पुलकेशिन प्रथम और द्वितीय बदामी के चालुक्य राजवंश में पुलकेशिन नाम के दो राजा थे। इस राजवंश ने छठी शती ईसवी प्रथमार्ध से आठवीं शती के मध्य तक दक्षिण में राज्य किया। विक्रमादित्य का पुत्र पुलकेशिन प्रथम ५३५ ई. के लगभग गद्दी पर और उस राजवंश का प्रथम प्रमुख राजा हुआ। उसने सत्याश्रय, सुविक्रम, पृथिवीवल्लभ तथा श्रीवल्लभ उपाधियाँ धारण कीं। उसने कई राज्य के बीजापुर जिले में आधुनिक वातापी के दुर्ग की नींव थीं। वंश के पतन तक यह इसको राजधानी रहा। उसने हिरण्यगर्भ महादान (स्वर्णदान उत्सव) और अश्वमेध किए जो उस काल में धार्मिक कृत्य और स्वरूप में प्रतीकात्मक था। उसने मनुस्मृति, पुराण रामायण, महाभारत और इतिहास का अध्ययन किया था। उसकी रानी दुर्लभदेवी बातपुर वंश की थी। उसने कीर्तिवर्मन प्रथम और मंगलेश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। पुलकेशिन प्रथम की मृत्यु ५६६ ई. के लगभग हुई और उसके पश्चात् कीर्तिवर्मन् और मंगलेश क्रमश: उत्तराधिकारी हुए। कीर्तिवर्मन् के तीन पुत्र थे- पुलकेशिन् द्वितीय, कुब्ज विष्णुवर्धन और जयसिंह वर्मन्। उसके अनुज मंगलेश ने ६१० ई. तक राज्य किया। अपनी मृत्यु के कुछ ही पहले उसने अपने भतीज़े पुलकेशिन द्वितीय का अधिकार उल्लंघन कर अपने पुत्र के लिए उत्तराधिकार प्राप्त करने का चेष्टा की। इस चाल से पुलकेशिन द्वितीय और राजा में गृहयुद्ध छिड़ गया। युद्ध में राजा को जान से हाथ धोना पड़ा।

पुलकेशिन द्वितीय ६१० ई. में गद्दी पर बैठा। उसने सत्याश्रय पृथ्वीवल्लभ और श्रीवल्लभ उपाधियाँ धारण कीं और उसे 'परमेश्वर', पद दिया गया था। राज्यारोहण के तुंरत बाद पुलकेशिन को उन विद्रोही दलों का सामना करना पड़ा जो गृहयुद्ध के बाद की अव्यवस्था से लाभ उठाने की चेष्टा कर रहे थे। अप्पायिक और गोविंद नामक दो सरदारों ने भी मारधी के उत्तर में चालुक्यों के राज्य पर आक्रमण कर दिया और पुलकेशिन उनका सामना करने को आगे बढ़ा। उसने गोविंद पर कूटनीति से विजय प्राप्त की, अप्पायिक को खदेड़ दिया और थोड़े ही दिनों में अपने राज्य में शांति स्थापित की। इसके बाद उसने राज्य का विस्तार करने के लिए समीप और दूर के देशों पर कई आक्रमण किए। दक्षिण में उसने वनवासी पर घेरा डाला, कदंबों को पराजित किया और उसके बाद मैसूर के गंगों पर विजय प्राप्त की। इस अवसर पर उसने आलूपों को भी वश में किया, जो मैसूर के शिमोगा जिले में स्थानीय शासक थे। उसने पश्चिमी सागरतट के देशों के विरुद्ध अपनी सेना बढ़ाई और सागरतट पर स्थित पुरी को घेर लिया तथा कोंकन के मौर्यों से सफलतापूर्वक लड़ा।

