परांजपे, शिवराम महादेव (१८६४-१९२९ ई.) मराठी के प्रतिभाशाली साहित्यकार, वक्ता, पत्रकार, और ध्येयनिष्ठ राजनीतिज्ञ। आपका जन्म पहाड़ में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा पहाड़ रत्नागिरी और पूना में हुई। डेक्कन कॉलेज से १८९२ में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर 'भगवानदास' तथा 'झाला वेदांत' पुरस्कार उन्होंने प्राप्त किया था। इसके बाद पूना में महाराष्ट्र कॉलेज में संस्कृत के प्राध्यापक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। १८९७ में जब देश का वातावरण क्षुब्ध हो रहा था उनका विद्यालय भी सरकार का कोपभाजन हुआ। अत: १८९८ में उन्होंने 'काल' नामक साप्ताहिक निकाला। उनके राजनीतिक जीवन का प्रारंभ इसी पत्र के साथ होता है। इस पत्र में तेजस्वी और जनजागृति का निर्माण करनेवाले विचारों के कारण सरकार ने उन्हें देशद्रोही घोषित किया और १९ महीनों की जेल की सजा दी। १९१० में जब उनकी मुक्ति हुई, पत्र बराबर प्रकाशित होता रहा। लेकिन आगे चलकर वह 'प्रेस ऐक्ट' का शिकार हुआ। 'कालांतील निवडक निबंध' के दसों भाग सरकर ने जप्त कर लिए थे। १९३७ में दसवें भाग को मुक्त कर दिया गया और शेष सब भाग १९४६ में मुक्त किए गए।

१९२० में उन्होंने 'स्वराज्य' साप्ताहिक आरंभ किया। महात्मा गाँधी ने जब असहयोग आंदोलन चलाया, तब वे उसके समर्थक बने।

ललित वाङ्मय, न्याय, मीमांसा, इतिहास, मराठों के युद्ध, शूद्रों की व्युत्पत्ति आदि अनेक विषयों पर उनकी कलम अबाध रूप से चलती रही। वे संपूर्ण स्वतंत्रता के समर्थक थे। उन दिनों जब 'वंदेमातरम्' के उच्चारण मात्र के लिए सजा मिलती थी, उनकी व्यंग्यात्मक शैली बहुत ही प्रभावकारी रही। वे मराठी के गद्यकवि थे। 'भाषा की भवितव्यता' निबंध में लेखक के रूप में उनकी अद्भुत प्रतिभा का परिचय मिलता है।

उनकी वाणी में ओज था। अपने धाराप्रवाह भाषणों से वे श्रोताओं को मुग्ध कर देते थे। उनकी लोकप्रियता का चरमोत्कर्ष काल साधारण रूप से १८९८ से १९०८ तक रहा। साहित्य के प्रति उनकी सेवाओं को ध्यान में रखकर ही १९२८ में वे बेलगाँव के मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बनाए गए थे।

(हरि अनंत फड़के )