है। थाने में नियुक्त अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा इन दायित्वों का पालन होता है। सन् १८६१ के पुलिस ऐक्ट के आधार पर पुलिस शासन प्रत्येक प्रदेश में स्थापित है। इसके अंतर्गत प्रदेश में महानिरीक्षक की अध्यक्षता में और उपमहानिरीक्षकों के निरीक्षण में जनपदीय पुलिस शासन स्थापित है। प्रत्येक जनपद में सुपरिटेंडेंट पुलिस के संचालन में पुलिस कार्य करती है। सन् १८६१ के ऐक्ट के अनुसार जिलाधीश को जनपद के अपराध संबंधी शासन का प्रमुख और उस रूप में जनपदीय पुलिस के कार्यों का निर्देशक माना गया है।

पुलिस के कर्तव्य - पुलिस के मुख्यत: निम्नलिखित कार्य हैं :

(१) अपराधनिरोध एवं अपराधों का विवेचन।

(२) यातायात नियंत्रण

(३) राजनीतिक सूचनाओं का एकत्रीकरण तथा राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा।

अपराधनिरोध के अंतर्गत न केवल व्यक्ति एवं संपत्ति संबंधी अपराधों का निरोध होता है वरन् मादक द्रव्यों का तथा गाँजा, भाँग, अफीम, कोकीन के तस्कर व्यापार का निरोध और वेश्यावृत्ति संबंधी अधिनियम को लागू कराने की कार्यवाहियाँ भी सन्निहित हैं। यातायात संबंधी व्यवस्था स्थापन में ट्रेफिक पुलिस द्वारा नगरों में यातायात का सुनियंत्रण एवं मोटर संबंधी अधिनियमों का परिपालन कराने की कार्रवाई की जाती है। इस संबंध में अमरीका आदि में राष्ट्रीय मार्गों पर मोटर साइकिल अथवा मोटर गाड़ियों पर यंत्रों से सुसज्जित पुलिस अधिकारियों द्वारा गश्त कराए जाते हैं। राजनीतिक सूचनाओं के एकत्रीकरण का कार्य देश के भीतर एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुप्तचरों द्वारा होता है। इसके निमित्त देश के भीतर विभिन्न समुदायों एवं वर्गों की राजनीतिक प्रवृत्तियों, गतिविधि एवं नीतियों से संबंधित सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं। प्रत्येक युग में राजनीतिक षड्यंत्र एवं हत्याकांड होते रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों में विश्व में इस संबंध में अनेक घटनाएँ होने के कारण अपने देश के एवं बाहर के महत्ववाले व्यक्तियों की सुरक्षा का आयोजन प्रत्येक राष्ट्र की पुलिस द्वारा किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मित्र अथवा शत्रु राष्ट्रों की नीतियों के संबंध में सूचनाएँ भी एकत्र की जाती हैं।

अपराधविवेचन के निमित्त निरंतर वैज्ञानिक विधियों और साधनों का प्रयोग हो रहा है। हत्या और बलात्कार से संबंधित विवेचनाओं में रक्त, केश ओर वीर्य के वैज्ञानिक विश्लेषण से सहायता मिलती हैं। जिन अपराधों में आग्नेय आयुधों का व्यवहार होता है उनको विवेचनाओं के निमित्त आग्नेय आयुध से संबंधित विश्लेषण किया जाता है। अंगुलिचिह्न से अपराधों के विवेचन में एक अत्यंत विश्वसनीय साक्ष्य उपलब्ध होता है। अत: प्रत्येक देश में अंगुलिचिह्नों के पर्याप्त अभिलेख एकत्र किए जाते हैं ताकि कालांतर में घटनास्थल पर उपलब्ध अंगुलि चिह्नों की उनसे तुलना की जा सके एवं अपराधों की शोध का कार्य हो सके। पदचिह्नों, हस्तलिपियों आदि का विश्लेषण भी अपराध विवेचन में सहायक होता है। वैज्ञानिक रीति से उन्नतिशील देशों में 'लाइ डिटेक्टर' के द्वारा अपराधी की मनोदशा का ज्ञान करते हुए झूठ सच का अनुमान किया जाता है। अनेक देशों में कुत्तों का उपयोग अपराधी का पता लगाने के लिए होता है।

विद्रोह एवं उपद्रवी तत्वों के दमन के निमित्त अनेक अवसरों पर पुलिस को अश्रुवाहक गैस, लाठी अथवा आग्नेय आयुधों का प्रयोग करना पड़ता है। हमारे देश में प्रादेशिक पुलिस का एक अंग, जिसे आर्म पुलिस, प्राविंशिल आर्म कांस्टेबुलरी, स्पेशल आर्म फोर्स आदि नाम विभिन्न प्रदेशों में दिए गए हैं, विशेष आशंकाजनक स्थितियों में मुख्यत: उपद्रवों के दमन के लिए प्रयुक्त होता है। सामान्य प्रशासन अथवा अपराधों की रोकथाम थानों पर नियुक्त सिविल पुलिस द्वारा की जाती है।

