पिसारो कामिल (Pissaro Camille) फ्रांसीसी चित्रकार। इसका जन्म वेस्ट इंडीज़ के सेंट टामस नामक स्थान में १० जुलाई, १८३० को हुआ। इसके माता-पिता यहूदी थे जो स्पेन से आकर यहाँ बस गए थे। २१ वर्ष की उम्र में कामिल पेरिस गया और वहाँ कोरो (Corot) का शिष्यत्व ग्रहण किय। उसके प्रारंभिक चित्रों के कोरो का प्रभाव भी विशेष देख पड़ता है। मेलवे (Melbey) तथा बारनिजॉ (Barbizon) का संपर्क भी इसे प्राप्त हुआ। इसके चित्रों के विषय मिले (Millet) के अधिक निकट है। यद्यपि मिले की भाँति जनजीवन का मर्म इसकी रचनाओं में चित्रित नहीं है, फिर भी प्रकाश के प्रभावचित्रण में यह उससे कहीं अधिक आगे है। इसकी विशेष रुचि भू-दृश्य-चित्रण में थी लेकिन रूपाकृति द्वारा नहीं - प्रभावचित्रण द्वारा। कामिल, नवोदित प्रभाववादी आंदोलन के आकर्षण में आ गया और अपना संबंध माने एदुआर से स्थापित कर लिया। १८७० में वह इस दल का सदस्य भी बन गया।
कामिल ने प्रकाश के प्रभाव का चित्रण तो कुशलतापूर्वक किया ही, १८८५ में बिंदुओं की सहायता से भी चित्र बनाना प्रारंभ कर दिया लेकिन कुछ काल पश्चात् पुन: व्यापक भूमिका पर आ गया। जीवन के अंतिम दिनों में उसने अपनी सर्वोत्तम कृतियों का निर्माण किया जिनमें वातावरण की सजीवता और रंगों का सुंदर संयोजन है। इन चित्रों के विषय - पेरिस की गलियाँ और रूइन के पुल इत्यादि हैं। कामिल को जो ख्याति पेरिस में मिली, वह बाहर नहीं मिल सकी। इसकी सात रचनाएँ लक्सम्बर्ग में हैं। १८९० के पश्चात् थोड़े थोड़े अंतराल से इसके चित्रों की कई प्रदर्शनियाँ लगीं। १२ नवंबर, १९०३ को इसकी मृत्यु पेरिस नगर में हुई।
(गुरुदेव त्रिपाठी)