पिट, विलियम (पुत्र) (१७५९-१८०६) चैथम के अर्ल विलियम पिट तथा लेडी हेस्टर ग्रेनविल से उत्पन्न द्वितीय पुत्र विलियम पिट इंग्लैंड के राष्ट्रनायक तथा प्रधान मंत्री के रूप में विख्यात हुआ। उसका जन्म २८ मई को १७५९ ई. में केंट प्रांत के हैस (Hayes) स्थल पर हुआ था। बाल्यावस्था की अस्वस्थता के कारण तथा पिता के इच्छानुसार किसी पाठशाला में न जाकर उसने प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। १२ वर्ष की अवस्था तक वह प्राचीन साहित्य में यथेष्ट दक्षता प्राप्त कर चुका था। १७८० ई. में विधि स्नातक बना और अगले वर्ष संसद् में सम्मिलित हुआ। बर्क द्वारा प्रस्तुत आर्थिक सुधारों के बिल पर उसके प्रथम भाषण ने ही उसकी धाक जमा दी। उसे एक मातहत पद सरकार में प्रदान किया गया, किंतु उसने आपत्ति प्रकट की। शैलबर्न के मंत्रित्वकाल में उसे १७८२ ई. में अर्थमंत्री का कार्यभार मिला। फाक्स एवं नार्थ के संयुक्त मंत्रित्वकाल के उपरांत दिसंबर, १७८३ ई. में २५ वर्ष की अवस्था में उसे प्रधान मंत्री का कार्यभार मिला। हाउस ऑव कामंस में बहुमत न मिलने के कारण उसे प्रारंभिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं, परंतु १७८४ के साधारण निर्वाचन में वह बहुमत से सत्तारूढ़ हुआ और फिर २० वर्ष तक उसने सतत रूप से शासन किया।
उसका शासन दो निश्चित कालों में विभाजित है। प्रथम काल १७८३ से १७९३ तक का है तथा दूसरा १७९३ से उसकी मृत्यु तक (१८०६)। प्रथम कालावधि में पिट ने शांति एवं सुधार की दिशा में उदार और व्यापक नीति अपनाई। उसका प्रथम लक्ष्य राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति को स्थायित्व की ओर ले जाना था। ऐडम स्मिथ का अनुयायी होने के कारण, उसने इंग्लैंड और आयरलैंड के बीच व्यापारिक नियंत्रणों को समाप्त करना चाहा किंतु इंग्लिश व्यपारियों के विरोध के कारण असफल रहा। उसने फ्रांस से व्यापारिक संधि की, जिसके परिणामस्वरूप दोनों राष्ट्रों ने व्यापारिक आयातों पर चुंगी कम कर दी। १७८६ ई. में सिंकिंग फंड की स्थापना तथा सेना में कटौती करके बृहत राष्ट्रीय ऋण को चुकाने का कार्य प्रारंभ किया। निर्जन नगरों का प्रतिनिधित्व समाप्त करके औद्योगिक क्रांति द्वारा वृद्धिप्राप्त नगरों को प्रतिनिधित्व देने के लिए संसदीय सुधार की योजना बनाई किंतु राजा और ह्विग दल दोनों के विरोध के कारण इसे कार्यान्वित करने में असफल रहा। घूस तथा भ्रष्टाचार की प्रथा समाप्त कर, शासन को शुद्ध किया। रोमन कैथोलिकों का विधिप्रणाली तथा सेना में अपनाना, सार्वजनिक फांसी का उन्मूलन तथा दासप्रथा की समाप्ति इत्यादि उसकी उदार नीति के परिचायक हैं। १७८८ ई. के रीजेंसी के प्रश्न पर उसने संसदीय अधिकार को ही उच्चता प्रदान की।
पिट इंग्लैंड की उपनिवेशीकरण की योजना का पक्षपाती था। पिट के १७८४ ई. के भारतीय कानून ने ईस्ट इंडिया कंपनी को दोषों से मुक्त कर, राजा तथा कंपनी का द्वैत शासन प्रचलित किया। पिट के कनाडा वैधानिक नियमों ने कुछ अंश तक कनाडा को स्वाधीन सत्ता प्रदान की। उसके शासन में आस्ट्रेलिया का उपनिवेशीकरण हुआ। आयरलैंड की ओर उदारता का पक्षपाती होने के कारण उसने कैथोलिक त्राण का प्रयत्न किया, किंतु इसमें भी राजा के विरोध के कारण उसे असफल होना पड़ा। इस अवधि में पिट की वैदेशिक नीति का लक्ष्य शांति था। व्यापारिक संधि के द्वारा उसने फ्रांस से शांतिपूर्ण संबंध रखने के प्रयत्न किए। उसने हालैंड और प्रशा से प्रगाढ़ मैत्री संबंध स्थापित किए। फ्रांस की राज्यक्रांति घटित होने पर उसने तटस्थता की नीति अपनाई। वस्तुत: राज्यक्रांति से उसकी हार्दिक सहानुभूति थी।