सी. आई. डी. - प्रत्येक प्रदेश में अंतर्जनपदीय अथवा अंतप्रदेशीय अपराधों की विवेचना एवं प्रादेशिक स्तर पर राजनीतिक सूचनाओं के एकत्रीकरण और महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा का कार्य प्रदेश के गुप्तचर विभाग द्वारा संपन्न होता है। हमारे देश के इंटेलीजैंस ब्यूरो द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक गतिविधियों का निरीक्षण किया जाता है।

खुफिया पुलिस - सामान्य वार्तालाप में जब पुलिस शब्दों का प्रयोग होता है तब किसी छह्मवेशधारी अनुसंधानकर्ता अथवा गुप्त दूत की कल्पना मूर्त होने लगती है। युगों से प्रयोग में आनेवाली इस शब्दावली के द्वारा प्रजाजनों की गतिविधियों का परोक्ष से निरीक्षण करनेवाले राज्य के अधिकारियों का बोध होता है। अपराधों की विवेचना और अपराधियों के कार्यकलापों की जाँच में अनेक ऐसे तत्व निहित होते हैं जिनका प्रत्यक्ष उपायों अथवा विधियों से अनावरण नहीं हो पाता। पुलिस की वेशभूषा देखकर अपराधियों अथवा अपराध के संबंध में जानकारी रखनेवालों के कार्यकलापों और उनके संलापों में स्वाभाविक निरोध उत्पन्न हो जाता है और उनके कारण तथ्यों की विवेचना कठिन हो जाती है। इसलिए यह पद्धति रही है कि छद्मवेश धारण करके घटित अथवा घटनीय अपराधों की विवेचना युक्तिपूर्वक की जाए और साक्ष्य एवं प्रमाणों का एकत्रीकरण किया जाए।

खुफिया पुलिस का उपयोग कालांतर में राजनीतिक प्रवृत्तियों से संबंधित सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए भी किया जाने लगा। आज के युग में व्यक्ति अथवा संपत्ति संबंधी अपराधों के अतिरिक्त राजनीतिक एवं सामयिक महत्व की सूचनाएँ प्राप्त करने में खुफिया पुलिस का उपयोग होता है। खुफिया पुलिस हमारे देश में गुप्तचर विभाग के बृहत् संगठन के रूप में आज विद्यमान है। भारत के प्रत्येक प्रदेश में गुप्तचर विभाग मुख्यत: दो अंगों में विभक्त है। एक अंग महत्वपूर्ण अपराधों के अनुशीलन एवं विवेचन का कार्य करता है तथा दूसरा अंग आंतरिक व्यवस्था, सुरक्षा आदि से संबंधित राजनीतिक महत्व की सूचनाएँ एकत्र कता है।

अपराधों को विवेचना में स्थनीय पुलिस भी बहुधा अपने कर्मचारियों अथवा सूचनादाताओं के द्वारा गुप्त विधि से सूचनाएँ एकत्र करती है। ये सूचनादाता यद्यपि पुलिस के कर्मचारी नहीं होते तथापि अपराधविवेचन के लिए पुलिस संगठन के भी अविछिन्न अंग हैं।

सी. आई. डी. अथवा गुप्तचर विभाग के अब अन्य अनेक उपांग हैं जिनके द्वारा अपराधविवेचन में परोक्ष सहायता मिलती है। प्रदेश में केंद्रीय रूप में एवं प्रत्येक जनपद में स्थानीय रूप में अपराधों के रिकार्ड्स रखने का कार्यालय होता है जहाँ महत्वपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध होती हैं। अंगुलियों की छाप, पदचिह्नों की छाप का एक केंद्रीय कार्यालय प्राय: प्रदेशीय सी. आई. डी. के अंतर्गत बना है जहाँ दंडित अपराधियों के अंगुलचिह्नों आदि का रिकार्ड रहता है।

प्रदेशिय सी. आई. डी के वैज्ञानिक विभाग द्वारा अपराध अन्वेषण में वैज्ञानिक विधियों से अर्थात् आग्नेयायुधों के परीक्षण, हस्तलिपि परीक्षण आदि द्वारा सहायता दी जाती है। इसी प्रकार अपराधविवेचन के लिए भारत के कुछ प्रदेशों, जैसे बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि में कुत्तों का भी सफलतापूर्वक उपयोग होता है।

भारत के विशेष पुलिस संस्थान द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर एवं प्रदेश के गुप्तचर विभाग द्वारा प्रादेशिक स्तर पर शासकीय अधिकारियों के आचरण की जाँच अथवा उनके विरुद्ध किए गए अभियोगों की विवेचना होती है। इसके अतिरिक्त इन्हीं दोनों संगठनों द्वारा धोखादेही, जालसाजो आदि की अंतर्जनपदोय अथवा अंत:प्रादेशिक घटनाओं अथवा अभियोगों की विवेचना की जाती है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि 'खुफिया पुलिस की व्यक्तिसूचक कल्पना का नया संस्करण हो चुका है और आज के युग में 'खुफिया पुलिस' विस्तृत बहुअंगी संगठनों का प्रतीक हैं। (दे. 'गुप्तचर')।

