पाया वास्तुशास्त्र में पत्थर, ईटं की चिनाई या कंक्रीट का बना हुआ वह अवयव है जिसपर कोई डाट या ऊपरी रचना टिकी रहती है। इस अर्थ में यह संरचना के उन भागों के लिये प्रयुक्त होता है जो भूमि के ऊपर दिखाई देते हैं, और एकांकी या असंबद्ध आलंबों के लिये भी, जो भूमि के नीचे रहते हैं, जैस बुनियादी पाए। कभी कभी दीवार के वे छोटे छोटे भाग भी, जो दो खिड़कियों या द्वारों के बीच में होते हैं, पाए ही कहलाते हैं। पत्थर, ईटं की चिनाई या कंक्रीट की वह एकाकी संहति भी, जिसमें फाटक लगाए जाते हैं, पाया कहलाती है।
पुलों की ऊपरी रचना के मध्यवर्ती आलंब भी पाए ही कहलाते हैं जब कि किनारेवाले आलंब 'अत्याधार' या 'पीलपाए' कहे जाते हैं। पाए प्राय: ठोस होते हैं, किंतु कभी कभी जब वे बहुत ऊँचे होते हैं, उनके ऊपरी भाग लोहे या इस्पात के खुले कैंचीनुमा बना दिए जाते हैं। पायों की नावें ठोस पत्थर, या ईटं चिनाई, या कंक्रीट की और कभी कभी प्रबलित सीमेंट कंक्रीट की भी होती हैं। जहाँ लकड़ी अधिकता से मिलती है, वहाँ लकड़ी के कटघरे बनाकर ढोंका पत्थर, या सीमेंट कंक्रीट, से भर दिए जाते हैं और इस प्रकार की बुनियाद पानी से ऊपर उठाई जाती है। जहाँ काफी गहराई तक मिट्टी नरम होती है, या तह अदृढ़ जलसिक्त होती है, वहाँ, स्थूणा, कुएँ, लोहे के या इस्पाती ढोल, पीपे या कॉफर डैम आदि की कोई विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है।
पुलों के पायों का बगलें बहुधा सलामीदार रखी हैं। यह सलामी प्राय: १/२४ से लेकर १/१२० तक हो सकती है। प्रतिप्रवाह और अनुप्रवाह सिरों पर नाक या पनतोड़ बनाए जाते हैं, जिससे पानी के बहाब में कम से कम बाधा पड़े। पनतोड़ तलचित्र में त्रिभुजाकार अर्धवृत्ताकार, या दो चापों के नोकदार मेल से, बनाए जाते हैं। पायों के ऊपर यदि डाट लगती है, तो दोनों और सिंधे बनाए जाते हैं, नहीं तो ऊपर आनेवाले भार के अनुरूप पत्थर, कंक्रीट या प्रबलित कंक्रीट की टोपी बनाई जाती है।
पुलों के पायों के अभिकल्पन में निम्नलिखित बातों क ध्यान रखना आवश्यक है : अचल भार, चलभार, चलभार से उत्पन्न संघटन या गतिकीय प्रभाव, वायुभार, जलधारा का क्षैतिज बल, गाड़ियों के कर्षण प्रयास के कारण, या उनके खराब हो जाने या उनकी सतत गति से बाधा आने के कारण पड़नेवाला अनुलंब बल, पुल मोड़ में होने के कारण, या पुल के ऊपर गाड़ी मोड़ने के कारण उत्पन्न अपकेंद्री बल, उत्प्लावकता, मिट्टी का दबाव (अंत्याधारों में) और भूकंपीय बल।
इमारतों में बननेवाले पाए कभी कभी स्तंभ या खंभे कहलाते हैं। वास्तुकीय प्रभाव लाने के लिये, इनकी विभिन्न आकृतियाँ और विभिन्न अनुपात होते हैं, जो युगानुरूप बदलते रहे हैं। भारतीय स्तंभों का आपादशीर्ष अलंकरण उल्लेखनीय है (देखे स्तंभ)।(विश्वंभरप्रसाद गुप्त)