पाइरॉक्सीन (Pyroxene) खनिज विज्ञान में कुछ शैल (rocks) बनानेवाले खनिजों का रासायनिक संगठन लगभग एक सा हाता है और ये ऐंफिबोल (Amphibole) समूह के खनिजों से बहुत मिलते जुलते हैं। ऐंफिबोल और पाइरॉक्सीन समूह के खनिजों में विदलन, क्रिस्टलीय रूप इत्यादि में कुछ अंतर भी है। कुछ में सोडियम और पोटासियम के सिलिकेट भी पाए जाते हैं। फेल्सपार (feldspar) के बाद ये आग्नेय शैलों के सबसे अधिक मात्रा में पाए जानेवाले अवयव हैं। बैसाल्ट (Basalt), गैब्रो (Gabbro), डोलराइट इत्यादि पाइरॉक्सीन समूह से बने हैं। ये क्षारक गुणवाले पदार्थ हैं और इनके क्रिस्टल प्रिज़्मीय आकार के हाते हैं। इनका विदरण कोण ८७� हाता है। रसायनत: ये सभी प्राय: मेटासिलिकेट होते हैं। क्रिस्टलों की सममिति के आधार पर इनका तीन विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
पाइरॉक्सीन के क्रिस्टल छोटे होते हैं तथा इनके सिरों पर दो फलक होते हैं। इनका रंग काला, हरा या भूरा, चमक अधात्विक, विदर शंखाभ, कठोरता पाँच से सात तक तथा आपेक्षिक घनत्व ३.२ से ३.५ क होता है। कुछ समय पश्चात् इनकी चमक कम हो जाती है।
क्लीनोएंस्टाटाइट और एकनताक्ष मेटासिलिकेट उल्का में भी पाए गए हैं। मैग्नीशियम मेटासिलिकेट का निर्माण रसायनशालाओं में ही हो सका है। पाइरॉक्सीनवाली शिलाएँ अनेक देशों, जैसे तुर्किस्तान, तिब्वत, बर्मा और भारत में पाई जाती हैं। ये शिलाएँ सर्वप्रथम भारत ही मिली थीं। दक्षिण भारत में मद्रास के निकट पल्लावरम में सरनोकाइट (Charnockite) की सुंदर पहाड़ियँ हैं। जिस शैल में बृहपर्स्थीन होते हैं उसे 'चारनोकाइट' भी कहते हैं।
पाइरॉक्सीन खनिजों से बनी चट्टानों को पाइरॉक्सिनाइट (Pyroxenite) भी कहते हैं। ये शैल हॉर्नब्लेंडाइट से मिलते जुलते है, जिनमें प्रधानतया हार्नब्लेंड (hornblende) होते हैं।(रामदास तिवारी)