नैमिषारण्य प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ है। सीतापुर नगर से बीस मील दूर मिसरिख तहसील में अक्षांश २७रू - २६ उत्तर और देशांतर ८०रू - ३५ पूर्व गोमती के बएँ तट पर स्थित है। नैमिष की व्युत्पत्ति 'निमिष' शब्द से बताई जाती है, क्योंकि गौरमुख ने एक निमिष में असुरों की सेना का संहार किया था (कर्निघम, आ.स.रि. भाग १)। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार इस स्थान पर अधिक मात्रा में पाए जानेवाले फल निमिष के कारण इसका नाम नैमिष पड़ा। व्युत्पत्ति के विषय में तीसरा मत है कि असुरों के दलन के अवसर पर विष्णु के चक्र की निमि नैमिष में गिरी थी (मत्स्य. २२/१२/१४, वायु. १/१५, ब्रह्मांङ १/२/८)। किंतु दूसरे आख्यान के अनुसार जब देवताओं का दल महादेव के नेतृत्व में ब्रह्मा के पस असुरों के आतंक से पीड़ित होकर पहुँचा, तो ब्रह्मा ने अपना चक्र छोड़ा और उन्हें वह स्थान तपस्या के लिए निर्देशित किया जहाँ चक्र गिरे। नैमिष में चक्र गिरा अत: वह स्थल आज भी चक्रतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। चक्रतीर्थ षट्कोणीय है। व्यास १२० फुट है। पवित्र जल नीचे के सोंतों से आता है और एक नाले के द्वारा बाहर की ओर बहता रहता है, जिसे गोदावरी नाला कहते हैं। चक्र तीर्थ के अतिरिक्त व्यासगद्दी, ललिता देवी का मंदिर, भूतनाथ का मंदिर, कुशावर्त, ब्रह्मकुंड, जानकीकुंड और पंचप्रयाग आदि आकर्षक स्थल हैं।
नैमिष का उल्लेख ब्राह्मण (पंचविंश २५/६/४, जैमिनीय १/३६३, कौषीतकि २६/५ और २८/४), उपनिषद् (छांदोग्य १/२/१३), संहिता (काठक १०/६) साहित्य तथा रामायण, (उत्तरकांड), महाभारत (वनपर्व) तथा पुराणों (दे. पुराण इंडेक्सदिक्षितार) में हुआ है। उल्लेखनीय बात है कि मध्यकाल के प्रसिद्ध ग्रंथ आइन-ए-अकबरी में भी नैमिष का उल्लेख है।
नैमिष साठ सहस्त्र ऋषियों का निवासस्थान तथा इक्यावन पीठस्थानों में से एक था (ला, हिस्टारिकल ज्याग्रैफी आफ ऐंशेंट इंडिया, ११३)। अनेक ऋषियों द्वारा यहाँ पुराणों का लेखन कार्य (वही), तथा महाभारत के अट्ठारहो पर्वो का पाठ हुआ (सौरेनसेन कृत महाभारत इडेक्स)। लव और कुश ने यहाँ रामायण का पाठ किया। यहीं सूत्रसाहित्य का जन्म हुआ (वेवर, हिस्ट्री आफ इंडियन लिट्रेचर, ५९)।
नैमिषारण्य यज्ञकर्त्ता ब्राह्मणों का केंद्र था (वेबर, वही, ३४, १८५)। राम के द्वारा यह स्थान अश्वमेघ यज्ञ के लिए चुना गया था (बा.रा. उत्तर कांड)। शौनक ने यहाँ द्वादश वार्षिक यज्ञ किया था (महा. १,१- २)। पुराण साहित्य भी द्वादश वार्षिक यज्ञ का साक्षी है (पद्म. ६, २१९)। विविध महान् ऋषियों द्वारा विश्वजित् यज्ञ संपन्न हुआ (महा. ९, ४१, ३-४) प्रारंभिक राजाओं में श्रेष्ठ मांधता ने इसी क्षेत्र में देवाधिदेव इंद्र को परास्त किया था (वही, १२, ३५५/२)। भाइयों सहित राजा युधिष्ठिर ने नैमिष तीर्थ में स्थान, गोदान एवं धन दान किया था (३,९५,१-२)।
नैमिषारण्य ब्रह्मा का निवासस्थान था (महा. ३, ८४, ५९)। पृथ्वी के सभी तीर्थ नैमिष में विद्यमान हैं। यहाँ स्नान करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और मुक्ति मिलती है (विल्सन अनूदित विष्णु पुराण पृ. ३२३ और महा. ३/८४/५९-६०) नैमिष एक प्रकार का ऋषि कुल विश्वविद्यालय था, जहाँ अनेक ग्रंथों का संपादन हुआ (मुखर्जी, ऐंशेंट इंडियन एजूकेशन, ३३४)। शौनक इसके कुलपति थे और सूत प्रथम स्नातक। सहस्त्रों स्नातक उनसे शिक्षा ग्रहण करते थे।
नैमिष की परिक्रमा का विस्तार दो जिलों सीतापुर तथा द्वरदोई में है। यहाँ के तीर्थों में छ: सहस्त्र तीर्थो का जल है, जो साढ़े तीन करोड़ घड़ों द्वारा देश के मुख्य मुख्य तीर्थों से लाया गया था। ये तीर्थ चौरासी कोस के घेरे में विद्यमान हैं। इनकी परिक्रमा लाखों यात्रियों द्वारा प्रत्येक फाल्गुन की अमावस्या के दिन प्रारंभ होती है। आजकल नैमिषारण्य में श्री नारदानंद जी का विशाल आश्रम है।
(राजेंद्रबिहारी पाठक)