पांडुरंग दामोदर गुणे (१८८४-१९२२ ई.) भारत के प्रसिद्ध तुलनात्मक भाषाशास्त्री। जन्म २० मई, १८८४ ई को अहमदनगर में हुआ। बंबई विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. किया। भगवद्गीता पर लिखा हुआ इनका निबंध बंबई विश्वविद्यालय में अब भी सुरक्षित है।

गोखले और भंडारकर के अनुरोध पर पूना की दकन एज्यूकेशनल सोसाइटी के आजीवन सदस्य बनने के बाद डॉ. ब्रुगमन तथा डॉ. किंडिशे के निर्देशन में भारत यूरोपीय तुलनात्मक भाषाशास्त्र का अध्ययन करके लाइपज़िग विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

पूना के फर्ग्युसन कालेज में संस्कृत, पालि और अंग्रेजी का सफलतापूर्व अध्यापन करते हुए इन्होंने सन् १९१७ में भंडारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की और इसके प्रथम मंत्री भी चुने गए। १९१६-१७ में तुलनात्म्क भाषाशास्त्र और 'निरुक्त' पर बंबई विश्वविद्यालय में दो दर्जन व्याख्यान भी दिए जो 'ऐन इंट्रोडक्शन टु कंपैरेटिव फिलालॉजी' के नाम स १९१८ में प्रकाशित हुए। इनकी अन्य कृतियों में 'भविसयत्त कहा' (संपादन- गायकवाड़ ओरिएंटल सिरीज़) 'स्टडीज़ इन दि निरुक्त ऑव आस्क', 'एस्सेज ऑन दि प्राकृत्स', 'एस्सेज ऑन दि ऑरिजिन ऑव मराठी' एवं 'एस्सेज ऑन दि भगवतगीता' प्रमुख हैं।

पालि, प्राकृत और अपभ्रंश के विषय में इनकी स्थापनाएँ सर्वथा मौलिक समझी जाती हैं।

अपने व्यक्तिगत जीवन में प्रो. गुणे सरल और विनोदप्रिय थे। २५ नंवबर १९२२ को क्षयरोग के कारण ३८ वर्ष की कम उम्र में ही इनका देहांत हो गया।

(रमानाथ शर्मा)