पर्व (हिंदू) वैदिक साहित्य के अनुसार अमावस्या, पूर्णिमा (ऋ. १/९४/४; वाज.सं., १३/४३; श.ब्रा., १/६/३/३५) और चतुर्मास (दे. चातुर्मास्य) में होनेवाले उत्सवों का समय (कात्या.श्री.सू., ५/२/१३; शांखा.श्री.सू., १४/५/६; आश्व.श्री.सू., ९/२/३) तथा चंद्रमा के परिवर्तन की अवधि (कात्या.श्री.सू., ३४/६; शांखा.श्री.सू., ३/२/१; लाट्या.श्री.सू., ८/८/४६)। पुराणानुसार धार्मिक कृत्य और उत्सवादि के लिए निश्चित तिथियाँ - अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा और संक्रांति (वि.पु., ३/११/११८; मनु., ४/१५०) पर्व हैं। इस अवधि के शास्त्रविहित कर्म - उपवास, स्नान, दान, श्राद्ध और जप आदि - न करने तथा निषिद्ध कर्म - स्त्रीप्रसंग, मांसाहार आदि - करने से नरक मिलता है।

उपर्युक्त पर्वों के अतिरिक्त चंद्र की कलाओं में परिवर्तन के अवसर और सूर्य, चंद्र तथा ग्रहों की विशेष स्थितियाँ - राशियों पर सूर्य के ठीक सामने अथवा उसकी युति में चंद्रमा और नई राशि में सूर्य के प्रवेश के क्षण तथा ग्रहणकाल भी पर्व के अंतर्गत हैं। इस क्रम में वर्ष की कोई विशेष अवधि समयविभाग - अर्धमास, उत्सव या त्यौहार के अवसर सभी पर्व कहलाते हैं। ग्रहों, उपग्रहों की विशेष स्थितियों की दृष्टि से पर्व का निर्धारण ज्योतिष अथवा पंचांग के नियमों द्वारा होता है। पुराकालीन और ऐतिहासिक परंपरा द्वारा मान्य तिथि, वार या समयविभाग भी पर्वकाल के अंतर्गत आ जाते हैं। पंचांग के अनुशासन से रहित ऐसे लौकिक पर्व ऋतुसापेक्ष उत्सव और त्यौहार हैं। किंतु प्राय: हिंदू पर्वोत्सव के समय का निश्चय पंचांग - वार, तिथि, नक्षत्र, करण और योग - के आधार पर सूर्य चंद्र की सम्मिलित गति और स्थिति के अनुसार होता है। हिंदू पर्वेत्सवों का मुख्य निर्णायक तत्व ज्योतिष है जिसमें शुभ तथा अशुभ ग्रहों के, विविध राशियों में संचरण तथा योग को ध्यान में रखकर उनके देवताओं के स्वभाव गुण के अनुसार, किसी विशेष समय का फलाफल प्रस्तुत किया जाता है। वैसे हिंदू पंचाग में सभी दिन पर्व के हैं जा ग्रहों के देवताओं के गुणस्वभावनुसार स्वयमेव नियंत्रित हैं।

हिंदू कर्मकांड, धर्मशास्त्र और पुराण के अनुसार नियत आचार, अनुष्ठान, व्रत, पूजा और उत्सव आदि के पीछे ज्योतिष की मान्यता निर्णीत तथ्य है। इनके पीछे विभिन्न देवताओं की स्थिति, विधि विधान, आचार, माहात्म्य और फलाफल के विवरण संलग्न हैं। पुराणों में इनके संबंध की कथाएँ संग्रहीत हैं। होली, दीवाली, दशहरा, महाशिवरात्रि, गणेश चतुर्थी, जन्माष्टमी, रामनवमी, हनुमानजयंती, नागपंचमी, वामन द्वादशी, वसंत पंचमी आदि अनेक पर्वोत्सवों के साथ लोकप्रचलित अनेक महत्वपूर्ण त्यौहारों को भी पर्व में सम्मिलित कर लिया जाता है, यद्यपि इनके संबंध के पुराख्यान, शास्त्रीय या पौराणिक सीमा से परे, जनजातियों में प्रचलित किंवदंतियों और गाथाओं से युक्त होते हैं। (दे. '्व्रात' तथा संबंधित शीर्षक)। (श्याम तिवारी)

