पारद वाष्प बायलर (Mercury Vapour Boiler) सन् १९१४-१८ के प्रथम विश्वयुद्ध के पहले तक यदि किसी शक्तिगृह का बायलर २०० पाउंड प्रति वर्ग इंच की दाब पर २०,००० से ४०,००० पाउंड तक भाप प्रति घंटा तैयार कर देता था, उसे बहुत बड़ा समझा जाता था। लेकिन युद्ध के बाद शक्ति उत्पादन कार्यों का केंद्रीकरण करने की प्रथा चल पड़ने के कारण, बायलरों की अभिकल्पना और निर्माण पर बहुत अधिक अनुसंधान करके, उन्हें इतना उन्नत प्रकार का बनवाया गया कि उनके द्वारा ४०० से लेकर ६०० पाउंड प्रति वर्ग इंच की दाब पर ३७१� से लेकर ४५४.४� सें. के ताप की २,००,००० से ४,००,००० पाउंड संतृप्त भाप प्रति घंटा तैयार कर देना मामूली बात समझी जाने लगी। २०वीं शताब्दी के तृतीय दशक के अंत तक कुछ ऐसे भी बायलर बनाए गए जो १,५०० पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब की १०,००,०००, पाउंड से अधिक भाप प्रति घंटा तैयार करने लगे, जिनकी समग्र उष्मीय दक्षता (over-all thermal efficiency) ८४ प्रति शत से अधिक रहती थी। ऐसे बायलरों के संचालन में कुछ विशेष कठिनाइयाँ आने लगीं। अत्युच्च ताप से भट्टी की दीवारें तथा उसके अन्य ढाँचे गलने लगते हैं तथा भट्टी में जितनी भी ऊष्मा उत्पन्न हो उसकी लगभग आधी मात्रा को भट्टी के क्षेत्र में भी अवशोषित करना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि यदि १,१००� सें. ऊँचा ताप संवहन (convection) धरातलों के संपर्क में आता है तो भट्ठी की राख आदि पिघलकर, धातुमल (slag) बनकर, चिपक जाती है। समग्र ऊष्मा का लगभग १२-१३ प्रति शत बाहर निकल बरबाद हो जाता है। इन सब दोषों का निराकरण करने के उद्देश्य से ही, पारद वाष्प बायलर का आविष्कार हुआ।
पारद वाष्प बायलर की भट्टी में कोयले की बारीक बुकनी को जलाकर उसकी आग से विशेष प्रकार के अभिकल्पित बायलरों में द्रव पारद को इच्छित दबाव पर उबालते हैं। फिर वाष्प को टरबाइन में से ले जाकर, विद्युत् उत्पादन करते या अन्य उपयोगी काम लेते हैं। टरबाइन से वाष्प का निष्कासन इतने दबाव पर किया जाता है कि उससे इच्छित दबाव की भाप प्राप्त हो सके, अर्थात् यहाँ भाप बनाने का काम, पारद के वाष्प के गुप्तताप से होता है। इस भाप से या तो दूसरे टरबाइन चलाए जा सकते हैं, अथवा अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं में ऊष्मा प्राप्त करने के काम लिए जा सकते हैं। पारद के वाष्प से टरबाइन का संचालन लगभग सैद्धांतिक ऊष्मीय दक्षता (theor etical thermal efficiency) पर ही होता है।
पृष्ठ १९३ पर दी हुई सारणी में विभिन्न दबावों पर जल तथा पारद के क्वथनांक दिए गए हैं, जिससे विदित होता है कि निम्न कोटि के दबावों पर जल के भाप की अपेक्षा, पारद-वाष्प काफी ऊँचे ताप पर बनता है। जल के संतृप्त वाष्प का सर्वोच्च दबाव ३,२०० पाउंड प्रति वर्ग इंच तथा ताप ३७४.६� सें. ही होता है।
संयुक्त राज्य, अमरीका के हार्टफोर्ट नगरस्थ बिजलीघर में प्रयुक्त पारद वाष्प बायलर के संयंत्र का आरेख (चित्र १ और २ में) दिया जा रहा है। इसके प्रज्वलन कक्ष में कोयले की बुकनी जलाने से प्रज्वलोत्पादित गैसें क्रमश: पारद बायलर, तरल पारद तापक, भाप अति तापक, पोषक जल मितोपयोजक तथा वायु पूर्वतापक में से होती हुई और मार्ग में अपनी गरमी उन्हें देती हुई चिमनी में से निकल जाती है। इनमें प्रथम दो प्रसाधन पारद को ऊष्मा प्रदान करते हैं और शेष भाप को ऊष्मा प्रदान करते हैं।
पारद का वाष्प पहले टरबाइन में जाता है। वहाँ ७२० चक्कर प्रति मिनट की गति से १०,००० किलोवाटवाले जनित्र को चलाता है। वहाँ से वह तल संघनित्र पर आकर द्रवीभूत हो जाता है। संघनित्र की नलियों में जल भरा रहता है। पारदवाष्प के संघनन से जल गरम होकर भाप बनती है और भाप संघनित्र के ऊपर ड्रम में इकट्ठी हो जाती है। ड्रम से भाप निकलकर अतितापक में जाती है। पारद संघनित होकर इकट्ठा होता है और गुरुत्वाकर्षण द्वारा बायलर में लौट आता है।
१४,५०० पाउंड कोयला जलाकर पारद वाष्प टरबाइन से एक तरफ तो १०,००० किलोवाट बिजली बनती है और दूसरी तरफ १,२५,००० पाउंड भाप (३५० पाउंड प्रति वर्ग इंच गेज दबाव तथा १२९� सें. से अतितप्त होकर ३७१.१� सें. के ताप पर) प्रति घंटा बनती है। इनकी सम्मिलित कार्यक्षमता, इतना ही कोयला जलानेवाले साधारण वाष्पचालित संयंत्र की अपेक्षा लगभग ३८ प्रतिशत आद्योपांत बढ़ जाती है।
विभिन्न दाबों पर क्वथनांकों की सारणी |
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दाब प्रति वर्ग इंच |
क्वथनांक सेंटीग्रेड में |
|
पारद |
जल |
|
१०० माप गेज के अनुसार |
४९८.८� |
१७०� |
८० '' '' '' '' |
४८१.६� |
१६२.०� |
६० '' '' '' '' |
४६३.३� |
१५३.०� |
४० '' '' '' '' |
४४०.३� |
१४१.७� |
२० '' '' '' '' |
४०९.४� |
१२६.२� |
१० '' '' '' '' |
३८८.०� |
११६.०� |
० '' '' '' '' (वायुमंडल की दाब) |
३५७.०� |
१००.०� |
२० इंच निर्वात |
३०२.२� |
७२.०� |
२५ '' '' |
२७१.१� |
५६.५� |
२८ '' '' |
३३६.०� |
३८.६� |
२९ '' '' |
३१२.२� |
२६.१� |
सं.ग्रं. - बी. जी. ए. स्ट्रोट्ज़की ऐंड विलियम ए. वोपट : पावर स्टेशन इंजीनियरिंग ऐंड इकॉनोजी, मैकग्रा हिल बुक कं., न्यूयॉर्क ; आर. एच. ग्रुंडी : दि थियोरी ऐंड प्रैक्टिस ऑव हीट इंजन, लांगमैन्स, ग्रीन ऐंड कं. लि., लंदन।
(ओंकारनाथ शर्मा)