पांडव हस्तिनापुर के राजा पांडु के युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव नामक पाँच पुत्र थे। पांडु अपने पिता विचित्रवीर्य का जेठा पुत्र नहीं था, किंतु उसके बड़े भाई धृतराष्ट्र के जन्मांध होने के कारण उसे ही राज्य मिला था। धृतराष्ट्र के दुर्योधनादि अनेक (एक सौ?) पुत्र थे जो कुरु की ज्येष्ठ शाखा में होने के कारण कौरव कहलाए। कौरवों पांडवों में आपसी लाग डाँट अत्यधिक थी तथा कौरवों ने पाडवों के नाश की अनेक योजनाएँ कार्यान्वित की, जिनसे पांडव बचते गए। उधर पांडु की अल्पावस्था में ही मृत्यु हो गई और राज्याधिकार का भी संघर्ष छिड़ गया। धृतराष्ट्र ने झगड़े का बढ़ता हुआ देखकर पांडवों को खांडवप्रस्थ दे दिया और इंद्रप्रस्थ को राजधानी बनाकर युधिष्ठिर के राजत्व में उन्होंने शासन शुरू कर दिया। वहाँ उनकी बढ़ती हुई शक्ति से कौरव द्वेष करने लगे। युधिष्ठिर ने राजसूय करने की ठानी और उनके छोटे भाइयों ने अनेक दिशाओं में विजय की। उस अवसर पर कृष्ण का प्रमुख रूप से आदर होते देखना दुर्योधन को असह्य हो गया। पुन: पाडवें को सभा देखकर तो उसका द्वेष और भी बढ़ गया। पांडवों को समाप्त करने के लिए उसने अपने मामा शकुनि की राय से युधिष्ठिर का दो बार जुए के खेल में आमंत्रित किया। दोनों ही बार युधिष्ठिर हारा। पहली बार की हार के फलस्वरूप तो द्रौपदी का चीरहरण हुआ और दूसरी बार पांडवों को वनवास हुआ तथा अज्ञातवास के लिए जाना पड़ा। वनवास से लौटकर पांडवों ने अपना राज्य वापस माँगा पर बिना युद्ध के दुर्योधन सूच्यग्र भूमि भी देने को तैयार न था। परिणामस्वरूप महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। प्राय: सारे भारतवर्ष के राजाओं ने उसमें किसी न किसी पक्ष से भाग लिया। अंत में पांडवों और कृष्ण जैसे कुछ व्यक्तियों को छोड़कर सभी मारे गए। पांडवें की विजय हुई और युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर में राज्य करना शुरू किया। अमर महाकाव्य महाभारत की कथावस्तु और पांडवों के ही आख्यानोपाख्यान से युक्त उनका पूर्ण इतिहास है।

सं.ग्रं.- महाभारत, (विशेषत: आदिपर्व और सभापर्व); ब्रह्मपुराण, १३-१२३; मत्स्यपुराण, ५०-४६-५६; अग्निपुराण २७७ ३१-४०; वायुपुराण, ९९, २२९-४९; मजुमदार और पुसालकर संपादित 'वैदिक एज', पृष्ठ ३००-३०३।(विशुद्धानंद पाठक)