इस्लामी

इस्लाम जगत् में प्रचलित पर्व भी प्राय: चांद्र मास पर आधारित मुस्लिम पंचांग के अनुसार निर्धारित होते हैं। इन पर्वों का यद्यपि कुरान में स्पष्ट उल्लेख नहीं है तथापि अर्धधार्मिक रूप में वे सर्वत्र मनाए जाते हैं। इनमें से दो मुख्य पर्वोत्सव निम्नांकित हैं -

  1. ईद-इ-जुहा - यह अरबी मास जिलहुज़ के नर्वे तथा दसवें दिन पड़ता है। यह उत्सव इस्लामधर्म के उदयकाल से पूर्व प्रचलित था जिसे मक्का के तीर्थयात्री नबी के निर्देशनुसार मनाते थे। वे मीना की घाटी में एकत्र होकर बलिपूर्वक (कुरबानी) बकरी, भेड़, ऊँट आदि पवित्र पशुओं की भेंट चढ़ाते थे। आज भी विभिन्न देशों के मुस्लिम इस अवसर पर इस कृत्य का संपादन करते हैं। इस पर्व की मिस्त्र तथा तुर्की में 'बैरम', ईरान में 'ईद-ए-कुरबान' और भारत पाकिस्तान में 'बक्रईद' कहते हैं। इस अवसर पर मुसलमान स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और ईदगाह जाकर ईद की नमाज पढ़ते हैं (दे. नमाज)।
  2. रमज़ान अथवा ईद-उल-फित्र - यह पर्व रमज़ान के दीर्घकालीन मासिक उपवास के बाद दसवें अरबी मास शव्वाल के प्रथम दिन को मनाया जाता है। इस पर्व का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से है। यह मूलत: इस्लामी पर्व है। इस दिन मुलसमान ईदगाह या मस्जिद में जाकर दो रकअतों में ईदुलफित्र की नमाज पढ़ते हैं। (दे. नमाज़)।
  3. इन दो प्रधान पर्वों के अतिरिक्त रबीउलऔवल के १२वें दिन मौलूद पड़ता है। भारत में इसका समय अनिश्चित है और उपर्युक्त मास में किसी दिन पड़ सकता है। वहाबी संप्रदाय के लोग इसे नहीं मनाते। इसी प्रकार रबीउलअखर में सूफी संत अब्दुल कादिर जीलानी के जन्मदिन का उत्सव पड़ता है जिसे केवल सुन्नी लोग ही मानते हैं। तीसरा शब-ए-बरात का उत्सव है जो दीपावली की भाँति आतिशबाजियों के प्रदर्शन के साथ समारोहपूर्वक मनाया जाता है। यह आठवें अरबी मास शाबान के १५वें दिन पड़ता है। मुस्लिम-विश्वास-परंपरा के अनुसार इस रात बहिश्त स्थित सिद्रतुलमुनताह का वृक्ष हिलता है। इसके प्रत्येक पत्ते पर अलग अलग यहाँ के व्यक्तियों का नाम लिखा रहता है और जिसके नाम का पत्ता टूट जाता है, वर्ष के अंदर ही उसकी मृत्यु हो जाती है। इस दिन व्यक्ति के आगामी वर्ष की शुभता तथा भाग्य का निपटारा होता है। इस मास के १४वें १५वें दिन मृत संबंधियों की स्मृति में विविध व्यंजन तैयार किए जाते हैं और फातिहा पढ़ने के बाद उन्हें वितरित कर दिया जाता है। चौथा पर्व आख़ीर चरशंबा है। यह दूसरे अरबी मास सफर के अंतिम बुधवार को पड़ता है। इस दिन पवित्र होकर लोग बदनसीबी के त्राण पाने के लिए ताबीज धारण करते हैं। विश्वास है, नबी ने इसी दिन गंभीर रुग्णता से मुक्त होकर स्नान किया था। वहाबी संप्रदाय के लोग इसे नहीं मनाते। पाँचवाँ नौरोज़ का पर्व है। यह वस्तुत: नववर्षोत्सव है जो ईरान और ईराक़ में २१ मार्च से लेकर १२ रोज तक मनाया जाता है। यह ईरानियों के महान् राष्ट्रीय पर्व के रूप में बड़े धूमधाम से संपन्न होता है। इसी रोज सूर्य मेष राशि पर आता है और वसंत प्रारंभ होता है। इस प्रकार यह वसंतोत्सव का एक रूप भी है। इन गौण पर्वों में तुर्की में कुस्तुंतुनिया का विजयपर्व, स्पेन का सेंट जान दिवस और मुस्लिम जगत् में प्रचलित छोटे मोटे उत्सव हैं। (दे.तीर्थ, मुस्लिम)।

