पार्मीगिआनो (१५०३-१५४०) इटली के उत्तरी प्रदेश पारमा के लैबार्ड कलाग्रुप का एक सुयोग्य चित्रकार। उसका समूचा परिवार कलाकारों का था। फलत: जन्मजात संस्कारों और अपनी मौलिक प्रतिभा के कारण वह बहुत बचपन में अर्थात् १४ वर्ष से भी कम उम्र में एक अच्छा कलाकार माना जाने लगा और १९ वर्ष से भी कम उम्र में उसने पारमा चर्च की सात चैपल के भित्तिचित्रों की सुसज्जा की। अपने अध्ययन को परिपक्व करने वह रोम चला गया, पर वहाँ के पोप क्लीमेंट सप्तम ने उसकी ख्याति सुनकर स्थानीय गिर्जाघर की भीतरी छत के चित्रण का कार्य सौंप दिया। सन् १५२७ में वारवून के नेतृत्व में जब साम्राज्यवादियों और चार्ल्स पंचम के सैनिकों ने उक्त नगर को लूटा और विध्वंस किया तो कहते हैं इस घोर अंशांति और गड़बड़ में भी वह चुपचाप अपने एक सुप्रसिद्ध चित्र को बनाने में व्यस्त रहा। सैनिकों ने उसके स्टूडियों पर भी छापा मारा और काफी तहस नहस किया, पर उसकी किसी कदर शांति भंग न हुई। हारकर सैनिकों के नेता ने उसकी रक्षा की।
इस दुर्घटना के पश्चात् वह रोम छोड़कर बोलोग्ना जा बसा जहाँ उसने अनेक महत्वपूर्ण चित्रों का निर्माण किया। सेंट मेरिया चर्च में उसे बड़े ही दुरूह और गुंफित भित्तिचित्रों के निर्माण का आदेश हुआ, किंतु अनवरत श्रम और साधना के बावजूद वह अपने अनुबंध को समय पर पूरा न कर सकने के कारण जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वह क्रेमोना क्षेत्र में अज्ञात रूप से भाग गया, पर परिस्थितियों ने उसके शरीर और मन को इतना क्लांत एवं जर्जर कर दिया था कि वहीं ३७ वर्ष की अल्पायु में ही उसकी मृत्यु हो गई।
वेज़ेरी ने उसकी इस बदकिस्मती, और काम करने के शैथिल्य को शराब की एक वजह माना है, पर यह पिष्टपेषित कहानी उसके आलोचकों द्वारा अब मिथ्या हो चुकी है। उसने इचिंग, बुडकट और पोट्रेट चित्र भी काफी संख्या में बनाए। उसकी निर्माण पद्धति और टेकनीक पर कोरेज्जिओ और रैफेल का प्रभाव द्रष्टव्य है।
(शचीरानी गुर्टू)