पार्कर, एडविन वालेस जन्म २१ जनवरी, १८३३ को अमरीका कसट जोंसबरी नगर में। इनके पिता का नाम क्युंसी बी. पार्कर था। जब वह तीन वर्ष के थे तो उनको स्कूल में भरती कर दिया गया। उनकी माँ जब मरने के निकट थी तो उसने पुत्र को अपने पास बुलाया और कहा कि तुम यह प्रतिज्ञा करो कि तुम अच्छे लड़के बनोगे। जैसे ही एडविन पार्कर ने प्रतिज्ञा की वैसे ही उसकी माँ का दम निकल गया।
एडविन पार्कर जब २० वर्ष के थे तो एक दिन वह पादी डब्ल्यू. डी. मैल्कम की धार्मिक सभा में सम्मिलित हुए। उनपर यीशु मसीह की शिक्षाओं तथा पादरी मैल्कम के भाषणों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने यह संकल्प किया कि अब मैं प्रभु यीशु मसीह का सुसमाचार देश के बाहर की जनता को भी सुनाऊँगा ताकि वह उससे लाभान्वित हो सके।
१८५३ तथा १८५४ में पार्कर साहब बाइबिल की दीक्षा के लिये न्यूबरी गए। १८५५ में यह कौंकार्ड बाइबिल इंस्ट्टियूट में भी बाइबिल की दीक्षा के लिए गए। इस संस्था में वह मई, १८५८ तक रहे। इसी वर्ष वह ल्यूनेनबर्ग के गिरजाघर के पोस्टर बनाए गए। १८५९ में उनकी नियुक्ति भारत में यीशु मसीह का सुसमाचार सुनाने के लिये हुई।
इसके बाद यद्यपि बीच बीच में अमरीका चले जाते थे, फिर भी अधिकांश समय उन्होंने भारत में ही- लखनऊ, मुरादाबाद, बरेली, नैनीताल आदि में मिशन का काम करने में बिताया। १९०० में जब वह अमरीका गए तो उनको बिशप का पद दिया गया। बिशप पार्कर अगस्त, १९०० में फिर भारत लौट आए।
पार्कर साहब ने १८६४ में छोटे बच्चों के लिये स्कूल चालू किया। फिर जुलाई, १८७५में एक नया स्कूल भवन तैयार करवाया। यह रोहेलखंड का प्रथम हाई स्कूल था। इस समय वह पार्कर विद्यालय इंटरमीडियट कालेज है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के बिजनौर, मुरादबाद, बरेली, नैनीताल आदि नगरों में क्रिश्चियन बस्तियों की स्थापना की तथा बहुत से गिरजाघर भी बनवाए।
सन् १९०० में अमरीका से लौटने पर वह बीमार पड़ गए। १५ अक्टूबर, १९०० को उनकी मृत्यु हुई और नैनीताल में उनको दफनाया गया।(मिल्टन चरन)