पीपाजी गांगरोल के शाक्त राजा। घर में आए हुए एक वैष्णव साधु का इन्होंने उचित सम्मान नहीं किया, तब साधु ने देवी की स्तुति करते हुए प्रार्थना की कि राजा के मन से कृष्ण तथा काली की आराधना का भेदभाव जाता रहे। देवी के प्रसाद से राजा के हृदय में कृष्णभक्ति का आविर्भाव हुआ और उन्होंने काशी जाकर रामानंद से दीक्षा ग्रहण की। बाद में उन्होंने अपनी छोटी रानी सीता के साथ द्वारकापुरी की यात्रा की। वहाँ कृष्ण के दर्शन न पाकर वे तीर्थाटन के लिए निकल पड़े। वृंदावन में वे एक दरिद्र ब्राह्मण के यहाँ ठहरे। ब्राह्मणी ने अपना परिधान बेचकर इनका सत्कार किया। लज्जावश उसके सामने न आने पर सीता देवी ने अपने परिधेय वस्त्र का आधा हिस्सा देकर उसकी लाज का निवारण किया। राजा को बड़ी ग्लानि हुई और उन्होंने ब्राह्मण की दरिद्रता दूर करने की श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए वहाँ से प्रस्थान कर दिया। उनकी गणना प्रमुख वैष्णवों में की जाती है।