नेमतुल्ला वली फ़ारस देश के एक सूफी थे। अमीर नूरुद्दीन नेमतुल्ला, मीर अब्दुल्ला के पुत्र थे और नेमते-इलाही सूफ़ी संप्रदाय के संस्थापक तथा शियों के पाँचवें इमाम बाकर के वंशज थे। इनकी प्रसिद्धि महान् सूफ़ी और चमत्कारक के रूप में थी। हि ७३०-७३१ (१३२९-१३३०-१) में हल्व में जन्म हुआ, २४ वर्ष इराक में निवास किया और तत्पश्चात् मक्का चले गए जहाँ उन्होंने सुप्रसिद्ध शैख अब्दुल्ला याफ़ई से दीक्षा ली तथा खलीफ़ा के रूप में नियुक्ति प्राप्त की। गुरु के स्वर्गवास के उपरांत वह समरक़ंद, हिरात, यज्द गए और अंत में किमनि से ८ कोस की दूरी पर स्थित महान में बस गए जहाँ उन्होंने जीवन के अंतिम २५ वर्ष व्यतीत किए।
नेमतुल्ला वली ने मध्यकालीन भारतीय राजनीति पर प्रभाव डाला था और आशीर्वाद के फलस्वरूप अलाउद्दीन अहमद शाह बहमानी (१४३५-१४५७) बहमान राज्य के सिंहासन पर पदासीन हुआ। उसके आग्रह पर नेमतुल्ला ने अपने खलीफ़ा शैख क़ुतुबुद्दीन तथा पुत्र खलीतुल्ला के बेटे शाह नूरुल्ला का विवाह कर दिया तथा उनके कुटुंब के व्यक्तियों को राज दरबार में संमानित करके उच्च पदों पर नियुक्ति किया।
सूफ़ीवाद के विषय पर नेमतुल्ला ने ५०० रिसाले लिखे थे जिनमें से १०० आज की उपलब्ध हैं। उनका दीवान (काव्य संग्रह) सूफ़ीवाद की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
नेमतुल्ला का स्वर्गवास २२ रजब ८३४ तद्नुसार ५ अप्रैल, १४३१ को हुआ और उनकी समाधि पर आज भी लोग दर्शनार्थ जाते हैं।
सं.ग्रं. - ब्राउन (ई.जी) तातार राज्यकाल में फ़ारसी साहित्य, कैमविरिज, १९२०, ४६३, दीवान, तेहरान, १२७६; सनाउल्ला नेऽमत इलाही: सवानेह अल ऐयाम फ़ी मुशाहदात अल आवाम मासूम वी सिल्सिलत् अल आरफ़ीन (फ़ारसी) बम्बई, १८९०; एन्साइक्लोपीडिया आफ इस्लाम, लंदन, १९३६
(मोहम्मद उमर)