पुलकेशिन ने नर्मदा के उत्तर के देशों के विरुद्ध शस्त्र ग्रहण किया और पहले लाट पर आक्रमण किया। उसने मालव विजय की, जो गुजरात में वलभी के मैत्रिकों के राज्य का एक भाग था। इस विजय के मार्ग में वह राजपूताना में गुर्जज देश पहुँचा जहाँ के राजा पर उसने विजय प्राप्त की। उत्तरी अभियान में संभवत: उसका कन्नौज के राजा हर्षवर्धन से सामना हो गया था। जिसमें उसने उसकी सेना के दक्षिण की ओर के बढ़ाव को सफलतापूर्वक रोक दिया। उत्तर की ओर के अभियानों को समाप्त कर पुलकेशिन ने अपनी सेना पूर्वी देशों के राजाओं के विरुद्ध बढ़ाई। उसने कोशल पर आक्रमण किया जो मध्य प्रदेश का आधुनिक रायपुर जिला है, और उसे जीत लिया। उसका अनुज कुब्जविष्णुवर्धन और अधिक पूर्व की ओर एक बड़ी सेना लेकर बढ़ा और कलिंग पर आक्रमण किया। इस प्रदेश के उत्तर की सीमा उड़ीसा का गंजम जिला तथा दक्षिण में गोदावरी जिला है। उसने सरलता से पिष्टसुर नामक स्थान के साथ उसे जीत लिया और उसके बाद कुशाल झील के चारों ओर के प्रदेश का विध्वंस किया। कुशाल झील आजकल कोल्लेरू झील के नाम से प्रसिद्ध है और गोदावरी तथा कृष्ण के बीच स्थित है। इन दोनों नदियों के बीच में स्थित भूंखड आंध्र नाम से विख्यात था, जिसकी राजधानी वेंत्री या आधुनिक वेगी, थी। वेगी गाँव मद्रास राज्य के गोदावरी जिले के एल्लोर तालुका के मुख्य नगर एल्लोर से सात मील उत्तर में है। कुब्जविष्णुवर्धन को, जो महाराष्ट्र का गवर्नर था, पुलकेशिन द्वितीय द्वारा आंध्र और कलिंग के शासन का कार्य दिया गया था। कुब्जविष्णुवर्धन के उत्तराधिकारी 'पूर्वीय चालुक्यों' के नाम से विख्यात थे) इन्होंने आंध्र पर कई शताब्दियों तक राज्य किया। पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लवों से, जो दक्षिण भारत पर अपनी राजधानी क्रांची से राज्य करते थे, एक दीर्घकालीन युद्ध किया। उसने पल्लव महेंद्रवर्मन प्रथम को पराजित किया, जिसने अपनी राजधानी की प्राचीरों के पीछे रक्षा के लिए शरण ली। इस विजय के पश्चात् उसने पल्लवों के राज्य पर आक्रमण किया और तब कावेरी नदी पार कर दक्षिण के चेर, चोल, और पांड्य लोगों के साथ मैत्री स्थापित की। किंतु चालुक्य राजा की दक्षिण पर विजय अल्पकालीन थी और संभवत: वह अपने शत्रु द्वारा दक्षिण से निकाल बाहर किया गया। ६४२ ई. के लगभग पल्लव नरसिंहवर्मन प्रथम ने चालुक्यों के राज्य पर आक्रमण किया और संग्राम में पुलकेशिन द्वितीय को पराजित किया तथा संभवत: मार डाला, और बदामी नगर को लूटा पाटा।

पुलकेशिन द्वितीय अपने युग के महानतम राजाओं में था और उसके उत्तराधिकारी बहुत दिनों तक संकल-उत्तर-यथाधीश्वर हर्षवर्धन पर उसकी विजय पर गर्व करते रहे। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने; जिसने उसराजा की मृत्यु के एक वर्ष बद ६४१ ई. में दक्षिण की यात्रा की थी, अपने यात्रावर्णन में उसके विषय में बहुत प्रशंसापूर्वक उल्लेख किया है।

सं.ग्रं. - फ्लीट-डायनेस्टीज़ आव द कनारीज़ डिस्ट्रिक्ट्स; बांबे गज़ेवियर, खंड १, भाग २; आर. जी. भंडारकर : हिस्ट्र आव द डेकन; घोष : भारत का प्राचीन इतिहास।(धीरेंद्रचंद्र गांगुली)