  4. जुमा अथवा शुक्रवार - यह पूर्णत: धार्मिक पर्व है जो प्रत्येक शुक्रवार को पड़ता है। इस दिन मुस्लिम धर्मावलंबी पवित्र कुरान के निर्देशानुसार स्वच्छ होकर सामूहिक नमाज़ में सम्मिलित होते हैं (दे. नमाज़)। यह ईसाइयों के रविवार या यहूदियों के शनिवार की भाँति मुस्लिमों का सावाथ दिवस नहीं है।

सं.ग्रं.- एनसाइक्लोपीडिया ऑव इस्लाम; एनसाइक्लोपीडिया ऑव रेलिजन ऐंड एथिक्स, खंड ५; ए.एम.ए. शुस्तरी : आउटलाइन ऑव इस्लामिक कल्चर, द बंगलौर प्रेस, १९५५; के.डी. भार्गव: ए सर्वे ऑव इस्लामिक कल्चर ऐंड इंस्टीट्यूशंस, किताब महल, इलाहाबाद, १९६१। (श्याम तिवारी)

ईसाई

ईसाइयों का प्राचीनतम पर्व इतवार है। प्रारंभ ही से वे इस दिन ईसा के पुनरुत्थान का स्मरणोत्सव मनाते थे और यूखारिस्ट संस्कार ग्रहण करते थे (दे. यूखारिस्ट)। आजकल भी प्राय: समस्त ईसाई गिरजाघरों में इतवार को धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन होता है। वर्ष का प्रथम ईसाई त्यौहार भी ईसा के पुनरुत्थान के स्मरणार्थ मनाया जाता है (दे. पुनरुत्थान)। बाद में क्रिस्मस तथा प्रभुप्रकाश नाम पर्वों का प्रचलन हुआ। ये दोनों ईसा के जन्म से संबंधित हैं (दे. 'क्रिस्मस', 'प्रभुप्रकाश')। ईसा के जीवन से संबधित दो अन्य पर्व महत्वपूर्ण हैं। गुड फ्रॉइडे (पुनीत शुक्रवार) जो क्रूस पर ईसा के मरण के आदर में पुनरुत्थान के दो दिन पहले मनाया जाता है। पुनरुत्थान के चालीस दिन बाद पड़नेवला ईसा के स्वर्गारोहण का पर्व है।

अपने स्वर्गारोहण के दस दिन ईसा ने पवित्र आत्मा को अपने शिष्यों के पास भेजा था, इसी घटना की स्मृति में स्वर्गारोहण पर्व के दस दिन बाद पेंतकोस्त पर्व मनाया जाता है।

संतों के आदर में ईसाइयों ने सर्वप्रथम शहीदों की जयंतियाँ मनाई किंतु चौथी शती से लेकर ईसा की माता मरियम, योहन बपतिस्ता तथा ईसा के पट्टशिष्यों के आदर में भी त्यौहारों का अनुष्ठान होने लगा। संत मरियम का सबसे बड़ा त्यौहार १५ अगस्त को उनके स्वर्गोद्ग्रहण के स्मरणार्थ मनाया जाता है।(रेवरेंड कामिल बुल्के)