न्यूरॉप्टेरा (Neuroptera)
इंसेक्टा श्रेणी के अंतर्गत आनेवाले कीटो का एक वर्ग है। इस वर्गं के कीट
छोटे से लेकर कुछ बड़े आकार के कोमल शरीरधारी हैं, जिनमें प्राय: असाधारण
लंबी शृगिकाएँ (antennae), काटने के अनुकूल मुखांग, अविभाजित या द्विपिंडी (bilobed) या प्राय: क्षीण लिगुला (ligula)
तथा बिलकुल समान आकार के और दो जोड़े झिल्लीदार पंख होते हैं। जब कीट बैठे
रहते हैं तब दोनों जोड़े पंख उदर के ऊपर छत की भाँति स्थित होते हैं। शिराएँ
आद्य (primitive) ढंग की होती हैं, किंतु उनमें अनेक सहायक शिराएँ तथा अनेक सूक्ष्म पर्शु (costal) शिराएँ होती हैं, उदर प्राय: अनुलाग (cerci) विहीन होता है। लार्वें मांसाहारी होते हैं। लार्वों की टाँगें भली भाँति विकसित और शरीर चौरस (campodeifrom) होता है तथा मुखांग काटने और चूषक प्रकार के होते हैं। जलीय न्यूरॉप्टेरा में उदरीय जल गिल (gills) होते हैं। प्यूपे (pupae) स्वतंत्र क्रियाशील होते हैं तथा पंखों में पूर्ण श्वासनलिकाएँ होती हैं।
न्यूरॉप्टेरा श्रेणी के सभी कीटों में उड़ने की शक्ति अत्यल्प होती है। ये कोमलांग कीटों का भक्षण करते हैं अथवा मधुरस (honey dew)
पर जीवन निर्वाह करते हैं। इनके लावें विविध रचना एवं प्रकृति के होते
हैं, किंतु ये सभी मांसाहारी होते हैं। कुछ इने गिने स्पीशीज़ (species) ज्लीय होते हैं। जलीय जातियों में एक यह विशेषता है कि इनके प्रत्येक उदरीय खंड में संचित उदरीय प्रवर्धन होते हैं।
न्यूरॉप्टेरा वर्ग दो उपवर्गों (१) मेगालॉप्टेरा (Megaloptera) और (२) प्लेनिपेनिया (Planipennia) में विभाजित है। इस वर्ग के करीब ४,३०० स्पीशीज़ों का अध्ययन हो चुका है।
(१) मेगालॉप्टेरा -
इस उपवर्ग के कीटों में पंखों के किनारे की शिराओं में दो में बँटने की
प्रवृत्ति अस्पष्ट होती है। लार्वा के मुखांग काटने के लिए होते हैं।
मेगालॉप्टेरा उपवर्ग दो प्रमुख परिवारों में विभाजित है : कोरिलेलिडी (Corylalidae) अथवा ऐल्डर फ्लाइज (Alder flies) और रैफिडाइडी (Raphididae) अथवा स्नेह फ्लाइज (Snake flies)।
कोरिलेलिडी -
इस परिवार के अंतर्गत कुछ ही वंश (genera)
और जातियाँ हैं, जो संसार भर में फैली हुई हैं। ये अन्य न्यूरॉप्टेरा से
इस बात में भिन्न हैं कि इनके पिछले पंख जड़ के पास चौड़े होते हैं और जब ये
उड़ते नहीं होते तब गुदीय क्षेत्र पंखे की भाँति फैला होता है। इस परिवार के
कीट जल के निकटस्थ पत्तों, चट्टानों अथवा अन्य वस्तुओं पर अंडे देते हैं।
सिआलिस (Statis) के प्रत्येक ढेर में २००-५०० अंडे होते हैं और कोरिडालिस (Corydalis)
में २००-३०० तक अंडे होते हैं। अंडे बेलनाकार और गाढ़े भूरे रंग के होते
हैं। लार्वे अंडों से निकलकर जल में प्रवेश कर जाते हैं। सिआलिस के लावें
