पाल्मायरा सीरिया के एक प्राचीन नगर का यूनानी और रोगन नाम, जिसके अब केवल अवशेष उपलब्ध है। यह दमिश्क से १४०मील उत्तर-पूर्व की ओर स्थित था। पुरानी बाइबिल में इसका उल्लेख 'तद्मोर' नाम से हुआ है। प्राचीतम उल्लेख असीरियन सम्राट् तथा तिगलथपिलेसर (लग. १११५-११०० ई.पू.) के एक अभिलेख में 'तादमर' नाम से मिलता है। पुरानी बाइबिल में उपलब्ध तीसरी शती ई.पू. की एक अनुश्रुति के अनुसार इसे १०वीं शती ई.पू. के कई सौ वर्ष पहले ही पालभायरा नगर पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर चुका था। इसकी महत्ता का रहस्य था इसी सीरिया, वैबिलोनिया, असीरिया, अरब तथा भूमध्यसागरीय प्रदेशों के मध्य स्थिति और जल की प्रचुरता। इतिहास में इसका नाम विशेषत: रोमन साम्राज्य के उत्कर्ष के साथ मिलना आरंभ हाता है। कहा जाता है, मार्क एंटोनी ने ४२-४१ ई.पू. में इसपर आक्रमण किया था। वह चाहता था कि इसे लूटकर अपने सैनिकों का वेतन देने योग्य धन संगृहीत कर ले। लेकिन इसके निवासियों ने अपनी सब बहुमूल्य संपत्ति परातन नदी के पार भेज दी और उसे निराश लौटना पड़ा। अगस्टस ने इसे रोम और पार्थिया के मध्य तटस्थ व्यापारकेंद्र के रूप में विकसित होने में सहायता दी।

रोमन साम्राज्य के प्रारंभिक युग में यह आंतरिक मामलों में स्वतंत्र रहा तथा भारत, ईरान तथा भूमध्यसागरीय देशों के साथ इसका व्यापार संबंध बना रहा। उस समय यह सीरिया के सर्वाधिक धनी नगरों में से एक था। तीसरी शती ई. के बाद इसे रोम का प्रभुत्व मानना पड़ा पर यह सौदा बहुत महँगा नहीं पड़ा। रोमन स्वामियों की सुरक्षा में पार्थिया और ईरान के आक्रमण का भय कम हो गया और रोम के दूर होने के कारण उसके प्रभुत्व का भार बहुत भारी प्रतीत नहीं हुआ। रोम और ईरान के युद्धों में पाल्मायरा ने प्राय: निष्ठापूर्वक रोम का साथ दिया। रोमन सम्राट् गेलीनस (१४९-६८ ई.) के शासनकाल में पाल्मायरा के नरेश ओदेनेथस ने ईरान के सासानी सम्राटों के विरुद्ध सफल संघर्ष किया और रोम को इतनी महत्वपूर्ण सहायता दी कि रोमन सम्राट् ने प्रसन्न होकर उसे 'दुक्स ओरियण्टिस' (एक प्रकार का सह-सम्राट्) उपाधि प्रदान की। २६६-६७ ई. में उसकी हत्या कर दी गई। उसके बाद उसकी विधवा रानी ज़ेनोबिया ने अपने शिशु पुत्र की संरक्षिका के रूप में शासन किया। उसके कारण पाल्मायरा को बहुत यश मिला। उसने मिस्र पर अधिकार किया और 'पूर्व की महारानी' पदवी धारण की। लोंगिनस जैसे यूनानी विद्वानों को उसने संरक्षण प्रदान किया था। २७०-७१ में उसने पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की। लेकिन रोमन सम्राट् ओरेलियन ने उसे पाल्मायरा में घेरकर आत्मसमर्पण करने के लिए विवश किया। ओरेलियन के लौटते ही पाल्मायरा में विद्रोह हुआ जिससे क्रुद्ध होकर ओरेलियन फिर लौटा और नगर को तहसनहस कर दिया (२७३ ई.)। जेनोबिया को बंदी बनाकर राम ले जाया गया। बाद में रोमनों ने पाल्मायरा के निवासियों को अपने नगर के पुननिर्माण की अनुमति दे दी परंतु उसका पुराना वैभव फिर कभी नहीं लौटा।