पंचकन्या इस शब्द का प्रचार भ्रमवश हुआ जान पड़ता है, क्योंकि पाँच 'कन्याओं' का कोई भी प्रसिद्ध समूह शास्त्रोक्त नहीं है, यद्यपि 'आह्निक सूत्रावली' नामक ग्रंथ में यह श्लोक आया है- 'अहल्या मंदोदरी तारा कुंती द्रौपदी तथा पंचकं ना स्मरेत् नित्यं महापातक नाशनं।' अर्थात् इन पाँच प्राचीन महिलाओं (पंचक) को पुरुष (ना = नर) नित्य स्मरण किया करे, क्योंकि इनका स्मरण महापातकों को भी नष्ट करता है। इसी 'पंचकं ना' को लोगों ने बिगाड़कर पंचकंना > पंचकन्ना > 'पंचकन्या' कर दिया।
वास्तव में यह भ्रम कब से और किसके द्वारा प्रारंभ हुआ, यह अज्ञात है। पर है यह शब्द स्पष्ट: भ्रमाक, क्योंकि इन पाँचों स्त्रियों में से एक भी कन्या नहीं, सभी विवाहिता थीं। शास्त्र में कन्या शब्द दस वर्षीया कुमारी के ही लिए आया है। हाँ, 'गुप्तसाधनतंत्र' नामक ग्रंथ के प्रथम पटल में 'नवकन्या' शब्द नवदुर्गा की भाँति प्रयुक्त हुआ है।
'नटी कापालकी वेश्या रजकी नापितांगना
ब्राह्मणी शूद्र कन्या च तथा गोपाल कन्यका
मालाकारस्य कन्या च नवकन्या: प्रकीर्तिता:'
इन नव भिन्न भिन्न जातियों की कन्याओं का तांत्रिक साधना में कोई महत्व होगा, पर 'पंचकन्या' शब्द कभी किसी ग्रंथ में प्रयुक्त नहीं हुआ है। इसमें संदेह नहीं कि आ्ह्रक सूत्रावली की सूची में दी हुई पाँचों स्त्रियाँ प्राचीन भारत की रत्न थीं और उनकी स्मृति महापातकनाशिनी मान ली गई होगी।
(रामाज्ञा द्विवेदी)