पंचांग 'पंचांग' शब्द का अर्थ है 'पाँच अंग', क्योंकि हिंदू पंचांग के पाँच अंग वार, तिथि, नक्षत्र, करण और योग होते हैं (देखें पंचांग पद्धति)।
पंचांग वह पुस्तक है, जो प्रति वर्ष प्रकाशित की जाती है और जिसमें (१) आगामी वर्ष के धार्मिक पर्व, सामाजिक उत्सव, राजकीय महत्व के पर्व या कार्यक्रम इत्यादि के समय बतलाए जाते हैं और (२) वर्ष के मास और मास के दिन निश्चित किए जाते हैं, जिससे उनका उपयोग हम अपने पत्र, हिसाब, विविध व्यावहारिक कार्यक्रम, भूत और भविष्य की घटनाओं के समयों का निर्देश इत्यादि कार्यों में कर सकते हैं। यहाँ हम उपर्युक्त पर ही विचार करेंगे।
भारत के पंचांगों में विविध् हिंदू संवत्, इस्लामी और खिस्ती सन इत्यादि दिए जाते हैं (देखें कालक्रम विज्ञान)। हमारे पंचांगों में दिए हुए वर्ष, मास, दिन इत्यादि का स्वरूप क्या होना चाहिए, इसपर भी हम विचार करेंगे।
मासमान का हेतु चंद्र की कला बतलाना है। इसको अधिक स्पष्टता के लिए चांद्र मास कहेंगे। ऐसे १२ चांद्र मासों के लगभग ३५४ दिन होते हैं। सायन (ऋतुचक्रतुल्य) वर्ष में लगभग ३६५ दिन होते हैं, इसलिए ऐसा वर्ष १२ चांद्र मासों के तुल्य नहीं होता। इस कारण हिंदू पंचांग में लगभग ३३ चांद्र मासों के पश्चात् एक अधिक मास रखा जाता है। इस्लामी पंचांग में मास चांद्र है, मगर उसमें अधिक मास की व्यवस्था न होने से करीब ३३ वर्षों में प्रत्येक मास में प्रत्येक ऋतु आ जाती है।
इससे यदि मास चांद्र रखे जायें तो प्राय: दो वर्ष १२ मासों के और एक वर्ष १३ मासों का आएगा। ऐसी व्यवस्था व्यावहारिक कार्यों के लिए प्रतिकूल है। इससे यह आवश्यक है कि मास सौर ही रखे जाए। इस व्यवस्था से मास के मूल हेतु का, जो चंद्रकला बतलाना है, पालन नहीं होगा, तथापि मास सौर रखने पर भी प्रत्येक दिन की तिथि हम पंचांग में बतला सकते हैं और उससे चंद्रकला का भी ज्ञान हो जायगा।
इस प्रकार से वर्ष सायन (ऋतुचक्रतुल्य, tropical) सौर और उसें १२ सौर मास होने चाहिए। सायन वर्ष का मान ३६५.२४२२ दिन हैं। इससे ऐसे ४०० वर्षों के १४६०९६.८८ दिन होते हैं। इनको स्वल्पांतर से १४६०९७ लिया जाय तो ४०० वर्षों में .१२ दिन, अर्थात् लगभग तीन घंटों क ही अंतर रहेगा, जो लगभग ३,३०० वर्षों में एक दिन का होगा। ऋतुओं में एक दिन में किसी महत्व के अंतर का अनुभव नहीं होता और इतना अंतर भी आज से ३,३०० वर्षों के पश्चात् होगा। इन कारणों से ४०० आर्तव वर्षों के १४६०९७ दिन रखने में कोई हानि नहीं। यह व्यवस्था 'पंचांग पद्धति' शीर्षक लेख में विस्तार से दी गई है। यहाँ इतना कहना पर्याप्त होगा कि इस व्यवस्था में कुछ वर्ष ३६५ दिन के और कुछ वर्ष ३६६ दिन के होंगे।
इस प्रकार १२ मासों में ३६५ या ३६६ दिन आएँगे। इससे कुछ मास ३० दिन के और कुछ मास ३१ दिन के होंगे। इसकी विशेष चर्चा भी 'पंचांग पद्धति' शीर्षक लेख में की गई है।
दिन का आरंभ मध्यरात्रि से करके उसके घटों की संख्या को १, २,३,... से लेकर सीधे २२, २३, २४ तक ले जाना चाहिए। आज की प्रथा प्रात: और सायं १ से १२ घंटों तक गिनने की है। यह प्रथा व्यवहार में प्रतिकूल पड़ती है, अत: इसको भी बदलना चाहिए और रेलवे तथा तार के कार्यों के अनुसार १ से २४ घंटे रखने चाहिए। यह सौर वर्ष, सौर मास और उनके दिन हमारे पंचांग का बाह्य स्वरूप होंगे। इसके भीतर चांद्र मास, उनकी तिथियाँ और चांद्र अधिक मास भी आएँगे, क्योंकि हमारे बहुत से सामाजिक उत्सव और धार्मिक व्रतादि चांद्र मासों की तिथियों पर निर्भर हैं। उन सबका निर्णय संप्रति प्रचलित प्रथा के अनुसार चांद्र मास और चांद्र तिथियों से ही होगा। रविवार आदि वार भी आज के अनुसार ही रहेंगे। आज भारत के शासन ने जो 'राष्ट्रीय पंचांग' स्वीकृत किया है उसें और उपर्युक्त पद्धति में कोई महत्व का अंतर नहीं है। इस पद्धति का उपयोग व्यवहार में कैसे करना चाहिए यह 'पंचांग पद्धति' शीर्षक लेख में द्रव्टव्य है।
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