पिरिमिडिन (Pyrimidine) के अन्य नाम हैं : मेटाडायेज़ीन तथा मायेज़ीन। इस वर्ग के यौगिक शरीररचनात्मक प्रक्रमों में अत्यंत महत्वपूर्ण भाग लेते हैं। ये नाइट्रोजनयुक्त कार्बनिक यौगिक होते हैं। इस वर्ग में महत्वपूर्ण पौध क्षारक, विशेषत: प्यूरिन तथा यूरिक अम्ल के संजात और यूरिया के चाक्रिक संजात भी आते हैं।

पिरिमिडिन (सूत्र ३) को बार्विट्यूरिक अम्ल (मैलानिल यूरिया, सूत्र १) पर फॉस्फोरस ऑक्सिक्लोराइड की क्रिया कराने से प्राप्त २, ४, ६- ट्राइक्लोरोपिरिमिडिन (सूत्र २) का अपचयित करके बनाते हैं।

पिरिमिडिन स्थायी तथा क्रिस्टलीय यौगिक है (गलनांक २० -२२ , क्वथनांक १२४ ), जो पानी में घुलकर उदासीन विलयन बनाता है, परंतु अम्लों के साथ लवण बनाता है। इसे अजातीय समान गुणवाले होते हैं। पिरिमिडिन के सजात बहुत से आधारभूत जीवनप्रक्रमों में भाग लेते हैं। कॉसेल (Kossel, सन् १८९३) ने सर्वप्रथम पता लगाया कि ये कोशिकाकेंद्र में विद्यमान हाते हैं, जहाँ पर कोशिका की बृद्धि से संबंधित संश्लेषणात्मक परिवर्तन हाते रहते हैं।

यूरेसिल (Uracil) २, ६ डाइ आक्सिपिरिमिडिन (सूत्र ४) है। यह श्वेत क्रिस्टलीय चूर्ण (गलनांक ३३८ ) होता है, जो गरम जल में घुलता है। एमिल फिशर तथा रीडर ने (सन् १९०१) यूरिया तथा ऐक्रिलिक अम्ल के संघनन से डाइहाइड्रोयूरेसिल बनाया, जिसे मॉनोब्रोमो सजात में परिवर्तित करके उससे यूरेसिल प्राप्त कर लिया गया।

थाइमोन (Thymine) ५-मेथिल-२, ६-डाइआक्सिपिरिमिडिन (सूत्र ५) है। एमिल फिशर ने ही इसका भी संश्लेषण किया। यह पानी से क्रिसटलीकृत किया जाता है तथा रंगहीन क्रिस्टल बनता है।

इसके रंगहीन क्रिस्टल होते हैं (क्वथनांक ३२० -३२५ , विघटन के साथ)। ह्वीलर तथा जॉनसन (सन् १९०३) ने इसे संश्लेषित किया। नाइट्रस अम्ल की क्रिया से यह यूरेसिल में परिवर्तित हो जाता है तथा बेरियम परमैंगनेट से ऑक्सैलिक अम्ल तथा बाइयूरेट में उपचयित हो जाता है।

ये तीनों पदार्थ न्यूक्लीइक अम्लों के अपघटन से प्राप्त होते हैं। (रवींद्रप्रताप राव)