पिम, जान आंग्ल राजनीतिज्ञ जान पिम का जन्म १५८४ ई. में समरसेटशायर के ब्राईमोर स्थान पर हुआ। इनकी शिक्षा ब्रोडगेट्स हॉल (जिसे आजकल पेंब्रोक कालिज कहते हैं) और मिडिल टैंपिल में हुई। इसके पश्चात् वे हैंपशायर, विल्टशायर और ग्लॉस्टरशायर के लिए राजा के लगान प्रापक नियुक्त हुए।

सन् १६१४ में और फिर १६२१ में वे कालने से संसद् के सदस्य निर्वाचित हुए। उनके २८ नवंबर के भाषण के कारण उन्हें प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। इस भाषण के माध्यम से उन्होंने राजा से प्रार्थना की कि वह एक आयोग द्वारा धर्मवैमत्य का दमन कराएँ। जब राजा जेम्स ने संसद सदस्यों की भाषण स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने की चेष्टा की तो पिम ने उसका विरोध किया, और सदनपंजी में यह अंकित कराया कि संसदीय विशेष अधिकार लोकसदन के सदस्यों के नि:संदेह प्राचीन जन्मसिद्ध अधिकार हैं। राजा ने इन पृष्ठों को फाड़ डाला और १६२२ में संसद् भंग कर दी। पिम कुछ दिन नजरबंद रहे। १६२४ की संसद् में वे टैविस्टक से निर्वाचित हुए और अपने शेष जीवन तक इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। १६२६ की संसद् में बकिंघम के विरुद्ध महाभियोग के वे मुख्य प्रबंधक थे। १६२८-२९ की संसद् में अधिकारों के प्रार्थनापत्र (पिटीशन ऑव राइट) के वे समर्थक थे।

अगले ११ वर्षों तक संसद् की कोई बैठक नहीं हुई। जब १६४० में संसद् बुलाई गई तब उसने संसदीय विशेषाधिकार संबंधी तथा अन्य शिकायतों पर १७ अप्रैल को निरंतर दो घंटे भाषण दिया। उन्होंने राजा चार्ल्स को विवश किया कि वह नई संसद की बैठक बुलाए। जब राजा ने नई संसद के लिए आदेश दिया तो पिम और हैंपडन घोड़े पर चढ़कर गाँव-गाँव मैं पयूरिटन सदस्यों के समर्थन के लिए घूमते फिरे। पिम ने १६४० की संसद् में स्ट्रेफर्ड के विरुद्ध राजा के परामर्शदाता के रूप में विश्वासघात करने का महाभियोग लगाया। १६४२ में राजा ने पिम के विरुद्ध महाभियोग लगाना चाहा। वह स्वयं सदन में उन्हें गिरफ्तार करने आया, किंतु असफल रहा। इस घटना ने गृहयुद्ध को अटल कर दिया। संसद् की विजय के लिए संगठन अनिवार्य हो गया किंतु पिम इस विजय को देख न पाया क्योंकि ८ दिसंबर, १६४३ का नासूर ने उसकी जीवनयात्रा समाप्त कर दी और उसके शव को राज्यशव का मान प्राप्त हुआ।

(श्री गिरिराजकाोिर गहराना)