पद्मिनी (१) सिंहल द्वीप की अद्वितीय सुंदरी राजकन्या तथा चित्तौड़ के राजा भीमसिंह (टॉड) अथवा रत्नसिंह (ओझा) की रानी जिसके रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है। पद्मिनी संबंधी कथाओं में सर्वत्र यह स्वीकार किया गया है कि अलाउद्दीन ऐसा कर सकता था लेकिन किसी विश्वसनीय तथा लिखित प्रमाण के अभाव में ऐतिहासिक दृष्टि से इसे पूर्णतया सत्य मान लेना कठिन है।

सुल्तान के साथ चित्तौड़ की चढ़ाई में उपस्थित अमीर खुसरो में एक इतिहासलेखक की स्थिति से न तो 'तारीखे अलाई' में और न सहृदय कवि के रूप में अलाउद्दीन के बेटे खिज्र खाँ और गुजरात की रानी देवलदेवी की प्रेमगाथा 'मसनवी खिज्र खाँ' में ही इसका कुछ संकेत किया है। इसके अतिरिक्त परवर्ती फारसी इतिहासलेखकों ने भी इस संबध में कुछ भी नहीं लिखा है। केवल फरिश्ता ने चित्तौड़ की चढ़ाई (सन् १३०३) के लगभग ३०० वर्ष बाद और जायसीकृत 'पद्मावत' (रचनाकाल १५४० ई.) की रचना के ७० वर्ष पश्चात् सन् १६१० में 'पद्मावत्' के आधार पर इस वृत्तांत का उल्लेख किया जो तथ्य की दृष्टि से विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। ओझा जी का कथन है कि पद्मावत, तारीखे फरिश्ता और टाड के संकलनों में तथ्य केवल यहीं है कि चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को विजित किया, वहाँ का राजा रत्नसेन मारा गया और उसकी रानी पद्मिनी ने राजपूत रमणियों के साथ जौहर की अग्नि में आत्माहुति दी। इसके अतिरिक्त अन्य सब बातें कल्पित हैं।

सिंहल द्वीप की राजकन्य के रूप में पद्मिनी की स्थिति तो घोर अनैतिहासिक है (ओझा)। ओझा जी ने रत्नसिंह की अवस्थिति सिद्ध करने के लिये कुंभलगढ़ का जो प्रशस्तिलेख प्रस्तुत किया है, उसमें उसे मेवाड़ का स्वामी और समरसिंह का पुत्र लिखा गया है, यद्यपि यह लेख भी रत्नसिंह की मृत्यु (१३०३) के १५७ वर्ष पश्चात् सन् १४६० में उत्कीर्ण हुआ था। भट्टकाव्यों, ख्यातों और अन्य प्रबंधों के अलावा परवर्ती काव्यों में प्रसिद्ध 'पद्मिनी के महल' और 'पद्मिनी के तालाब' (दे. चित्तौड़) जैसे स्मारकों के बाबजूद किसी ठोस ऐतिहासिक प्रमाण के बिना रत्नसिंह की रानी को पद्मिनी नाम दे देना अथवा पद्मिनी को हठात् उसके साथ जोड़ देना असंगत है। संभव है, सतीत्वरक्षा के निमित्त जौहर की आदर्श परंपरा की नेत्री चित्तौड़ की अज्ञातनामा रानी को, चारणों आदि ने, शास्त्रप्रसिद्ध सर्वश्रेष्ठ नायिका पद्मिनी नाम देकर तथा सतीप्रथा संबंधी पुरावृत्त के आधार पर इस कथा को रोचक तथा कथारुढ़िसंमत बनाने के लिये, रानी की अभिजात जीवनी के साथ अन्यान्य प्रसंग गढ़ लिए हों। अस्तु, सैंदर्य तथा आदर्श के लोकप्रसिद्ध प्रतीक तथा काव्यगत कल्पित पात्र के रूप में ही पद्मिनी नाम स्वीकार किया जाना ठीक लगता है।

(२) तिरुपति स्थित भारतीय वैष्णव देवता 'श्रीनिवास' अथवा 'वेंकटेश' की पत्नी का नाम है (स्कंद., २/१/४-८)।

(श्याम तिवारी )