पराड़कर, बाबूराव विष्णु बाबूराव विष्णु पराड़कर का जन्म वाराणसी में मंगलवार, १६ नवंबर, १८८३ ई. (कार्तिक शुक्ल ६, सं. १९४० वि.) को हुआ। माता अन्नपूर्णाबाई और पिता विष्णु शास्त्री महाराष्ट्र से आकर वाराणसी में बसे थे। संस्कृत की प्रारंभिक शिक्षा के बाद १९०० ई. में भागलपुर से मैट्रिक परीक्षा पास की। १९०३ में पहला विवाह हुआ। १९२६ ई. में तीसरा विवाह एक विधवा से हुआ। १९०६ ई. में 'हिंदी बंगवासी' के सहायक संपादक होकर कलकत्ता गए। छह महीने बाद हिंदी साप्ताहिक 'हितवार्ता' के संपादक हुए और चार वर्ष तक वहीं रहे। साथ ही बंगाल नैशनल कालेज में हिंदी और मराठी पढ़ाते थे। १९११ ई. में 'भारतमित्र' के संयुक्त संपादक हुए जो उस समय साप्ताहिक से दैनिक हो गया था। १९१६ ई. में राजद्रोह के संदेह में गिरफ्तार होकर साढ़े तीन वर्ष के लिए नजरबंद किए जाने के समय तक इसी पद पर रहे। कलकत्ता पहुँचने के पहले ही से आपका क्रांतिकारी दल से संपर्क था। वहाँ युगांतर क्रांतिकारी दल के सक्रिय सदस्य रहे। सन् १९२० में नजरबंदी से छूटने पर वाराणसी आ गए। उसी वर्ष ५ सितंबर को दैनिक 'आज' का प्रकाशन हुआ जिसकी रूपरेखा की तैयारी के समय से ही संबद्ध रहे। पहले चार वर्ष तक संयुक्त संपादक और संपादक तथा प्रधान संपादक मृत्यु पर्यंत रहे। बीच में १९४३ से १९४७ तक 'आज' से हटकर वहीं के दैनिक 'संसार' के संपादक रहे। वाराणसी में भी अपन पत्रकार जीवन के समय वर्षों तक उनका क्रांतिकारी गतिविधियों से सक्रिय संपर्क रहा। सन् १९३१ में हिंदी साहित्य सम्मेलन के शिमला अधिवेशन के सभापति चुने गए। सम्मेलन ने उन्हें साहित्य वाचस्पति की उपाधि से विभूषित किया। गीता की हिंदी टीका और प्रख्यात बँगला पुस्तक 'देशेर कथा' का हिंदी में अनुवाद आपने किया। हिंदी भाषा को सैकड़ों नए शब्द आपने दिए। लिखने की विशिष्ट शैली थी जिसमें छोटे छोटे वाक्यों द्वारा गूढ़ से गूढ़ विषय की स्पष्ट और सुबोध अभिव्यक्ति होती थी। मृत्यु वराणसी में १२ जनवरी, १९५५ को हुई।(बलभद्र प्रसाद मिश्र)