नैपोलियन प्रथम (१७६९-१८२१) नैपोलियन कार्सिका और फ्रांस के एकीकरण के अगले वर्ष ही १५ अगस्त, १७६९ ई. को अजैसियों में पैदा हुआ था। उसका पित चार्ल्स बोनापार्ट एक चिरकालीन कुलीन परिवार का था। उसका वंश कार्सिका के समीपस्थ इटली के टस्कनी प्रदेश से सभूत बताया जाता है। चार्ल्स बोनापार्ट फ्रेंच दरबार में कार्सिका का प्रतिनिधित्व करता था। उसने लीतिशिया रेमॉलिनो (Laetitia Ramolino) नाम की एक उग्र स्वभाव की सुंदरी से विवाह किया था जिससे नैपोलियन पैदा हुआ। चार्ल्स ने फ्रेंच शासन के विरुद्ध कार्सिकन विद्रोह में भाग भी लिया था, किंतु अंतत: फ्रेंच शक्ति से साम्य स्थापित करना ही श्रेयस्कर समझा। फ्रेंच गवर्नर मारबिफ (Marbeuf) की कृपा से इसे वारसाई की एक मंत्रणा में सम्मिलित होने का अवसर मिला। चार्ल्स के साथ उसकी द्वितीय पुत्र नैपोलियन भी था। उसके व्यक्तित्व से जिस उज्वल भविष्य का संकेत मिलता था उससे प्रेरित होकर फ्रेंच अधिकारियों ने ब्रीन (Brienne) की सैनिक अकैडैमी में अध्ययन करने के लिए उसे एक छात्रवृत्ति प्रदान की और वहाँ उसने १७७९ से १७८४ तक शिक्षा पाई। तदुपरांत पैरिस के सैनिक स्कूल में उसे अपना तोपखाने संबंधी ज्ञान पुष्ट करने का अवसर लगभग एक वर्ष तक मिला। इस प्रकार नैपोलियन का बाल्यकाल फ्रेंच वातावरण में व्यतीत हुआ।

बाल्यवस्था में ही सारे परिवार के भरण पोषण का उत्तरदायित्व कोमल कंधों पर पड़ जाने के कारण उसे वातावरण की जटिलता एवं उसके अनुसार व्यवहार करने की कुशलता मिल गई थी। अतएव फ्रेंच क्रांति में उसका प्रवेश युगांतरकारी घटनाओं का संकेत दे रहा था। फ्रांस के विभिन्न वर्गों से संपर्क स्थापित करने में उसे कोई संकोच या हिचकिचाहट नहीं थी। उसने जैकोबिन दल में भी प्रवेश किया था और २० जून के तुइलरिए (Tuileries) के अधिकार के अवसर पर उसे घटनाओं से प्रत्यक्ष परिचय हुआ था। फ्रांस के राजतंत्र की दुर्दशा का भी उसे पूर्ण ज्ञान हो गया था। यहीं से नैपोलियन के विशाल व्यक्तित्वका आविर्भाव होता है।

नैपोलियन के उदय तक फ्रेंच क्रांति पूर्ण अराजकता में परिवर्तित हो चुकी थी। जैकोबिन और गिरंडिस्ट दलों की प्रतिद्वंद्विता और वैमनस्य के परिणाम स्वरूप ही उस 'आतंक का शासन' संचालित किया गया था जिसमें एक एक करके सभी क्रांतिकारी यहाँ तक कि स्वयं राब्सपियर भी, मार डाला गया था। १७९३ ई. में टूलान (Toulan) के घेरे में नैपोलियन को प्रथम बार अपना शौर्य एवं कलाप्रदर्शन का अवसर मिला था। डाइरेक्टरी का एक प्रमुख शासक बैरास उसकी प्रतिभा से आकर्षित हो उठा। फिर १७९५ में जब भीड़ कंर्वेशन को हुई थी, तो डाइरेक्टरी द्वारा विशेष रूप से आयुक्त होने पर पोलियन ने कुशलतापूर्वक कंवेंशन की रक्षा की और संविधान को होने दिया। इन सफलताओं ने सारे फ्रांस का ध्यान नैपोलियन और आकृष्ट किया और डाइरेक्टरी ने उसे इटली के अभियान का तृत्व दिया (२ मार्च, १७९६)। एक सप्ताह पश्चात् उसने जोज़ेफीन (Josephine) से विवाह किया और तदुपरांत अपनी सेना सहित इटली में प्रवेश किया।

