पांडु पांडवों के पिता जो महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास और विचित्रवीर्य की विधवा पत्नी अंबालिका के पुत्र थे। इनकी दो स्त्रियाँ कुंती तथा माद्री थीं। कुंती से युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन और माद्री से नकुल एव सहदेव हुए। पांडु ने अनेक राजाओं को परास्त कर अपने राज्य की कीर्ति बढ़ाई, धनसंचय किया और पाँच बड़े बड़े यज्ञ किए। यज्ञों की समाप्ति पर ये अपनी दोनों स्त्रियों के साथ वन में रहने लगे थे और वहीं पर किमिंदभ ऋषि ने इन्हें ये शाप दिया था कि स्त्रीप्रसंग करते समय इनकी मृत्यु हो जायगी। इस शाप का कारण यह था कि किमिंदभ मृग रूप में एक मृगी से संगम कर रहे थे, तभी पांडु ने वाणों से मृगी का वध कर दिया।
इसी डर से पांडु ने कुंती को दुर्वासा ऋषि स एक मंत्र दिला दिया था जिसके द्वारा वे किसी भी देवता का आवाहन करके उससे गर्भ धारण कर सकती थीं। पर वसंत ऋतु में एक दिन माद्री के मना करने पर भी जब ये उससे भोग करने लगे तो तत्काल पांडु की मृत्यु हो गई। माद्री अपने पति के साथ सती हो गई और दोनों के शव को कुंती तथा पांडवों ने हस्तिनापुर पहुँचाया जहाँ उनकी अंत्येष्टि क्रिया विदुर ने की।(रामाज्ञा द्विवेदी)