विशेष पुलिस संस्थान - दिल्ली में एक महानिरीक्षक के निर्देशन में संचालित विशेष पुलिस संस्थान द्वारा सरकार के विभागीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार एवं व्यावसायिक धोखादेही के महत्वपूर्ण मामलों की विवेचना की जाती है। प्रत्येक वर्ष इस विशेष पुलिस संस्था की जाँचों के फलस्वरूप भ्रष्टाचारी अधिकारियों के विरुद्ध वैधानिक तथा विभागीय कार्रवाई की जाती है।

अन्य देशों की पुलिस पद्धति - अमरीका- अमरीका के ४९ राज्यों का कोई केंद्रीय पुलिस शासन नहीं है। केंद्रीय एवं राज्य सरकार, काउंटी शासन, नगरों के और ग्रामीण रूप से पुलिस दल स्थापित दल हैं। २०वीं सदी के मध्य में ऐसे सवैतनिक अथवा अर्धवैतनिक पुलिस कर्मचारियों की कुल संख्या लगभग पौने दो लाख थी। न्यूयार्क सरीखे नगर से स्थानीय पुलिस का प्रत्येक २० हजार व्यक्ति पर एक अथवा दो पुलिस कर्मचारी का अनुपात था। दूसरे महायुद्ध का आरंभ होने तक प्रत्येक राज्य ने अपना एक छोटा-मोटा पुलिस समुदाय निर्मित कर लिया था। केंद्रीय रूप से केवल फेडरल ब्यूरो ऑव इनवेस्टीगेशन नाम की संस्था ही काम करती है। पुलिस कर्मचारियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होते हुए भी अमरीकन पुलिस प्रचुर साजसज्जा, मोटर गाड़ियों और आदेशवाहक साधनों से युक्त हैं और इसलिए कार्यकुशल हैं।

इंग्लैंड - सन् १८२९ में स्थापित मैट्रोपालिटन पुलिस ब्रिटेन के कुशल आधुनिक पुलिस शासन की प्रतीक है। अन्य नगरों और काउंटियों में स्थानीय काउंटी कौंसिल नियुक्त चीफ कांस्टेबिल एवं कांस्टेबिल पुलिस शासन के स्तंभ है। मैट्रोपालिटन पुलिस की संख्या सन् १९४८ में लगभग २० हजार थी। इसके अतिरिक्त काउंटी और नगरों के पुलिस दल की संया लगभग ४८ हजार थी। स्काटलैंड यार्ड मैट्रोपालिटन पुलिस का मुख्यालय है और यहाँ के चतुर कर्मचारी, साजसज्जा और सूचनाएँ ब्रिटिश पुलिस का गौरव बढ़ाती है।

इंग्लैड अथवा अमरीका की पुलिस का जनता के प्रति दृष्टिकोण विश्वास और सम्मानपूर्ण हैं। सन् १८२९ में इंग्लैंड में राबर्ट पील ने पुलिस का संगठन किया था। तब जनता ने पुलिस को पील के गुंडों का गिरोह कहा था। किंतु आज ब्रिटेन का पुलिसमैन वहाँ का लोकप्रिय अधिकारी है। वहाँ के कानून में पुलिस कर्मचारी के प्रति अविश्वास की मूलभूत धारणा नहीं है। दुर्भाग्य से अंग्रेजों के दो शताब्दी के शासन में भारतीय पुलिस को जनप्रेरणाओं के दमन के निमित्त व्यवहृत किया गया। परिणामस्वरूप, भारतवर्ष में पुलिस को सामान्यत: अविश्वास की दृष्टि से देखा जाता है। भारतवर्ष का साक्ष्य संबंधी अधिनियम, जिसमें पुलिस के निम्न अथवा उच्च पदाधिकारी के समक्ष की गई अपराधस्वीकृति अमान्य ठहराई गई है, इस बात के ज्वलंत प्रमाण है कि पुलिस की सत्यशीलता पर उस अधिनियम के रचयिताओं ने कितना अविश्वास किया था। लंदन अथवा अमरीकन पुलिस के सामान्य पदाधिकारी तक का कथन इस बात का प्रमाण माना जाता है कि अपराधी ने उसके सम्मुख अपराध स्वीकार किया हैं। इसके विपरीत हमारे देश के साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत पुलिस के महानिरीक्षक तक का कथन अपराधी की स्वीकारोकित को प्रमाणित करने के लिए अमान्य है। नए युग और नई पुलिस के विन्यास के निमित्त उक्त अधिनियम में और पुलिस के प्रति जनता के दृष्टिकोण में संशोधन परम आवश्यक है।

(भगवतस्वरूप चतुर्वेदी)