तालाब, नहर अथवा मंथर जलधारा के किचड़ैले तल में पाए जाते हैं, किंतु
कोरिडालिस के लार्वा वेगवती जलधारा के पत्थरों के नीचे छिपे रहते हैं। इस
परिवार के सभी लार्वे शिकारी होते हैं और अन्य जाति के कीटों के लार्वें ओर
कृमियों इत्यादि पर जीवनयापन करते हैं। प्यूपा अवस्था में कोरिडालिस जमीन
या काई (moss)
इत्यादि में कई इंच नीचे चला जाता है तथा वयस्क होने पर जमीन या काई से
बाहर चला आता है। इनका पूरा जीवनचक्र एक साल का होता है। कोरिडालिस उत्तरी
अमरीका और एशिया में पाया जाता है।
रैफिडाइडी (Raphididae) -
इस परिवार के अंतर्गत मेगालॉप्टेरा के सभी विशिष्ट थलचर सदस्य आते हैं यह
कीट परिवार आस्ट्रेलिया को छोड़कर सभी महादेशों में पाया जाता है। इस परिवार
के ८० से अधिक स्पीशीज़ की जानकारी प्राप्त है।
रैफिडाइडी
परिवार के कीट जंगली क्षेत्रों में, फूल और वृक्ष के तनों इत्यादि पर पाए
जाते हैं। अंड़े पेड़ की छाल की दरारों में लंबे अंडनिक्षेपक (ovipositor) द्वारा घुसेड़ दिए जाते हैं। लार्वे ढीली छालों विशेषत: कोनिफर (conifer)
में पाए जाते हैं। ये अति भुक्खड़ होते हैं और कोमल शरीरवाले कीटों को
पकड़कर उनका शिकार करते हैं। प्यूपा एक प्रकार की खोली बंद रहता है और कुछ
समय के उपरांत क्रियाशील होकर तीव्रता से तब तक रेंगता रहता है, जब तक
विश्राम करने के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं उपलब्ध हो जाता और वयस्क होने
तक यह वहीं रहता है। सर्प मक्खियाँ (Snake flies) इसका उदाहरण हैं।
(२) प्लेनिपेनिया (Planipennia) -
इसके अंतर्गत आनेवाले कीटों में परों के किनारे की शिराओं के दो वर्गों में बँटने की प्रवृत्ति स्पष्ट होती है। लार्वाओं (larvae) के मुखांग चूषक प्रकृति के होते हैं। इस उपवर्ग के उदाहरण लेस विंग (Lace wing) और चींटी व्याध (Ant lion) हैं।
अधिकांश
न्यूरॉप्टेरा प्लेनिपेनिया के अंतर्गत आते हैं। प्राय: समस्त प्लेनिपेनिया
थलचर कीट हैं। इनमें से कुछ लार्वा अवस्था में लगभग उभयचर होते हैं और एक
या दो वंश वास्तव में जलीय हैं। प्लेनिपेनिया के लार्वा व्यापक रूप से
शिकारी होते हैं और ये ऐफिड (aphid) तथा अन्य क्षतिकारक कीटों का संहार करने के कारण विशेष महत्व के हैं। प्लेनिपेनिया उपवर्ग निम्नलिखित परिवारों में विभाजित है :
- इथोनिडी (Ithonidae) -
इस परिवार के सदस्य बड़े और ठोस आकृति के कीट हैं, जिनमें पंखों का फैलाव
४० से ७० मिमी. तक होता है। इथोनिडी तेज धावक होते हैं और तिलचट्टों (cockroaches)
की भाँति अँधेरी दरारों में छिपकर शरण लेते हैं। ये अपने अंडे बालू में
देते हैं। अंडों पर एक प्रकार का लसदार पदार्थ रहता है, जिससे बालू के कण
चिपक जाते हैं। ये साधारणत: स्केरेवीड (scarabaeid)