किंतु क्रांतिपूर्ण फ्रांस के आक्रामक दृष्टिकोण तथा क्रांतिजन्य युद्धों के छिड़ जाने के कारण पिट के शासन का द्वितीय काल का १७९३ ई. में प्रारंभ हो जाता है। सुधार एवं शंति का पिट सदैव के लिए लुप्त हो गया। क्रांतिकारी विचारों के इंग्लैड में प्रवेश करने की आशंका से अभिभूत हो, उसने उदारता के स्थान पर प्रतिक्रियावादी नीति अपनाई। उसने संसदीय सुधार का विरोध किया। हेबियस कार्पस ऐक्ट को स्थगित किया। विदेशी कानून पास करके विदेशियों का प्रवेशनिषेध किया तथा देशद्रोह नियम के द्वारा राजनीतिक सभाएँ अवैध घोषित की। सारा आंदोलन दबा दिया गया तथा राजनैतिक क्लबों के नेताओं को बंदी कर दिया गया। इस नीति ने राजनैतिक सुधार को एक पीढ़ी के लिए अवरुद्ध कर दिया।
पिट की युद्धनीति का उद्देश्य फ्रांस के विरुद्ध भिन्न राष्ट्रीय गुटों की रचना तथा सहायता देना था। १७९३ ई. में इंग्लैड, आस्ट्रिया, प्रशा, स्पेन तथा हालैंड का प्रथम गुट बनाया गया जो १७९७ में विघटित हुआ। १७९९ ई. में दूसरा गुट बना जो अगले वर्ष तक चलता रहा। इन गुटों के प्रमुख रचयिता पिट ने १८०१ तक युद्धसंचालन किया, किंतु कैथोलिक त्राण की नीति में असफल होने के कारण त्यागपत्र दे दिया। १८०२ ई. में आमिएँ (Amiens) की अल्पकालीन संधि हुई। परंतु पिट के मंत्रिपद पर पुन: (१८०४) आते ही युद्ध की पुनरावृत्ति हुई। १८०५ ई. में पिट ने फ्रांस के विरुद्ध तृतीय गुट की रचना की।
किंतु उसी वर्ष दिसंबर में नैपोलियन की आस्टरलिट्ज़ (Austerlitz) नामक स्थान पर हुई विजय ने गुट का विघटन कर दिया तथा पिट के क्षीणप्राय स्वास्थ्य के लिए घातक आघात दिया। २३ जनवरी, १८०६ ई. को पिट की मृत्यु हुई तथा उसे वेस्टमिंस्टर ऐबी में ४६ वर्ष की अवस्था में दफन किया गया। युद्धमंत्री के रूप में पिट उतना सफल नहीं था। अनेक छोटे-छोटे युद्धों में उसने राष्ट्रीय शक्ति क्षीण की। उसकी योजनाएँ तथा उनपर नियुक्त व्यक्ति बहुधा अनुपयुक्त थे। फिर भी उसकी तथाकथित असफलता असफलता नहीं थी। उसने इंग्लैंड को संयुक्त यूरोपीय नीति का संचालक बना दिया था। उसके कृत्यों ने अंतत: नैपोलियन को परास्त किया। १८०० ई. में उसने ऐक्ट ऑव यूनियन के द्वारा इंग्लैंड और आयरलैंड की संसदीय एकता स्थापित की किंतु यह कार्य आयरलैंड को तृप्त न कर सका। पिट की गणना इंग्लैंड के महान् प्रधानमंत्रियों में की जाती है। उसका शासन वैधानिक विकास के लिए विख्यात है। उसने मंत्रिमंडल के वैयक्तिक तथा सामूहिक उत्तरदायित्व की विचारधारा की दिशा निश्चित की। उसने कामस की उच्चता का महत्व दिया। उसके नेतृत्व में टोरी दल, राजा का मित्र न रहकर, स्वाधीन अस्तित्व की ओर अग्रसर हुआ। पिट अथक संगठनकर्ता तथा प्रवीण वक्ता था। वह सत्यनिष्ठ तथा भ्रष्टाचार से सर्वथा अस्पृश्य था। स्वभाव से उदासीन तथा तटस्थ पिट का अविवाहित जीवन उग्र एवं हार्दिक देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत था।
सं.ग्रं.- लार्ड रोसबरी : लाइफ ऑव पिट (१८१४); पी.डब्ल्यू. विलसन : विलियम पिट दी यंगर (१९३०); जे.एच. रोज : लाइफ ऑव पिट (१९३४); सर चार्ल्स पेटरी : विलियम पिट (१९४५)।
(गिरिजाशंकर मिश्र)