पामा (Eczema) बिना किसी बाह्म क्षोभ के उत्पन्न त्वक्प्रदाह है, जिसके विकास के किसी भी चरण में सीरम (serum) का स्राव होता है। इसके आविर्भाव के लिये दो बातें आवश्यक हैं : (१) पूर्ववृत्ति, परंपरागत या स्वभावगत (बहुधा पामा का दमा, गाउट, आमवात (गठिया) तथा क्रियात्मक आधि (neurosis) से विशेष संबंध होता है और एक के अभाव मे दूसरा प्रगट होता है) तथा (२) उत्तेजक कारण। पामा संसर्गजन्य रोग नहीं है, पर पूयजनक जीवाणुओं का उपसर्ग लगने पर स्वत:संचारी और संसर्गी हो सकता है। स्त्रियों में यह रोग कम होता है, विशेषकर रजोदर्शन और रजोनिवृत्ति के बीच की आयु में पामा तीव्र या जीर्ण हो सकता है पर तीव्रता या जीर्णता समय पर निर्भर नहीं है, बल्कि उसकी वर्तमान दशा पर आधारित है। पामा का आरंभ त्वचा के किसी भाग में खुजली, जलन और लाली से होता है, फिर नन्हीं स्फोटिकाएँ प्रकट होती हैं, जो या तो बड़ी होती हैं या आपस में मिलकर एक हो जाती हैं। फिर से स्फोटिकाएँ फट जाती हैं, या खुजलाने से फूटकर एक हो जाती हैं। फूटने पर इनसे स्वच्छ तरल सीरम निकल आता है, जिसकी मात्रा अधिक होने और स्राव जारी रहने पर 'गीले पामा' (वीपिंग एक्ज़िमा) की स्थिति उत्पन्न होती है। स्फोटिका के स्थान पर पिटिकाएँ, या विशेषकर बच्चों में पूय स्फोटिकाएँ, भी निकल सकती हैं। लक्षणों के अनुपात भिन्न हो सकते हैं, कहीं अत्यधिक लाली तो कहीं कष्टप्रद खुजली। पामा का सामान्य स्वास्थ्य पर साधारणत: कोई प्रभाव नहीं होता, पर कभी कभी खुजली के कारण अनिद्रा, अत्यधिक जलन, या मानसिक उत्तेजला उत्पन्न हो सकती है। यह रोग सिर में किसी भी स्थान पर हो सकता है। स्थान के अनुरूप ही लक्षणों में भी भेद होता है, जैस सिर पर सिबोरिया सी अवस्था।
पामा का उपचार कारणज्ञान के अभाव में संतोषप्रद रूप में अभी नहीं हो पाया है। बायोफार्म क्रीम, मैजेंटापेंट, जिंकपेस्ट में ब्रिलिएंट ग्रीन, क्लोरटेट्रासायक्लिन एवं क्लोरोमायसिटीन, मलहम, टी. ए. बी. इंजेक्शन और एक्स किरण आदि उपचार रोगनिवृत्ति में सहायक हो सकते हैं। बहुधा वह स्वयं ही अच्छा हो जाता है। इस रोग में आक्रांत क्षेत्र को ढँककर रखना चाहिए जिसमें हवा न लगे और क्षोभक तत्वों से रक्षा हो। साथ ही गरिष्ट और मिर्च मसालेवाले भोजन से बचना चाहिए।
(भानुशंकर मेहता)