पलुस्कर, विष्णु दिगंबर भारतीय समाज में संगीत और संगीतकार की उच्च प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक, समर्थ संगीतगुरु, अप्रतिम कंठस्वर एवं गायनकौशल के घनी भक्तहृदय गायक। जन्म-महाराष्ट्रांतर्गत कुरुंदबाद ग्राम में १९ अगस्त (श्रावणी पूर्णिमा), सन् १८७२ ई., मृत्यु २१ अगस्त सन् १९३१। पिता श्री दिगंबरबुबा कीर्तनकार थे। किशोरावस्था में आतिशबाजी जलाते समय आँखे जल जान से दृष्टि-हानि; ग्वालियर घराने में शिक्षित पं. बालकृष्णबुवा इचलकरंजीकर से मिरज में संगीत की शिक्षा आरंभ की। बारह वर्ष कठोर तप:- साधना से संगीत शिक्षाक्रम पूर्ण करके सन् १८९६ में समाज की कुत्या और अवहेलना एवं संगीतगुरुओं की संकीर्णता से भारतीय संगीत के उद्धार के लिए दृढ़ संकल्प सहित यात्रा आरंभ की। गिरनार में दत्तशिखर पर एक अलौकिक पुरुष के संकेतानुसार लाहौर का सर्वप्रथम कार्यक्षेत्र चुना।

संगीत-शिक्षा-प्रस्तर - सन् १९०१ में लाहौर में गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना, विद्यार्थियों के प्रोत्साहनार्थ छात्रवृत्तियों की उदार व्यवस्था। समान्य विद्यार्थी वर्ग के अतिरिक्त उत्तम शिक्षकों और निर्व्यसन श्रेष्ठ कलाकारों के निर्माणार्थ 'उपदेशक वर्ग' नाम से अंतेवासी विद्यार्थियों का विशिष्ट वर्ग बनाया, जिसमें विपुल संख्यक शिष्यों के भोजन, बल, निवासादि का संपूर्ण व्ययभार स्वयं वहन किया। १९०९ के आसपास बंबई में गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना की। बाद में नासिक जाकर वहाँ श्री रामनाम-आधार-आश्रम की स्थापना एवं शिक्षाकार्य का संचालन किया।

जनसमूह में संगीतप्रचार - 'रघुपति राघव राजा राम' का सामूहिक कीर्तन, रामचरितमानस का संगीतमय प्रवचन, कांग्रेस अधिवेशनों में 'वंदेमातरम्' एवं राष्ट्रीय भावनात्मक अन्य गीतों का गायन, धार्मिक तथा सामाजिक मेलों, उत्सवों में विशेष संगीत कार्यक्रमों की प्रस्तुति, सशुल्क एवं नि:शुल्क (उदा. जालंधर का हरवल्लभ मेला) संगीत परिषदों का आयोजन इत्यादि द्वारा विभिन्न प्रदेशों में शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने का सफल अभियान चलाया। तुलसी, कबीर, सूर आदि भक्त कवियों के पदों को विभिन्न रागों में कर शृंगार-रस-प्रधान ठुमरी शैली के समकक्ष भजन शैली की शास्त्रीय संगीत में प्रतिष्ठा की।

संगीतलिपि एवं प्रकाशन कार्य - सन् १९०० के लगभग सर्वांग पूर्ण संगीतलिपि का निर्माण किया। निम्नांकित प्राय: ७० संगीत ग्रंथों का लेखन प्रकाशन (सन् १९०२-१९३०)- (१) रागप्रवेश (१९ भाग), (२) संगीत बालप्रकाश (४ भाग), (३) संगीत बालबोध (५ भाग), (४) बिहाग, कल्याण, भूपाली, मालकंस रागों का संपूर्ण गायकी सहित ५ पुस्तकें, (५) स्वल्पालाप गायन (४ भाग), (६) टप्पा गायन, (७) होरी गायन, (८) मृदंग-तवला-पाठ्यपुस्तक (९) सितार पाठ्यपुस्तक (२ भाग), (१०) भजनामृत लहरी (५ भाग) (११) रामनामावली, (१२) संगीतनामस्मरणी, (१३) भक्तप्रेमलहरी, (१४) भजनावली, (१५) रामगुणगान (मराठी), (१६) बंगाली गायन, (१७) कर्णाटक संगीत, (१८) बालादय संगीत (हिंदी २ भाग, मराठी १ भाग), (१९) व्यायाम के साथ संगीत (२ भाग), (२०) महिला संगीत (२ भाग), (२१) राष्ट्रीय संगीत, (२२) भारतीय संगीत लेखन पद्धति, (२३) संगीत तत्त्वदर्शक, (२४) अंकित अलंकार (२५) नारदीय शिक्षा (भाषा टीका सहित), (२६) १९१८-१९२० में आयोजित संगीत परिषदों की चार रिपोर्टें। 'संगीत सारामृत प्रवाह' नामक मासिक पत्र का सन् १८०५ से दशाधिक वर्ष तक नियमित प्रकाशन।

पर्यटन और विविध प्रवृत्तियाँ - संगीतप्रचार और महफिली गायन के निमित्त पूरे भारत का व्यापक पर्यटन। १९३० में नेपालयात्रा। वैज्ञानिक रीति से वाद्ययंत्र निर्माणार्थ अपना 'वर्कशॉप' खोला, और वाद्यप्रदर्शनियाँ आयोजित की।

पारिवारिक प्रसंग - १८९० में श्रीमती रमाबाई (शिष्यवर्ग की 'आईसाहब') से विवाह। ग्यारह संतान शैशव में कालकवलित, १२वीं संतान श्रीदत्तात्रेय को दस वर्ष का छोड़ आपका निधन। दत्तात्रेय जी डी.बी. पलुस्कर के नाम से विख्यात परम लोकप्रिय गायक बने। १९५५ में उनका अकाल निधन। 'आई साहब' का भी १९५७ में निधन।

प्रमुख शिष्य - सर्वश्री ओंकारनाथ ठाकुर, विनायकराव पटवर्धन, नारायणराव व्यास, ग.रा. गोखले, बा.र. देवधर, वामनराव ठकार, शंकर श्रीपाद वोडस, विष्णुदास शिराली, स्व. वामनराव पाध्ये, स्व. नारायण ये, स्वरे, स्व. शंकरराव व्यास इत्यादि।(प्रेमलता शर्मा)