इटली के अभियान नैपोलियन की सैनिक तथा प्रशासकीय क्षमता ज्वलंत उदाहरण था। इस बात की घोषणा पूर्व ही कर दी गई कि फ्रेंच सेना इटली को ऑस्ट्रिया की दासता से मुक्त कराने आ गए है। उसने पहले तीन स्थानों पर शत्रु को परास्त कर ऑस्ट्रिया का (Piedmont) से संबंध तोड़ दिया। तब सारडीनिया के को युद्धविराम करने के लिए विवश किया। फिर लोडी के स्थान में उसे मीलान प्राप्त हुआ। रिवोली के युद्ध में मैंटुआ को समर्पण करना पड़ा। आर्कड्यूक चार्ल्स को भी संधिपत्र प्रस्तुत कराना पड़ा और ल्यूबन (Leoben) का समझौता हुआ। इन सारे युद्धों और वार्ताओं में नैपोलियन ने पेरिस से किसी प्रकार का आदेश नहीं लिया। पोप को भी संधि करनी पड़ी। लोंबार्डी को सिसालपाइन तथा जिनोआ को लाइग्यूरियन गणतंत्र में परिवर्तित कर फ्रेंच नमूने पर एक विधान दिया। इन सफलताओं से ऑस्ट्रिया के पैर उखड़ गए और उसे कैंपो फौर्मियों (Campo Formio) की संधि के लिए नैपोलियन के संमुख नत होना पड़ा तथा इस जटिल परिस्थिति में ऑस्ट्रिया को अपने बेललियम प्रदेशों से और राइन के सीमांत क्षेत्रों तथा लोंबार्डी से अपना हाथ खींच लेना पड़ा। नैपोलियन के इन युद्धों से तथा छोटे राज्यों का समाप्त कर बृहत् इकाई में परिवर्तित करने के कार्यों से इटली में एक राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा हुआ जो इतिहास में रीसॉर्जीमेंटों (Risorgimento) के नाम से प्रसिद्ध है।

इटालियन अभियान से लौटने पर नैपोलियन का भव्य स्वागत हुआ। डाइरेक्टरी भी भयभीत हो गई तथा नैपोलियन को फ्रांस से दूर रखने का उपाय सोचने लगी। इस समय फ्रांस का प्रतिद्वंद्वी केवल ब्रिटेन रह गया था। नैपोलियन ने ब्रिटेन को हराने के लिए उसके साम्राज्य पर कुठाराघात न करना उचित समझा तथा अपनी मिस्त्र-अभियन-योजना रखी। डाइरेक्टरी ने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया। १७९८ ई. में बोनापार्ट ने मिस्त्र के लिए प्रस्थान किया। ब्रिटेन पर प्रत्यक्ष आक्रमण करने के स्थान पर ब्रिटेन के पूर्वी साम्राज्य को मिस्त्र के माध्यम से समाप्त करने की योजना फ्रेंच शासकों को संगत प्रतीत हुई। मैमलुक तुर्की से इसका सामना पैरामिड के तथाकथित युद्ध में हुआ। किंतु ब्रिटिश नौसेना का भूमध्यसागरीय अध्यक्ष कमांडर नेल्सन नैपोलियन का पीछा कुशलतापूर्वक कर रहा था। उसने आगे बढ़कर फ्रांसीसियों को नील नदी के युद्ध में तितर बितर कर दिया तथा टर्की को भी इंगलैड की ओर से युद्ध में प्रवेश करने के लिए विवश कर दिया। नेल्सन की इस सफलता ने ब्रिटेन को एक द्वितीय गुट बनाने का अवसर दिया और यूरोप के वे राष्ट्र, जिन्हें नैपोलियन दबा चुका था, फ्रांस के विरुद्ध अभियान की तैयारी करने लगे।

