पिकविक पेपर्स अंग्रेजी उपन्यासकार डिकेंस की महान कलाकृति। अप्रैल, १८३६ से शुरू होकर २० मासिक अंकों में इस ग्रंथ का प्रकाशन समाप्त हुआ। अंग्रेजी जनता की कल्पना में पिकविक का महत्व फ़ादर क्रिसमस के समान है।

इस उपन्यास का पूर्ण शीर्षक है : 'दि पौस्थ्यूमस पेपर्स ऑव दि पिकविक क्लब'। आरंभ में सेमूर नाम का एक कलाकार खिलाड़ियों के कुछ व्यंग्यचित्र बनानेवाला था और डिकेंस को इन चित्रों के लिए कुछ लिखित सामग्री प्रस्तुत करनी थी, किंतु डिकेंस की अदम्य कलात्मक प्रतिभा ने संपूर्ण योजना ही उलट दी। चित्रों का तो अब कोई स्मरण भी नहीं करता। सात चित्र बनाने के बाद सेमूर ने आत्महत्या कर ली और फ़िजू ने डिकेंस की सहायता करना शुरू किया।

पिकविक विचित्र कथानायक है। आरंभ में वे काफी हास्यास्पद लगते हैं, किंतु क्रमश: अपने गुणों के कारण वे पाठकों के प्रिय पात्र बन जाते हैं। पिकविक मोटे हैं, अधेड़ हैं, चश्मा पहनते हैं। वे निरंतर कठिनाइयों में फँसे रहते हैं। बर्फ पर स्केंटिग करते हुए वे बर्फ के नीचे पानी में जा गिरते हैं। उनकी गृहस्वामिनी चालाकी से मूर्च्छित होने का बहाना करके उनकी बाँहों में जा गिरती है और दावा करती है कि पिकविक उससे विवाह करने को वचनबद्ध हैं, किंतु इन सभी मुसीबतों से पिकविक सफलतापूर्वक उबरते हैं।

अनेक और भी चिरस्मरणीय पात्र इस उपन्यास में उभरे हैं - मि. वार्डल का मोटा नौकर जो बराबर सोता रहता है; मि. पिविक के अन्य मित्र, उनका अनुगामी सैम वैलर। डिकेंस के इंग्लैंड का एक सजीव और सशक्त चित्र पाठक को इस उपन्यास में मिलता हैं, हँसी और विनोद, आमोदप्रमोद में लीन इंग्लैड का ग्रामजीवन जो काल मी गति में विलीन हो रहा था।

इस उपन्यास का कोई आदि या अंत जैसे न हो। डिकेंस के कुछ प्रतिनिधि पात्र निरंतर पाठक के सामने आते हैं और उस युग की एक व्यापक, अविस्मरणीय झाँकी हमें देते हैं।(प्रकाशचंद्र गुप्त)