पारद आवर्त सारिणी के द्वितीय अंतवर्ती समूह (transition group) का अंतिम तत्व है। इसके सात स्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९६, १९८, १९९, २००, २०१, २०२ और २०४ हैं। इनके अतिरिक्त तीन अस्थिर समस्थानिक, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९५, १९७ तथा २०५ हैं, कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। रासायनिक जगत् में केवल यही धातु साधारण ताप पर द्रव रूप होती है। द्रव रूप और चमकदार होने के कारण पुरातन युग से पारद कौतूहल का विषय रहा है। लगभग १,५०० ईसवी पूर्व में बने मिस्र के मकबरों में पारद प्राप्त हुआ है। भारत में इस तत्व का प्राचीन काल से वर्णन हुआ है। चरक संहिता में दो स्थानों पर इसे रस और रसोत्तम नाम से संबोधित किया गया है। वाग्भट ने औषध बनाने में पारद का वर्णन किया है। वृंद ने सिद्धयोग में कीटमारक औषधियों में पारद का उपयोग बताया है। तांत्रिक काल (७०० ई. से लेकर १३०० ई.) में पारद का बहुत उल्लेख मिलता है। इस काल में पारद को बहुत महत्ता दी गई। पारद की ओषधियाँ शरीर की व्याधियाँ दूर करने के लिये संस्तुत की गई हैं। तांत्रिक काल के ग्रंथों में पारद के लिये रस शब्द का उपयोग हुआ है। इस काल की पुस्तकों के अनुसार पारद से न केवल अन्य धातुओं के गुण सुधरसकते हैं वरन् उसमें मनुष्य के शरीर को अजर बनाने की शक्ति है। नागार्जुन द्वारा लिखित रसरत्नसमुच्चय नामक ग्रंथ में पारद की अन्य धातुओं से शुद्ध करने तथा उससे बनी अनेक ओषधियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। तत्पश्चात् अन्य ग्रंथों में पारद की भस्मों तथा अन्य यौगिकों का प्रचुर वर्णन रहा है।

पारे का वर्णन चीन के प्राचीन ग्रंथों में भी हुआ है। यूनान के दार्शनिक थिओफ्रेस्टस ने ईसा से ३०० वर्ष पूर्व द्रव चाँदी (quicksilver) का उल्लेख किया था, जिसे सिनेबार (HgS) को सिरके से मिलाने से प्राप्त किया गया था। बुध (Mercury) ग्रह के आधार पर इस तत्व का नाम मरकरी रखा गया। इसका रासायनिक संकेत (Hg) लैटिन शब्द हाइड्रारजिरम (hydrargyrum) पर आधारित है।

पारद मुक्त अवस्था में यदाकदा मिलता है, परंतु इसका मुख्य अयस्क सिनेबार (HgS) है, जो विशेषकर स्पेन, अमरीका, मेक्सिको, जापान, चीन और मध्य यूरोप में मिलता है। सिनेबार को वायु में ऑक्सीकृत करने पर पारद मुक्त हो जाता है।

गुणधर्म - पारद श्वेत रंग की चमकदार द्रव धातु है, जिसके मुख्य भौतिक गुणधर्म निम्नांकित हैं :

संकेत

पा (Hg)

परमाणुसंख्या

८०

परमाणुभार

२००.५९

गलनांक

- ३८.८९रू सें.

क्वथनांक

३५६.५८रू सें.

घनत्व

१३.५४६ ग्राम प्रति धन सेंमी.

(२०रू सें. पर)

क्रांतिक ताप

१,४६०रू सें.

संगलन की गुप्त उष्मा

२.७ कैलरी

परमाणुव्यास

३.१ एंग्सट्राम A

आयनीकरण विभव

१०.४३४ इवो.

विद्युत् प्रतिरोधकता

९४.१ माइक्रोओम-सेंमी.

(०रू सें. पर)

पारद अनेक धातुओं से मिलकर मिश्रधातु बनाता है, जिन्हें अमलगम (amalgam) कहते हैं। सोडियम तथा अन्य क्षारीय धातुओं के अमलगम अपचायक (reducing agent) होने के कारण अनेक रासायनिक क्रियाओं में उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

पारद वायु में अप्रभावित रहता है, परंतु गरम करने पर यह ऑक्साइड या औ (HgO) बनता है, जो अधिक उच्च ताप पर फिर विघटित हो जाता है। यह तनु नाइट्रिक और गरम सांद्र सलफ्यूरिक अम्ल में घुल जाता है। पारद के दो संयोजकता (१ और २) के यौगिक प्राप्त हैं। इसके लवणों का आयनीकरण न्यून मात्रा में होता है। इसके दो क्लोराइड यौगिक प्राप्त हैं। इनमें से एक मरक्यूरस क्लोराइड अथवा कैलोमेल, पा क्लो (HgCl) है, जिसका भारतीय ग्रंथों में कर्पूररस और श्वेतभस्म के नाम से वर्णन है। दूसरा मरक्यूरिक क्लोराइड, अथवा केरोसिव सब्लिमेट, पाक्लो (Hg Cl), हैं, जो विषैला पदार्थ है। पारद के यौगिक अधिकतर विषैले होते हैं, परंतु न्यून मात्रा में औषध रूप में दिए जाते हैं।

पारद के मरक्यूरस (१ संयोजकतावाले) और मरक्यूरिक (२ संयोजकतावाले), दोनों लवण, जटिल यौगिक (complex compunds) बनाते हैं। नेसलर का अभिकर्मक (Nessler's reagent) भी एक जटिल यौगिक है, जो मरक्यूरिक क्लोराइड, पाक्लो (Hgcl) पर पोटैशियम आयोडाइड, पोआ (K1), की प्रक्रिया से बनता है। यह ऐमोनिया की सूक्ष्म मात्रा के विश्लेषण में काम आता है।

उपयोग - द्रव अवस्था, उच्च घनत्व और न्यून वाष्पदबाव के कारण पारद का उपयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर मैनोमीटर तथा अन्य मापक उपकरणों में होता है। पारद का उपयोग अनेक लपों तथा विसर्जन नलिकाओं में भी होता है। ऐसी आशा है कि परमाणु ऊर्जा द्वारा चालित यंत्रों में पारद का उपयोग बढ़ेगा, क्योंकि इसके वाष्प द्वारा ऊष्मा स्थानांतरण सुगमता से हो सकता है। पारद के स्पेक्ट्रम की हरी रेखा को तरंगदैर्ध्य मापन में मानक माना गया है।

पारद के अनेक यौगिक औषध रूप में उपयोगी हैं। मरक्यूरिक क्लोराइड, बेंजोएट, सायनाइड, सैलिसिलेट, आयोडाइड आदि कीटाणुनाशक गुणवाले यौगिक हैं। मरक्यूरोक्रोम चोट आदि में बहुधा लगाया जाता है। इसके कुछ यौगिक चर्मरोगों में लाभकारी सिद्ध हुए हैं। पारदवाष्प श्वास द्वारा शरीर में प्रवेश कर हानि करता है। इस कारण पारद के साथ कार्य करने में सावधानी बरतनी चाहिए। पारद के यौगिक बहुधा विषैले होते हैं, जिनके द्वारा मृत्यु हो सकती है। यदि अकस्मात् कोई इन्हें खा ले, तो तुरंत डाक्टर को बुलाना चाहिए। दूध या कच्चा अंडा खिलाकर, गैस्ट्रिक नलिका (gastric tube) द्वारा पेट की शीघ्र सफाई करने से विष का प्रभाव कम हो जाता है।

(रमेशचंद्र कपूर)