के लावों पर जीवन निर्वाह करते हैं। इथोनिडी परिवार के अंतर्गत तीन
प्रजातियों और लगभ आधे दर्जन स्पीशीज़ों का पता है, जो प्राय: आस्ट्रेलिया
और टैज़मेनया के रेतीले स्थानों में पाए जाते हैं।
- कोनिऑप्टरजिडी (Coniopterygidae) -
इस परिवार के सदस्य देखने में ऐफिड जैसे प्रतीत होते हैं और इनका शरीर
बहुत ही भंगुर होता है। शरीर और परों पर एक प्रकार का सफेद चूर्ण सदृश
निस्रावि पदार्थ लगा होता है। जिन पेंड़ों पर ऐफिड कॉक्सिडा
चित्र १. ब्राउन लेसविंग का जीवनचक्र
- लारर्वा (�
६), २. प्यूपा (�
६), ३. चीड़ की जोड़ा सूचियाँ, जिनपर दिए अंडों का स्थान तीरों से दिखाया गया है, ४. अंडा (�
३०) तथा ५. पूर्ण कीट (�
४)।
(coccidae) या ऐकारिना (acarina)
का बाहुल्य होता है उनपर ये अंडे देते हैं। अन्य प्लेनिपेनिया की भाँति
इनका लार्वा सुप्तावस्था में प्रवेश करने के पूर्व मलहार से एक प्रकार का
रेशम उत्पन्न करता है। इस परिवार के अंतर्गत करीब ५० स्पीशीज़ हैं, जो
संपूर्ण न्यूरॉप्टेरा वर्ग के प्राणियों में बहुत ही लघु और अधिक असामान्य
हैं।
- डिलेरिडी (Dilaridae) -
यह बहुत ही छोटा परिवार है और अपने अन्य बांधवों से केवल इस बात में भिन्न है कि इसके नर में दृढ़ कंकताकार (pectiated) शृंगिकाएँ होती हैं। इसके जीवनेतिहास की विशेष जानकारी नहीं है। यह उत्तरी अमरीका और जापान में पाया जाता है।
- बेरोथिडी (Berothidae) -
इस परिवार के कीट अपेक्षाकृत छोटे और पतली रचना के होते हैं। इनके परों में विभिन्नता होती है और ये पिच्छक (barb) युक्त होते हैं। यह परिवार बहुत अधिक विस्तृत है और भारत, संयुक्त राज्य (अमरीका) तथा आस्ट्रेलिया में पाया जाता है।
- सिसिराइडी (Sisyridae) -
यह परिवार ऑसमाईलिडी (Osmylidae)
परिवार की शाखा माना जाता है। इसके लार्वा ताजे जलीय स्पंज के साथ रहते
हैं। इसके अंडे बहुत छोटे होते हैं। और जल में लटके पौधों की पत्तियों,
अथवा अन्य वस्तुओं पर, गुच्छे के रूप में दिए जाते हैं। लावें स्पंज की सतह
से चिपक जाते हैं या अपने मुखांगों से स्पंज के ऊतकों को भेदकर, उसकी खुली
अस्थियों (osteols) में उतर जाते हैं। इनका रंग पीलापन लिए हरा अथवा भूरा होता है और प्रत्येक उदरीय खंड में अनेक संधित उदरीय जल गिल (gill) होते हैं। ब्रिटेन में सिसिरा (Sisyra) प्रजाति के तीन स्पीशीज़ पाए जाते हैं, जिनमें सिसिरा फुसकाटा (S. fuscata) अधिक व्यापक जाति है।
- हेमोरोबाइइडी (Hemorobiidae) अथवा ब्राउन लेसविंग (Brown lacewings) -
प्रारंभ में इस परिवार के अंतर्गत सभी न्यूरॉप्टेरा कीट समाहित थे, जिनके
लार्वा के मुखांग चूषक प्रकार के होते थे और वयस्कों के पंख घने जलदार
शिरायुक्त होते थे, किंतु बाद में यह परिवार अलग अलग परिवारों में विभाजित
