पामर्स्टन, लार्ड इस प्रसिद्ध बिटिश राजनीतिज्ञ का पूरा नाम हेनरी जॉन टेंपल पामर्स्टन था। यह द्वितीय 'वाईकाउंट' हेनरी का पुत्र था, इसका जन्म २० अक्टूबर, १७८४ को ब्रॉडलैंड्स में हुआ था, तथा ८१ वर्ष की अवस्था होने पर थोड़ी बीमारी के कारण १८ अक्तूबर, १८६५ को ब्रॉकेट हॉल में मृत्यु हो गई। पामर्स्टन के शैशव का अधिकांश इटली में बीता। सन् १७९५ में इसे हैरो स्कूल भेजा गया। सन् १८०२ में उसने हैरो छोड़ा। उसी वर्ष उसे अपने पिता की आयरिश लार्ड की उपाधि मिल गई। अगले वर्ष वह 'सेंट जांस कॉलेज', केंब्रिज में भर्ती हुआ। सन् १८०६ में पामर्स्टन राजनीति में प्रविष्ट हुआ। अगले वर्ष पोर्टलैंड की सरकार में उसे ऐडमिरल्टी का लॉर्ड बनाया गया। बहुत दिनों तक टोरी सरकारों में लार्ड पामर्स्टन ने यद्धमंत्री के रूप में काम किया।

सन् १८३० में लॉर्ड पामर्स्टन लॉर्ड ग्रे की 'ह्विग' सरकार में विदेश-मंत्री के रूप में सम्मिलित हो गया। इस समय से लेकर अपने जीवन के अंत तक उसका व्यक्तिगत इंग्लैंड की वैदेशिक राजनीति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथा सर्वश्रेष्ठ रहा। इस बीच वह दो बार इंग्लैंड का प्रधान मंत्री बना और शेष समय विदेश मंत्री के रूप में कार्य करता रहा। उसने प्रबल वैदेशिक नीति का अनुसरण किया जो बड़ी सफल रही। उसकी राजनीतिक पद्धति प्राय: अप्रिय तथा गर्वपूर्ण होती थी। वैदेशिक क्षेत्र में उसका मुख्य ध्येय ग्रेटब्रिटेन के प्रभाव को बढ़ाना था। इसके अतिरिक्त पामर्स्टन वैधानिक सरकारों का पक्षपाती था तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता संबंधी आंदोलनों को सदा प्रोत्साहन देता था। स्पेन तथा पुर्तगाल में उसने अनधिकृत तथा स्वेच्छाचारी निरंकुश शासकों के विरुद्ध वहाँ की वैधानिक सम्राज्ञियों को शासनाधिकार पाने में सहायता दी। बेल्जियम के स्वतंत्रता प्राप्त करने में भी पामर्स्टन ने सहायता का हाथ बढ़ाया। इस समय पूर्वीय प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण बन गया था। इस संबंध में रूस के टर्की संबंधी उद्देश्यों को पामर्स्टन सदैव सशंक निगाहों से देखता था। वह स्वयं टर्की के साथ था। सन् १८४० में मिस्र में सुल्तान के वाइसरॉय मेहमत अली के विद्रोह कर देने पर पामर्स्टन ने टर्की के सुल्तान की सहायता की।

सन् १८५५ में पामर्स्टन पहली बार इंग्लैंड का प्रधान मंत्री हुआ। अपने अदम्य उत्साह तथा स्फूर्ति से पामर्स्टन ने रूस के टर्की की ईसाई प्रजा का सरंक्षक बनने के उद्देश्य को धूल में मिला दिया और क्रीमिया के युद्ध में टर्की की सहायता करके उसे सफलतापूर्वक समाप्त करवाया। दो वर्ष बाद भारत में देशव्यापी 'सिपाही विद्रोह' हुआ। पामर्स्टन के आदेशानुसार भारत का यह विद्रोह शीघ्र ही दबा दिया गया और इस प्रकार उनकी नीति की विजय हुई। सन् १८५९ में पामर्स्टन दूसरी बार इंग्लैंड का प्रधान मंत्री बना। इस समय इटली में स्वाधीनता के लिये संग्राम छिड़ा हुआ था। इस संग्राम में पामर्स्टन ने इटली निवासियों को कोई दृश्य सहायता तो न दी पर नैतिक रूप से वह उनके साथ था। इस मामले में वह हस्तक्षेप करने के पक्ष में न था। अंतत: इटली के पोप से छुटकारा पाने और एक संगठित राष्ट्र बनने में उसका सहयोग भुलाया नहीं जा सकता। सन् १८६१ में अमरीका में गृहयुद्ध छिड़ गया। इस संबंध में पामर्स्टन ने निष्पक्ष रहना ही उचित समझा।

किंतु वह अन्याय, दासत्व तथा अत्याचार का विकट शत्रु था। साथ ही इंग्लैंड की सुरक्षा तथा शान का उसे सदा ध्यान रहता था। कुलीनता के अतिरिक्त पामर्स्टन के निजी जीवन में आतिथ्य तथा सरल सामाजिक संबंध आदि कुछ ऐसे आकर्षण थे जिनसे उसके राजनीतिक विपक्षी भी अपने विरोधों को भूलकर उसमें धुल मिल जाते थे। यही कारण था कि पामर्स्टन अत्यधिक लोकप्रिय व्यक्ति था। उसकी इस लोकप्रियता का श्रेय बहुत कुछ उसकी योग्य पत्नी लेडी पामर्स्टन, के लावण्य तथा कार्यकुशलता को था।

(मिथिलेश चंद्र)