पनतोड़ या तरंगरोध (Break-water) समुद्री लहरों में निहित ऊर्जा में ्ह्रास के लिये, तट से लगी हुई जो रुकावटें बनाई जाती हैं, उन्हें पन-ऊर्जा-तोड़ कहा जा सकता है। सरलता के लिये उन्हें पनतोड़, या तरंगरोध, कहते हैं। खुले हुए समुद्रतट पर स्थित बंदरगाहों की सुरक्षा पनतोड़ों द्वारा प्राप्त की जाती है। समुद्री लहरों में ऊर्जा बहुत बड़ी मात्रा में होती है ओर तूफानों में भारी से भारी तथा बड़े से बड़े पुश्ते भी विस्थापित हो जाते हैं, इसलिये बंदरगाहों की सुरक्षा के लिये पनतोड़ों के निर्माण पर बहुत व्यय किया जाता है।
निर्माणविधि व निर्माणसामग्री के आधार पर पनतोड़ों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:
निर्माण सामग्री की उपलब्धता, पानी की गहराई, समुद्र की तली का उतार चढ़ाव एवं प्राकृतिक दशा तथा उपलब्ध साधनों आदि पर इनका निर्माण आकल्प आधारित है।
ढालवाँ पनतोड़ - इस प्रकार का पनतोड़ बनाने के लिये प्राकृतिक रूप में पाए गए बड़े बड़े पत्थर तथा कंक्रीट के ब्लॉक प्रयोग में लाए जाते हैं। पनतोड़ को ज्वार भाटे की अधिकतम ऊँचाई तथा तूफानी लहर की ऊँचाई के बराबर ऊँचा बनाया जाता है।
ऊपर की चौडाई भी तूफानी लहर की ऊँचाई के बराबर और क्रेन, अथवा ट्रक, के चल सकने योग्य बनाई जाती है।
पनतोड़ के अभिकल्प में उसकी स्थिरता और स्थायित्व को ध्यान में रखते हुए, ढाल तथा किस स्थान पर किस माप का पत्थर रखना है, आदि बातें तय करनी होती हैं। नए पनतोड़ों पर प्रारंभिक तूफानों में कुछ न कुछ टूट फूट हो जाना साधारण सी बात है और शीघ्र से शीघ्र मरम्मत हो जाना आवश्यक है। इस प्रकार धीरे धीरे ये पनतोड़ अधिक स्थायी होते जाते हैं और मरम्मत का व्यय भी कम हो जाता है।
ढालवाँ पनतोड़ के तीन या तीन से अधिक भाग होते हैं : हलका, बीच की श्रेणी का तथा भारी। हलका भाग सबसे नीचे तथा बीच में रखा जाता है। इसमें खदानों से खारिज हुआ मलवा भरा जाता है। बीच की श्रेणी का भाग हलके भाग की ढालों को सुरक्षित करने के लिय होता है और इसमें कुछ किलाग्राम से लेकर ४-५ टन तक के भार के पत्थर डाले जाते हैं। भारी भाग सबसे ऊपर होता है ओर इसमें १ टन से १० टन तक भार के पत्थर डाले जाते हैं। इस श्रेणी के पनतोड़ की आड़ी काट चित्र १. में दिखाई गई है।
खड़े पनतोड़ - इस प्रकार के पनतोड़ों का अभिकल्प समुद्री लहरों के द्वारा उत्पादित दबाव के विचार से किया जाता है। ढालवाँ पनतोड़ के स्थान पर खड़े पनतोड़ बना देने के कारण अत्यधिक क्षति होती हुई देखी गई है। पनतोड़ों की असफलताओं तथा सिद्धांतों के अध्ययन से, खड़े पनतोड़ के प्रयोग के लिये निम्नलिखित सावधानियाँ निर्धारित की जा सकती हैं :
इसके विपरीत खड़े पनतोड़ के कुछ लाभ भी हैं। निर्माण सामग्री की कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। यदि समुद्रतट पर पत्थर का मूल्य अधिक हो तब भी खड़ा पनतोड़ सस्ता रहता है। इस श्रेणी के पनतोड़ों की देखरेख और मरम्मत का व्यय भी कम होता है।
खड़े पनतोड़ के दो उदाहरण चित्र २. (अ) तथा २ (ब) में दिखाए गए हैं। मिश्रित आकल्प के पनतोड़ वहाँ बनाए जाते हैं जहाँ प्राकृतिक स्थिति ऐसी होती है कि मिश्रित आकल्प से व्यय में भी बचत होती है तथा निर्माण सुविधा भी मिल जाती है। इस विषय में समुद्रतटीय इंजीनियरी के अंतर्गत बहुत खोजबीन भी करनी होती है तथा गवेषणाकेंद्रों में छोटी रूपरेखा के माँडेलों पर प्रयेग करके, यह मालूम किया जाता है कि किस प्रकार के आकल्प से संतोषप्रद परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
पनतोड़ का विषय कुछ पेचीदा है, क्योंकि समुद्र की स्थिति तथा व्यवहार बड़ा परिवर्तनशील होता है। नए निर्माण करने से समुद्र के स्थलीय व्यवहार में क्या प्रतिक्रिया होगी इसका ठीक ठीक अनुमान करना बहुत कठिन कार्य है, फिर भी संसार में अनेक बंदरगाहों पर तथा अन्य तटीय स्थानों पर सहस्त्रों पनतोड़ बने हुए हैं, बनाए जाते हैं तथा टूटते और बनते रहते हैं।(बालेश्वर नाथ)