पराबैंगनी किरणें (Ultraviolet Rays) दृष्टिगोचर प्रकाश में लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैंगनी रंग दिखाई पड़ते हैं। यदि सूर्य की किरणों को किसी त्रिपार्श्व (prism) से होकर एक सफेद पर्दे पर पड़ने दिया जाये तो इन सात रंगों की पट्टी पर्दे पर दिखाई पड़ने लगती है। इस पट्टी को वर्णक्रम कहा जाता है। आजकल यह माना जाता है कि सभी वर्णों की किरणें विद्युच्चुंबकीय तरंगें हैं। लाल रंग की रश्मियों या विकिरण (radiation) का तरंगदैर्ध्य (wavelength) लगभग ७,००० ॠरू और बैंगनी रंग की रश्मियों का लगभग ४,००० ॠरू होता है। सूर्य के प्रकाश तथा अन्य प्रकाशस्त्रोतों से ऐसी किरणें भी निकलती हैं जो आँखों से देखी नहीं जा सकती हैं। जिन अदृश्य किरणों का तरंगदैर्ध्य ४,००० ॠरू से कम होता है, उन्हें पराबैंगनी किरणें कहा जाता है। ये किरणें फोटो-प्लेट या फिल्म को प्रभावित करती हैं। इनकी खोज इसी गुण के आधार पर सन् १८०१ ई. में जे.डब्ल्यू. रिटर (J.W. Ritter) ने की थी। सन् १८६२ ई. में जी.जी. स्टोक्स (क्र.क्र. Stokes) ने इन किरणों के कई गुणों का पता लगाया था। इनका विशेष अध्ययन करनेवाले वैज्ञानिकों में मैस्कार्ट (Mascarte), थियोडोर लाइमन (Theodore Lyman) और रौलैंड (Rowland) के नाम मुख्य हैं।

सूर्य के अतिरिक्त विद्युत् आर्क, विद्युत् स्पार्क और विद्युद्विसर्जन (electric discharge) से भी पराबैंगनी किरणें निकलती हैं। सूर्य से निकलनेवाली पराबैंगनी रश्मियों को वायुमंडल का ऑक्सीजन गैल शोषित कर लेता है और वे पृथ्वी तक नहीं पहुँच पातीं। शीशा भी इन किरणों को पूर्णत: शोषित कर लेता है, किंतु क्वार्ट्ज़, या स्फटिक १,८५० ॠरू तक की पराबैंगनी किरणों के लिए पारदर्शक होता है। २,००० ॠरू से १,८०० ॠरू तक की किरणों को निर्वात पराबैंगनी (Vaccuum U.V.) कहते हैं। ये किरणें आँखों तथा शरीर के अन्य कोमल तंतुओं के लिए हानिकारक होती है। बहुत से पदार्थ इन किरणों को सोखकर दृश्य प्रकाश (visible light) देने लगते हैं। इसी गुण का उपयोग करके प्रतिदीप्ति लैंप (fluorescent lamps) बनाए जाते हैं। कीटाणुनाशक होने से चिकित्सा विज्ञान में भी इन किरणों को प्रयोग होता है। ये आँख से नहीं दिखाई देतीं, परंतु स्वस्थ युवा आँखों में हलके नीले रंग की अनुभूति पैदा करती हैं।(श्रवणकुमार तिवारी)