पुद्गल जैन दर्शन के अनुसार स्थूल भौतिक पदार्थ पुद्गल कहलाता है क्योंकि यह अणुओं के संयोग (दूरयंति) और वियोग (गलंति च) का खेल है। बौद्ध धर्मदर्शन में आत्मा को पुद्गल कहते हैं। यह पाँच स्कंधों- रूप, वेदना, संस्कार, संज्ञा और विज्ञान का ऐसा समूह है जो निर्वाण की अवस्था में विशीर्ष हो जाता है।(रामचंद्र पांडेय)