टर्की के युद्ध में प्रविष्ट हो जाने पर नैपोलियन ने सीरिया का अभियान छेड़ा। केवल तेरह हजार की एक सीमित टुकड़ी के साथ एकर (Acre) की ओर बढ़ा किंतु सिडनी स्मिथ जैसे कुशल सेनानी द्वारा रोक दिया गया। यह नैपोलियन के लिए वरदान सिद्ध हुआ। अब नैपोलियन सीरिया में एक दूसरे फ्रेंच साम्राज्य की रचना में लग गया। किंतु फ्रांस इस समय एक नाजुक स्थिति से गुजर रहा था। अत: नैपोलियन ने मिस्त्र में अपनी सत्ता स्थापित करने में सफलीभूत होते हुए भी फ्रांस में प्रकट हो जाना वांछनीय समझा। नैपोलियन के फ्रांस में प्रवेश करते ही हलचल पैदा हो गई। अनुकूल वातावरण पाकर नवंबर, १७९९ में नैपोलियन ने सत्ता हथियाकर डायरेक्टरी का विघटन किया और नया विधान बनाया। इस विधान के अनुसार तीन कौंसल (Consul) नियुक्त हुए। कुछ समय पश्चात् सारी शक्तियाँ प्रथम कौंसल नैपोलियन में केद्रित हो गई। फ्रांस एक दीर्घ अशांति से थक चुका था तथा क्रांति को स्थापित्व की ओर ले जाने के लिए अन्तरकालीन शांति परम आवश्यक थी। किंतु शांतिस्थापना के पूर्व ऑस्ट्रिया को नतमस्तक कर देने के लिए एक इटालियन अभियान आवश्यक था।

नैपोलियन ने १८०० ई. में इटली का दसरा अभियान बसंत ऋतु में प्रारंभ किया तथा मेरेंगो (Marengo) की विजय प्राप्त कर आस्ट्रिया को ल्यूनविल (Luneville) की संधि के लिए विवश कर दिया जिसमें पहले की कैम्पोफोर्मियों की सारी शर्ते दोहराई गई। अब द्वितीय गुट टूट गया और नेपोलियन ने इंगलैंड से आमिऐं (Amiens) की संधि १८०१ ई. में की जिसके अंतर्गत दोनों राष्ट्रों ने एक दूसरे के विजित प्रदेश वापस किए। अब नेपोलियन ने एक दूसरे के विजित प्रदेश वापस किए। अब नेपोलियन ने एक सुधारयोजना कार्यान्वित कर फ्रांस को शासन और व्यवस्था दी। फ्रांस की आर्थिक स्थिति में अनुशासन दिया। शिक्षापद्धति में अभूतपूर्व परिवर्तन किए। भूमिकर व्यवस्था सुदृढ़ की। पेरिस का सौंदर्यीकरण किया। सेना में यथेष्ट परिवर्तन किए तथा फ्रांस की व्यवस्था को एक वैज्ञानिक आधार दिया जो अब भी नेपोलियन कोड के नाम से विख्यात है। पोप से एक कॉन कौरडेट (Concordat) कर कैथलिक जगत् का समर्थन प्राप्त कर लिया।