हो गया। अब इस परिवार के अंतर्गत केवल ऐसे छोटे और कोमल कीट आते हैं,
जिनमें मनकाकार (moniliform) शृगिकाएँ होती हैं और नेत्रकों (ocelli) का अभाव रहता है। लार्वे का रंग प्राय: मखनिया सफेद (creamy white) होता है और उनपर कुछ भूरे च्ह्रि होते हैं। लार्वें एफिड (aphids) अथवा अन्य होमोप्टेरा (homoptera) आदि से बाधित (infested) वनस्पतियों के बीच विचरण करते रहते हैं। हेमोरोबाइडी (Hemorobiidae) परिवार बहुत विस्तृत परिवार है, किंतु ब्रिटिश द्वीपपुंज में इसके ३० से कम स्पिशीज़ पाए जाते हैं।
- साइकोप्सिडी (Psychopsidae) -
इस परिवार के अंतर्गत आस्ट्रेलियन साइकोप्सिस एलीगांस (Psychopsis elegans)
का अध्ययन हुआ है। इसका पूरा जीवनचक्र एक साल में पूरा होता है। जनवरी या
फरवरी महीने में पेड़ों की छाल पर अंडे दिए जाते हैं। लार्वा छाल के नीचे
निवास करता है और छिपने के स्थान से संभवत: केवल उस समय बाहर निकलता है, जब
इसके शिकार पेड़ से उत्पन्न गोंद को चूसने आते हैं। साइकोप्सिडी निशाचर एवं
विरल प्राणी हैं। इस के १८ स्पिशीज़ हैं, जो आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका,
तिब्बत, चीन और बर्मा में पाए जाते हैं
- ऑसमाइलिडी (Osmylidae) -
यह लगभग रुपहले, विशेषत: धब्बेदार परवाले, कीटों का परिवार है। इसके
स्पीशीज स्वच्छ जलधारा के किनारे किनारे घनी झाड़ियों में पाए जाते हैं।
इसके लार्वा चट्टानों या शैवालों के नीचे जल में, अथवा जल के निकट दबके
रहते हैं।
- मैंटिस्पिडी (Mantispidae) -
इस परिवार के सदस्यों में लंबे अग्रवक्ष (prothorax) तथा बड़े रैप्टोरियल अगले पैर होते हैं। अग्रशाखाएँ मैंटिडी (Mantidae) की भाँति ही होती हैं और उसी भाँति कार्य भी करती हैं। इसका बढ़िया उदाहरण मैंटिस्पा स्टाइरियेका (Mantispa styriaca) है। इसके अंडे लंबे वृंतक (pedicles) पर स्थित होते हैं और शिश लार्वें लंबे और भली भाँति विकसित टाँगोंवाले होते हैं, किंतु इनमें गुदा लूम (anal cerci) नहीं होते। ये शीघ्र ही प्यूपा अवस्था में प्रवेश कर जाते हैं और दूसरे वसंत के आगमन पर लाइकोसा (Lycosa) मकड़ी के अंडकोया (egg-cocoon)
की तलाश करते हैं और प्रत्येक अंडकोया में एक मैंटिस्पा लार्वा प्रवेश कर
जाता है और यह अपने नुकीले मुखांगों से बच्चे मकड़ियों के शरीर को बेधकर
उनके शरीर के रस को चूम लेता है। इस भाँति मकड़ियों का रस चूसने के कारण
लार्वा इस भाँति फूल उठता है कि वह छोटा कॅकचेफर (cock chafer)
प्रतीत होने लगता है। संसार के अधिकांश उष्ण भूभागों में यह परिवार फैला
हुआ है। इसकी कुछ जातियाँ दक्षिणी यूरोप में भी पाई जाती हैं।
- क्रिपोपिडी (Chrysopidae) -
