नैनसेन, फ्रटजॉफ (Nansen, Fridtjof; १८६१-१९३० ई.) नार्वे के प्रसिद्ध समन्वेषक, मानववादी, राजनीतिज्ञ, समुद्री जीववैज्ञानिक तथा समुद्रविज्ञान के प्रवर्तक थे। इनका जन्म ओस्लो में हुआ था। इन्होंने सर्वप्रथम १८८२ ई. में उत्तरी ध्रुवक्षेत्र में समुद्री जीवविज्ञान संबंधी बहुमूल्य गवेषणात्मक तथ्य एकत्रित किए। सन् १८८८ की ग्रीष्म ऋतु में पाँच अन्य साथियों के साथ इन्होंने जुएनलैंड (ग्रीनलैड के महत् हिमक्षेत्र) को पूर्व से पश्चिम पार किया। इसे तब तक असंभव कार्य समझा जाता था। उत्तरी ध्रुव के बेसिन में उन्हें समन्वेषण द्वारा मूल्यवान् वैज्ञानिक तथ्यप्राप्ति की आशा थी, अत: उन्होंने २४ जून, १८९३ को नार्वे से उस प्रदेश की यात्रा आरंभ की। यहाँ उन्होंने दो वर्षों तक समन्वेषणात्मक कार्य किए तथा अपने सहयात्री जालमार जॉनसन के साथ उत्तरी ध्रुव से २७२ मील दूर पहुँचकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। अत्यंत कठिनाइयाँ झेलते हुए दुस्साहसपूर्ण यात्रा करके वे स्पिट्जबर्जेन (आधुनिक स्वालवार्ड) पहुँचे और तदनंतर एक ब्रिटिश जहाज द्वारा १८९६ ई. में स्वदेश लौटे।

एक कुशल राजनीतिज्ञ तथा मानववादी होने के नाते उन्होंने नार्वे को स्वेडन से अलग सार्वभौम सत्ताप्राप्त देश (१९०५) बनाने में महत्वपूर्ण प्रयत्न किए। १९०६-८ में ये ब्रिटेन में नार्वे के राजदूत रहे। स्वदेश लौटकर ये क्रिस्टिनिया विश्वविद्यालय में जीवविज्ञान (बाद में सागरवर्णन) के प्रोफेसर नियुक्त हुए। इस अवधि में उन्होंने कई बार, १९१०, १९१२, १९१३, एवं १९१४ में समुद्र समन्वेषण किए तथा एकत्रित किए हुए तथ्यों पर कई पुस्तकें लिखीं। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् नार्वे के प्रतिनिधि स्वरूप इन्होंने राष्ट्रसंघ में कट्टर मानववादी तथा शांतिदूत के रूप में कार्य किय। मानवकल्याण एवं शांतिप्रयत्नों के लिए इन्हें सन् १९२२ में नोबेल-शांति-पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनकी वैज्ञानिक सेवाओं के उपलक्ष्य में उत्तरी ध्रुवसागर स्थित फ्रैज जोसेफलैंड को फ्रटजॉफ नैनसेनलैंड नाम दिया गया। इनकी 'सुदूर उत्तर' (१८९७) तथा 'उत्तरी कुहरे में' (१९११) पुस्तकें प्रसिद्ध हैं।

(कााश्नीाथ सिंह)