इन सुधारों से नैपोलियन को यथेष्ट सफलता प्राप्त हुई और मार्च १८०४ ई. में वह फ्रांस का सम्राट् बन गया। इस घटना से सारे यूरोप में एक हलचल पैदा हुई। फ्रांस और ब्रिटेन के बीच फिर युद्ध के बादल मंडराने लगे। नैपोलियन ने इंगलैंड पर आक्रमण करने के लिए उत्तरी समुद्री तट पर बोलोन (Boulogne) में अपनी सेना भेजी। इंगलैंड ने इसके उत्तर में अपने इंग्लिश चैनल स्थित नौसेना की टुकड़ी को जागरुक किया और फिर हर भिड़ंत में नैपोलियन को चकित करता गया। आमिऐं की सधि के समाप्त होते ही विलियम पिट शासन में आया और उसने इंगलैंड, ऑस्ट्रिया, यस आदि राष्ट्रों को मिलाकर एक तृतीय गुट (१८०५) बनाया। नैपोलियन ने फिर ऑस्ट्रिया के विरुद्ध मोर्चाबंदी की और सिसआलपाइन गणतंत्र को समाप्त कर स्वयं इटली के राजा का पद ग्रहण किया। ऑस्ट्रिया को उल्म (Ulm) के युद्ध में हराया। ऑस्ट्रिया का शासक फ्रांसिस भाग गया और जार की शरण ली। इधर ट्राफलगर के यद्ध में नेलसन ने नैपोलियन की जलसेना को हरा दिया था जिससे ऑस्ट्रिया को फिर से नैपोलियन को चुनौती देने का मौका मिल गया था। लेकिन आस्टरलिट्ज के युद्ध में हार जाने पर आस्ट्रिया को प्रेसवर्ग की लज्जापूर्ण संधि स्वीकार करनी पड़ी। इस सफलता से नैपोलियन का उल्लास बढ़ गा और अब उसने जर्मनी को रौंदना प्रारंभ किया। जेना (Jena) और आरसटेड (Auerstedt) के युद्धों में १४ अक्टूबर १८०६ ई. में हराकर राइन संधि की रचना कर अपने भाई जोसेफ बोनापर्ट के शासन को मजबूत किया। अब केवल रूस रह गया जिसे नैपोलियन ने जून १८०७ ई. में फ्रीडलैंड (Friedland) के युद्ध में हराकर जुलाई १८०७ की टिलसिट (Tilsit) की संधि के लिए विवश किया।

सारे यूरोप का स्वामी हो जाने पर अब नेपोलियन ने इंगलैंड को हराने के लिए एक आर्थिक युद्ध छेड़ा। सारे यूरोप के राष्ट्रों का व्यापार इंगलैंड से बंद कर दिया तथा यूरोप की सारी सीमा पर एक कठोर नियंत्रण लागू किया। ब्रिटेन ने इसके उत्तर में यूरोप के राष्ट्रों का फ्रांस के व्यापार रोक देने की एक निषेधात्मक आज्ञा प्रचारित की। ब्रिटेन ने अपनी क्षतिपूर्ति उपनेवेशों से व्यापार बढ़ा कर कर ली किंतु यूरोपीय राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी और वे फ्रांस की इस यातना से पीड़ित हो उठे। सबसे पहले स्पेन ने इस व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया। परिणाम स्वरूप नैपोलियन ने स्पेन पर चढ़ाई की और वहाँ की सत्ता छीन ली। इस पर स्पेन में एक राष्ट्रीय विद्रोह छिड़ गया। नैपोलियन इसको दबा भी नहीं पाया था कि उसे ऑस्ट्रिया के विद्रोह को दबाना पड़ा और फिर क्रम से प्रशा और रूस ने भी इस व्यवस्था की अवज्ञा की। रूस का विद्रोह नैपोलियन के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। उसके मास्को अभियान की बरबादी इतिहास में प्रसिद्ध हो गयी है। पैरिस लौटकर नेपोलियन ने पुन: एक सेना एकत्र की किंतु लाइपजिग (Leipzig) में उसे फिर प्रशा, रूस और आस्ट्रिया की संमिलित सेनाओं न हराया। चारों ओर राष्ट्रीय संग्राम छिड़ जाने से वह सक्रिय रूप से किसी एक राष्ट्र को न दबा सका तथा १८१४ ई. में एल्बा द्वीप (Elba Island) भेज दिया गया। मित्र राष्ट्रों की सेनाएं वापस भी नहीं हो पाई थीं कि सूचना मिली कि नैपोलियन का शतदिवसीय शासन शुरू हुआ अत: मित्र राष्ट्रों ने उसे १८१५ में वाटरलू के युद्ध में हराकर सैन्टहैलना (St. Helena) का कारावास दिया। वहाँ १८११ ई. में पाँच मई को उसकी मृत्यु हुई।(गिरिजाशंकर मिश्र)