न्यूमन, जॉन हेनरी (१८०१-९०) अंग्रेजी लेखक और धर्मसुधारक। १८२० में ऑक्सफर्ड से डिग्री लेने के उपरांत १८२३ में वहीं ऑरिएल कालेज में 'फ़ेलो' हो गए। १८२४ में वह सेंट क्लीमेंट गिरजाघर के 'क्यूरेट' तथा १८२८ में सेंटमेरी गिरजा के 'विकर' नियुक्त हुए। परंतु धीरे धीरे अंग्रेजी प्रोटेस्टेंट चर्च में उनका विश्वास घटता जा रहा था। १८३२ में उन्होंने अपने मित्र, रिचर्ड हरेल फ्ऱाउड के साथ दक्षिण यूरोप की यात्रा की तथा रोम भी गए। इसी लंबे भ्रमण के दौरान उन्होंने अपनी अधिकांश लघु कविताएँ लिखीं जिनमें सुप्रसिद्ध 'लीड, काइंडली लाइट' भी हैं तथा जो १८३४ में 'लाइरा एपॉस्टॉलिका' शीर्षक से प्रकाशित हुई थीं। वापस लौटकर उन्होंने प्यूसी, केवुल इत्यादि के सहयोग से 'ट्रैक्टेरियन' आंदोलन का सूत्रपात किया जिसका उद्देश्य अंग्रेजी चर्चं का सुधार करके उसे कैथलिक चर्च के समीप लाना था। क्योंकि यह कार्य 'ट्रैक्टस' अर्थात् लधु प्रबंधों के माध्यम से किया गया, इसलिए इसे 'ट्रैक्टेरियन' कहा गया। ऑक्सर्फ़्ड में केंद्रित होने के कारण इसे 'ऑक्सफ़र्ड आंदोलन' भी कहा जाता है। इन 'ट्रैक्ट्स फॉर दि टाइम्स' में से कई महत्वपूर्ण प्रबंध न्यूमन ने लिखे। उनके द्वारा लिखित 'ट्रैक्ट' संख्या ९० ने तो बड़ा ही विवाद खड़ा किया।

१८४३ में उन्होंने चर्च सेवा से त्यागपत्र दे दिया तथा लिटिलमोर में एकांतसेवन करने लगे। १८४५ में उन्होंने रोमन कैथलिक चर्च की शरण ली। अगले वर्ष वे रोम गए जहाँ उन्हें पादरी नियुक्त किया गया। इंग्लैंड लौटकर उन्होंने १८४७ में बर्मिघम और १८५० में लंदन में कैथलिक गिरजों ('ऑरेटरी') की स्थापना की। आलोचकों के प्रत्युत्तर में १८६४ में उन्होंने 'एपोलॉजिया प्रो विटा सुआ' शीर्षक से अपनी धार्मिक आत्मकथा प्रकाशित की। १८७९ में रोम बुलाकर उन्हें 'कार्डिनल' बनाया गया। जीवन के अंतिम वर्ष उन्होंने बर्मिघम की 'ऑरेटरी' में बिताए।

उनकी मुख्य महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं - 'दि डेवलपमेंट ऑव क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन' (१८४५), 'ए ग्रामर ऑव असेंट' (१८७०), 'दि आइडिया ऑव ए युनिवर्सिटी' तथा धार्मिक भावना से परिपूर्ण काव्यरचना 'दि ड्रीम ऑव जेरॉणिटयस' (१८६६)। उनके प्रवचनों के कारण उसकी गणना प्रथम कोटि के अंग्रेज उपदेशकों में होती है तथा उनकी दृढ़ भावना और सशक्त शैली ने उनके विरोधियों को भी बहुत प्रभावित किया।(जगदीशबिहारी मिश्र)