पिल्ला, चङ्ङम्पुषा कृष्ण मलयालम कवि (१९१२-१९४८)। मध्य केरल में इटप्पल्लि नामक स्थान में जन्म। २० वर्ष की अवस्था के पूर्व ही वे समस्त केरल में लोकप्रिय हो गए। उनकी कविता का प्रमुख विषय प्रेम के कटु अनुभव से उत्पन्न भावुकतापूर्ण संघर्ष है। उन्होंने दंभ एवं विश्वासघात के विरुद्ध अभियान किया जो पर्याप्त मात्रा में फैले हुए थे। उनके गीतकाव्य और बड़ी बड़ी कविताएँ ३० से अधिक संकलनों में प्रकाशित हुई हैं। 'वाष्पांजलि', 'मोहिनी', 'संकल्प कांति', 'पाटुन्न पिशाचु', 'हेमंतचंद्रिका', 'तिलोत्तमा', 'मनस्विनी' उनके कुछ संकलनों में से हैं। उनकी अत्यधिक सर्वप्रिय पुस्तक 'रमणन' है जो शोकप्रधान अभिनव ग्राम्य काव्य है। यह एक साथी कवि इटप्पल्लि राघवन पिल्ला के दु:खांत प्रेम के संबंध में लिखा गया है जबकि उसने तरुण अवस्था में ही आत्महत्या कर ली थी। 'रक्त पुष्पङ्ङल्ल' उनकी प्रगतिशील एवं क्रांतिकारी कविताओं का संकलन है। कृष्णपिल्ला यूरोपीय भाषाओं एवं हिंदी के रोमांटिक काव्यों से अधिक प्रभावित हुए। उनका दृष्टिकोण या आदर्श अविचल नहीं था। उन्हें जीवन की विषमताओं का निश्चित बोध नहीं था। अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति के ऊपर कठोर बौद्धिक नियंत्रण का अभाव एवं स्वच्छंद रचनाओं ने उनकी कविताओं को शक्तिहीन एवं फीका बना दिया है। किंतु निष्कपटता, मनोहर संगीतमयता, कोमलकांत पदावली एवं अभिव्यक्तियों की सुगमता से पढ़नेवाली सामान्य जनता के मध्य उन्हें प्रिय बना दिया।(जी. बालमोहन तंपी)