इस परिवार के अंतर्गत हरित लेसविंग (Green lacewings) या गोल्डेन आइज़ (Golden eyes) से संबंधित बहुसंख्यक स्पीशीज़ आते हैं। बहुतों के
चित्र २. हरित लेसविंग
शरीर और उपांग (appendages) चमकीले होते हैं और इसी प्रकार पर की शिराएँ भी रंजित होती हैं। इनके कुछ स्पीशीज़ों की अग्रवक्षीय ग्रंथियों (prothoracic glands) से एक प्रकार क दुर्गंध निकलती है। इस कारण यह समूह गंधी मक्खियों (Stink flies) के नाम से भी विख्यात है।
ये प्राय: समूहों में अंडे देते हैं। प्रत्येक अंडस्थापन के साथ एक प्रकार का तरल द्रव स्रवित होता है। इस द्रव से एक पतला पेडिकिल (pedicle)
निर्मित होता है और अंडा इसी पेडिकिल पर स्थित रहता है। इन कीटों के लावें
प्राय: सफेद, पीताभ हरे, इत्यादि विविध रंगों के होते हैं और प्राय: उनपर
गाढ़े लाल, चाकलेटी या काले धब्बे होते हैं। ये प्राय: एफिड बाधित
वनस्पतियों पर पाए जाते हैं और अपने शिकार के कंकालों में ओझल (obscure)
हो जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से ये इसलिए उपयोगी हैं कि ये कोमल शरीरधारी
कीटों का भक्षण करते हैं। एफिड इनका मुख्य शिकार है, किंतु जैसिड (jassids), साइलिड (psyilids), कॉक्सिड (coccids) के साथ यह ्थ्राप (thrips) तथा ऐकाराइना (acarina) पर भी चोट करता है। इस परिवार के ८०० स्पीशीज़ों का पता है, जिनमें १४ ब्रिटेन में पाए जाते हैं।
- नेमॉप्टेरिडी (Nemopteridae) -
यह एक सुविकसित परिवार है। इस परिवार के कीटों के पिछले पर बहुत लंबे और फीते (ribbon) सदृश होते हैं तथा सिर एक प्रकार के तुंड (rostrum) में निकला होता है। ये रुपहले और आकर्षक कीट हैं और अपने पिछले लंबे परों को हवा में लहराते हुए विचित्र गति से एफिमेरिडी (Ephemeridae) की तरह ऊपर नीचे उड़ते हैं। भारतीय ग्रीस फिलिपेनिस (Groce filipennis)
का जीवनचक्र एक साल का होता है। यह मकानों के ऊपर उड़ता नजर आता है। अंडे
जमीन पर पड़ी धूल या कूड़े में दिए जाते हैं। पूर्ण विकसित लार्वा का सिर
चौकोर होता है। हन्विकाएँ लंबी, नुकीली और महीन दंतयुक्त होती हैं। लार्वें
अपने को धूल से आच्छादित किए रहते हैं, जिससे उनका पता लगाना कठिन होता
है। ये सॉसिड (psocids)
अथवा अन्य छोटे कीटों का शिकार करते हैं। यह परिवार भी बहुत विस्तृत रूप
से फैला हुआ है और दक्षिण यूरोप में इसकी अनेक जातियाँ मिलती हैं।
- ऐसकैलेफिडी (Ascalaphidae) -
इस परिवार के कीट बहुत ही चंचल होते हैं। ये दिन में बहुत तेजी से उड़ते रहते हैं और ड्रैगन मक्खी (dragon fly)
की भाँति अपने शिकार पर झपाटा मारते रहते हैं। किंतु अन्य स्पीशीज़ निश्चिर
होते हैं और कम दिखाई पड़ते हैं। इनके अंडे घास के डंठलों अथवा पेड़ों की
टहनियों पर पंक्तियों में दिए जाते हैं। इनके लार्वे मरमिलिऑण्टिडी (Mymeleontidae)
