पुरानूतन और आदिनूतन युग आदिनूतन युग (Eocene Period) से स्तर-शैल-विज्ञान में एक नया कल्प आरंभ होता है, जो तृतीय कल्प के नाम से विख्यात है। खटीयुग (Cretaceous Period) के अपराह्न में समस्त पृथ्वी पर समुद्री अतिक्रमण और भूसंचलन के फलस्वरूप पृथ्वी की समाकृति म् ों अनेकानेक परिवर्तन हुए। जीव एवं वनस्पति जगत् में भी अत्यधिक परिवर्तन हुए। खटीयुग के जीव एमोन्वायड्स, रेंगनेवाले जीव प्राय: लुप्त हो गए और उसके और उनके स्थान पर नए जीवों का प्रादुर्भाव हुआ। इस नवीन युग के अरीढ़धारियों में फोरामिनिफेरा और रीढ़धारियों में स्तनधारी वर्ग के जीवों का स्थान विशेष है।

आदिनूतन युग तृतीय काल का सर्वप्रथम युग है। इसका समय आज से लगभग छह करोड़ वर्ष पहले माना जाता है। इस युग के निचले भाग को पुरानूतनयुग (Palaeocene Period) कहते हैं, यद्यपि यह वर्गीकरण सारे संसार के स्तर-शैल-विज्ञान में नहीं माना जाता।

आदिनूतन युग में भारत की भौमिकीय अवस्था - कई दृ ष्टयों से इस युग का भारतीय स्तर-शैल-विज्ञान में विशेष स्थान है। भारत की आधुनिक समाकृति और तटीय सीमाएँ इसी युग में निर्धारित हुई। उत्तर में टेयोज़ सागर के प्रत्यावर्तन के साथ हिमालय पर्वतमाला के अन्तर्गत प्रथम भूसंचलन भी इसी काल में हुए तथा परिणामस्वरूप अनेक स्थानों पर आग्नेय उद्गार हुए। दक्षिणी भारत का क्षारीय लावा, जो डेक्कन ट्रैप (Deccan trap) के नाम से विख्यात है, विशेष रूप से इसके अंतर्गत आता है।

विस्तार तथा वर्गीकरण - इस युग के शैलसमूह संसार के प्राय: सभी बड़े देशों में मिलते हैं। भारत में हिमालय पर्वतमाला की दक्षिणी चोटियों पर, पूर्व से पश्चिम तक हर स्थान पर, इस युग के शैल मिलते हैं यद्यपि सिंध (पाकिस्तान) और असम में इस प्रणाली का विस्तार बहुत अधिक एवं पूर्ण है। ऐसा मत है कि हिमालय की रचना के समय वहाँ स्थित जलसमूह खाड़ियों के रूप में इन दोनों जगहों में फैल गया, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ इस युग के निक्षेप पूणतया मिलते हैं। भारत के दक्षिणी प्रायद्वीप में कठियावाड़, कच्छ, गुजरात, राजस्थान, और पूर्वी तट पर भी आदिनूतन युग के शैलसमूह स्थित हैं। इस युग के स्तर कालानुसार तीन अवधियों में विभाजित हैं : आदिनूतन या पुरातन, मध्य आदिनूतन एवं ऊपरी आदिनूतन अवधि : इन अवधियों में भारत के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार के निक्षेप बने, जो स्थानीय नामों से विख्यात हैं। इन शैलसमूहों का कालबिभाजन एवं काल-प्रकरण-समतुल्यता आगे सारणी में दिखाई है।

आर्थिक महत्व - इस प्रणाली के शैलसमूहों में कोयला एवं तेल के मिलने से इनका विशेष आर्थिक महत्व है। इन खनिजों के अतिरिक्त

शैल समूहों का काल विभाजन एवं काल-प्रकरण-समतुल्यता

काल विभाजन

सिंध

उत्तर-पश्चिम भारत

असम

जीव अवशेष

ऊपरी आदिनूतन (Upper Eocene)

किरथर

चरत श्रेणी

जयंतिया श्रेणी

(Jaintia Series)

न्यूमूलाइट्स (Nummulites)

ग्रैस्टोपॉड्स (Gastropods)

एकर्नोयड्स (Echinoids)

मध्य आदिनूतन (Middle Eocene)

लाँकी श्रेणी

हिल लाइमस्टोन (Hill Limestone) या सुवाथू शैल-समूह

डिशांग श्रेणी (Disang Series)

न्यूमूलाइट्स, नॉिटलस (Nautilus)

पूरानूतन (Palaeocene)

रानीकोट श्रेणी

एकिनॉयड्स, प्रवाल, फोरामिनिफेरा

खटीयुग (Cretaceous Period)

कारडिटा ब्यूमनटाइ शैल

खटी प्रणाली के शैलसमूह

बॉक्साइट (Bauxite), जिपसम (Gypsum), नमक और चूना पत्थर भी इस युग को शिलाओं में स्थित हैं।

(रामचंद्र सिन्हा)