पीर इस्लाम धर्म के सूफी संप्रदाय में प्रचलित आध्यात्मिक मार्गदर्शक अथवा ज्ञानदाता गुरु के लिए प्रयुक्त पद। आध्यात्मिक गुरु को पीर के अतिरिक्त मुर्शिद अथवा उस्ताद भी कहते हैं। यद्यपि पीर शब्द फारसी का है तथापि फारस में इसका प्रचलन उपर्युक्त अर्थ में उतना नहीं है जितना भारत, पाकिस्तान और तुर्की में है। फारस के यजीदी समुदाय में इस अर्थ में प्राय: उस्ताद शब्द का व्यवहार होता है।
वैसे आध्यात्मिक क्षेत्र का ज्ञाता और उसका पथप्रदर्शक पीर कहा जा सकता है, किंतु व्यावहारिक रूप में पीर या मुर्शिद पद का वास्तविक अधिकारी वही है जो किसी आध्यात्मिक गुरुपरंपरा (तरीका) द्वारा अनुयायियों के मार्गदर्शन का नियमित अधिकार प्राप्त कर चुका हो। यह अधिकार उसे दर्वेश परंपरा के किसी अधिकृत गुरु से ही उत्तराधिकार रूप में प्राप्त होता है। इसका निवास भी प्राय: किसी अध्यात्म परंपरा के संस्थापक की मजार पर ही होता है। इन पीरों अथवा शेखों का अपने अनुयायियों पर बड़ा प्रभाव रहता है और उनका कलाम या फतवा (वचन या व्यवस्था) उनके लिए कानून जैसी मान्यता रखता है जिसका वे निर्विरोध पालन करते हैं।
(श्याम किशोर वासिष्ठ)