के लार्वों से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं और उन्हीं की भाँति इनकी
हन्विकाएँ दाँतदार होती हैं। किंतु लावें गड्ढे बनाकर नहीं रहते, बल्कि सतह
पर कंकड़ों, पत्तियों इत्यादि और कभी कभी पेड़ की छाल के नीचे छिपे रहते
हैं। इस परिवार का मरमिलिअॅण्टिडी से बहुत ही निकट का संबंध है और इसका
विस्तार भी उसी की भाँति है।
- मरमिलिऑण्टिडी या चींटीव्याध मक्खियाँ (Ant lions flies) -
वयस्क चींटीव्याध मक्खियों की बाह्य रचना संकीर्ण शरीरवाली ड्रैगन मक्खी से मिलती जुलती है और लार्वा अवस्था में ये चींटीव्याध (Ant lions)
कहलाते हैं। इस परिवार के अंतर्गत कई बड़े और सुंदर स्पीशीज़ हैं, जो बहुत
कम दृष्टिगोचर होते हैं, क्योंकि दिन में ये पेड़ और झाड़ियों के नीचे छिपे
रहते हैं और संध्या होते ही उड़ने लगते हैं। मरमिलिऑण्टिडी में अन्य
न्यूरॉप्टेरा की अपेक्षा शृंगिकाएँ छोटी होती हैं और इनके पंख बड़े संकीर्ण
और भूरे काले रंग के होते हैं। उष्ण कटिबंध के देशों में ये बड़ी संख्या में
मिलते हैं। अंडे बालू में दिए जाते हैं। इस परिवार के लार्वें का शरीर
चिपटा और अंडाकार, सिर बड़ा तथा लंबी और उभड़ी हुई हन्विकाएँ होती हैं जिनमें
तीक्ष्ण स्पिनिफॉर्म (spiniform)
दाँत लगे होते हैं। नवशिशु लार्वा अपना शिकार पकड़ने के लिए जमीन में
कुप्पी के आकार का गड्ढा बनाकर गड्ढे के तल में समाधि लगा लेता है और केवल
इसका बड़ा जबड़ा गड्ढे से बाहर निकला रहता है। कोई चींटी अथवा इस प्रकार के
अन्य कीट जब गड्ढे के किनारे भूले भटके आ जाते हैं तब बालू का कगार ढहकर
ढालुए गड्ढे में गिरने लगता है और बेचारी चींटी अथवा
चित्र ३. नेपोपिस्था इंपरैट्रिक्स
(Nemopistha Imperatrix)
अन्य
कीट मुसीबत में पड़ जाते हैं। बालू के साथ चींटी या कीट भी गड्ढे में गिर
पड़ते हैं और जब वे गड्ढे से निकलने का प्रयास करते हैं, तब चींटीव्याध अपने
सिर पर बालू ले लेकर शिकार पर झोंकने लगता है और तब तक झोंकता रहता है जब
तक शिकार उसकी पकड़ में नहीं आ जाता। पकड़ लेने पर यह शिकार को तब तक नहीं
छोड़ता जब तक उसका पूरा रस नहीं चूस लेता। अंतत: शिकार का केवल बाह्य कंकाल
शेष रह जाता है। मरमीलिऑन (Myrmeleon) तथा अन्य स्पीशीज़ की आदत गड्ढे बनाने की होती है, किंतु बंगाल में मरमीलिऑन कंट्रैंक्टस (M. contractus)
के लार्वें कीचड़ से आच्छादित पेड़ के पत्तों पर रहते हैं और पेड़ पर ऊपर
नीचे आने जानेवाली चींटियों का शिकार करते हैं। इस परिवार के कुछ अन्य
लार्वें कंकड़ और मलबे (debris) में छिपे रहते हैं, अथवा अपने शरीर पर किसी प्रकार का लेप कर लेते हैं, और इस प्रकार छद्मवेश बनाकर सुरक्षा प्राप्त करते हैं।
सं. ग्रं. -
ए. डी. इम्म्स : ए टेक्स्टबुक ऑव एंटोमॉलोजी