परावर्तक (Reflectors) किसी भी स्त्रोत से ऊर्जा क्यों न प्राप्त हो, सदुपयोग में व संपूर्ण अंशों में आनी चाहिए। यह वैज्ञानिकों का पक्ष आदर्श है, जिसने वैज्ञानिकों को ऊर्जा के विभिन्न रूपों के कुछ नियंत्रणकारी उपकरणों के लिए प्रेरित किया।
प्रारंभ में जो विद्युत् लैंप प्रयोग में लाए जाते थे, उनमें प्रकाश नियंत्रण का कोई प्रबंध नहीं रहता था। निस्संदेह इससे दो हानियाँ थीं : १. अनैच्छिक दिशा में प्रकाश का कोई सदुपयोग न होना और २. लैंप से प्रकाश की किरणों का आँखों पर सीधे पड़ना। अतएव कालांतर में लैंपों के साथ एक ऐसे उपकरण का प्रयोग किया जाने लगा जो प्रकाशोत्पादक से आती हुई प्रकाश किरणों को एक विशेष दिशा में परावर्तित कर देता है। इसे प्रकाशपरावर्तक कहते हैं। निस्संदेह अन्य रंगों की तुना में एक चमकीली सफेद पॉलिश प्रकाश को अधिक मात्रा में परावर्तित करती है। इसीलिए अच्छे परावर्तकों में चाँदी की पॉलिश होती है। ऐसा परावर्तक प्रकाश का ९०ऽ भाग आसानी से परावर्तित कर देता है। किंतु सामान्य प्रयोग के लिए ये परावर्तक अधिक कीमती होते हैं। इसलिए ऐल्यूमिनियम के पॉलिशवाले परावर्तक विशेष रूप से प्रयोग में लाए जाते हैं, जो सस्ते पड़ते हैं। इस प्रकार के परावर्तकों की विशेषता यह होती है कि प्रकाश किरण का आपतन कोण (angle of incidence) परावर्तन कोण (angle of reflection) के बराबर होता है। इनको सुव्यवस्थित परावर्तक कहते हैं। इसके विपरीत एक खुरदरा पृष्ठ (सफेद प्लास्टर, या ब्लाटिंग पेपर) एक विसरित (diffuse) परावर्तक की भाँति कार्य करता है। ये समतल (plane), अर्धवृत्ताकार (semicircular), परवलयाकार (parabolic) आदि विभिन्न आकृतियों के होते हैं। प्रदीपन इंजीनियरी (illuminating engineering) में परवलयाकार परावर्तकों का प्रयोग होता है। इसका सिद्धांत है कि यदि प्रकाशोत्पादक परवलय की नाभि (focus) पर स्थित है तो परावर्तन के पश्चात् किरणें एक विशेष दिशा में संकेद्रित (concentrated) हो जाएँगी। हवाई अड्डों पर वायुयानों एवं समुद्र में जलयानों को मार्ग दर्शाने में इसी प्रकार के परावर्तकों का प्रयोग होता है।
परंतु आजकल इनका उपयोग प्रकाश नियंत्रण तक ही सीमित नहीं है, वरन् ध्वनि लहरों एवं इलेक्ट्रॉनिकी (electronics) में चुंबकीय विद्युत्तरंगों (electromagnetic waves) के परावर्तन में भी इनका प्रयोग होता है।
सिनेमा या थियेटर की एक दीवार कुछ इस प्रकार अर्धवृत्ताकार बनाई जाती है कि उससे ध्वनि की लहरें परावर्तित होकर श्रोतासमूह के पास तक पहुँच सकें। यहाँ यह बात स्मरणीय है कि ध्वनि की लहरें भी प्रकाश की लहरों की तरह ही परावर्तन के नियमों का पालन करती हैं।
राडार उपकरणों में भी एक परवलायाकार परावर्तक होता है, जो अपने अक्ष के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। यह रेडियों तरंगों को इधर उधर भेजता रहता है, जो बहुत दूर की वस्तु से परावर्तित होकर राडार उपकरण के परदे पर उसका प्रतिबिंब बनाती हैं, जिससे वस्तु की दूरी और दिशा का अनुमान हो जाता है। ऐसे उपकरण युद्ध के समय बहुत ही उपयोगी होते हैं।
(सुरेश सिंह कुशवाहा)